फोटो – 03 गंद्धेश्वरी की पूजा करते गंधवनिक के लोग प्रतिनिधि, बिंदापाथर बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बिंदापाथर, डुमरिया, बंदरडीहा, कुलडंगाल, देवली, कालीपहाड़ी आदि गांव के गंधवनिकों ने माता गंद्धेश्वरी की पूजा अर्चना की. बताया जाता है कि गंधवनिक जाति के आराध्य देवी गंद्धेश्वरी की पूजा प्रतिवर्ष बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर की जाती है. यह पूजा घर-घर में की जाती है. बताया जाता है कि चतुर्भुजा देवी गंद्धेश्वरी मां दुर्गा के ही एक रूप हैं. माता गंद्धेश्वरी मुख्यतः वैश्य वनिक जाति की देवी हैं. गंधवनिकों से ही गंद्धेश्वरी पूजा प्रचलन प्रारंभ हुआ. वैशाख पूर्णिमा पर अपने व्यापार की बढ़ोतरी की कामना को लेकर माता गंद्धेश्वरी की पूजा की जाती है. मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में वे व्यापार के लिए दूर-दूर तक जाते थे. रास्ते में एक ओर जहां प्राकृतिक आपदा का भय था तो दूसरी ओर डकैत व वन्य जीवों की भय भी रहता. इसलिए समस्त भय, दुर्गति से रक्षा करने वाली माता दुर्गेतिनाशिनी, भयहारिणी, अभया मां दुर्गा की आराधना करने लगे. माता दुर्गेतिनाशिनी ने गंधासुर को वध किया और वैश्य वनिकों ने भयमुक्त होकर व्यापार करने लगे.
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