40 सालों तक भाकपा के डॉ विश्वेश्वर खां ने किया प्रतिनिधित्व, 2014 से लगातार झामुमो के रविंद्रनाथ महतो ने मारी बाजी
Nala Vidhan Sabha : नाला विधानसभा सीट से डॉ विश्वेश्वर खां 40 सालों तक विधायक रहे. 1990 में राजकुमारी हिम्मत सिंहका ने उन्हें हराया था. इसके बाद 2005 में रविद्रनाथ महतो ने उन्हें फिर से हराया.
Nala Vidhan Sabha : डॉ विश्वेश्वर खां 40 वर्ष तक एक ही पार्टी भाकपा के बैनर तले विधायक की भूमिका में रहे. अविभाजित बिहार के समय 1990 में कांग्रेस पार्टी की राजकुमारी हिम्मत सिंहका को छोड़ नाला सीट से 1962 से 1967 और 1969, 1972, 1977, 1980, 1985, 1995, 2000 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से डॉ विश्वेश्वर खां ने विधायक बन कर एकीकृत बिहार झारखंड में अनोखा इतिहास बनाया.
डॉ खां चुना गया था बिहार और झारखंड विधानसभा का प्रोटम स्पीकर
नाला विधानसभा की पहचान लेनिनग्राद के रूप में होती थी. जामताड़ा-नाला क्षेत्र के लोग आज भी डॉ. विशेश्वर खां को डॉ बाबू के रूप में सम्मान पूर्वक याद करते हैं. वे एकीकृत बिहार विधानसभा में चार लोकलेखा समिति में रहे और बहुचर्चित दवा घोटाला को उजागर किए थे. डॉ खां बिहार विधानसभा एवं झारखंड विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर चुने गए. उन्हें राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद कतई पसंद नहीं था.
2005 में डॉ खां को हरा कर रविंद्र नाथ महतो ने लहराया झामुमो का परचम
झारखंड अलग राज्य निर्माण के बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के युवा नेता रविंद्र नाथ महतो ने उनके अजेय पारी पर विराम लगाते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा का परचम लहराया. डॉ खां के हारने के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जनाधार घटते गया. शिबू सोरेन की लोकप्रियता के कारण आदिवासी वोट झामुमो में शिफ्ट होते गया, लेकिन 2009 के विस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी सत्यानंद झा बाटुल ने कब्जा जमाया.
2014 में रविंद्रनाथ महतो ने BJP को हराकर छीन ली सीट
वर्तमान विधायक सह विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो ने जनभावनाओं को भांपते हुए तथा हार के कारणों को दूर कर फिर 2014 के विस चुनाव में सत्यानंद झा बाटुल को हार का स्वाद चखाया और फिर चुनाव जीतने में सफल रहे. 2019 की चुनाव में भी रविंद्र नाथ महतो ने सत्यानंद झा को कड़ी टक्कर दी और चुनाव जीतने में सफल रहे. चुनाव जीतने के बाद हेमंत सोरेन की गठबंधन सरकार ने रविंद्र नाथ महतो को विधानसभा अध्यक्ष के रूप में चुना गया.
बीजेपी प्रत्याशी माधव चंद्र महतो 2014 में झाविमो तो 2019 में आजसू से ठोक चुके हैं ताल
2024 के बीजेपी प्रत्याशी माधव चंद्र महतो 2014 की चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा पार्टी से और 2019 की चुनाव में आजसू पार्टी से चुनाव लड़ने के कारण भाजपा के वोट बैंक बंट जाने से सत्यानंद झा बाटुल को हार का सामना करना पड़ा. 2024 की विस चुनाव में बीजेपी की ओर से सत्यानंद झा बाटुल का टिकट काट कर माधव चंद्र महतो को चुनाव मैदान में उतारा है. वहीं झामुमो से वर्तमान विधायक सह विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो चुनावी मैदान में हैं.
नाला सीट का अधिकतर बांग्ला भाषी प्रत्याशी ने किया प्रतिनिधित्व
1957 आम चुनाव के बाद नाला विधानसभा अस्तित्व में आया. नाला विधानसभा क्षेत्र का इतिहास कई दृष्टिकोण से बड़ा ही रोचक है. पश्चिम बंगाल राज्य के बीरभूम एवं वर्धमान वर्तमान में (पश्चिम वर्धमान) से सटा होने के कारण यह विधानसभा क्षेत्र बंगाली एवं संताली आबादी बहुल क्षेत्र है. आजादी के बाद से इस विधानसभा सीट पर अधिकतम समय बांग्ला भाषी प्रत्याशी ने ही क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है.
विपक्ष को अपनों से खतरा
नाला विधानसभा में टिकट के लिए एक दल विशेष के कई लोग पिछले लोकसभा चुनाव के समय से दावे ठोक रहे थे और पार्टी कार्यकर्ताओं को अपने-अपने तरीके से गोलबंद कर रहे थे. विधानसभा चुनाव के लिए कई उम्मीदवार लाइन में खड़े थे, लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद पार्टी आलाकमान ने पुराने को टिकट नहीं देकर नये प्रत्याशी पर भरोसा जताया है. हालांकि इस बार के चुनाव में पिछली बार हार खाये दूसरे पार्टी के नेता मौके का फायदा उठाते हुए राष्ट्रीय पार्टी में शामिल होकर टिकट हथिया लिये और पुराने को हाशिए पर ला खड़ा कर दिया. पुराने का टिकट काट दिए जाने से उनके अंदर भी तूफान चल रहा है और चुनावी गणित को बिगाड़ने के लिए निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर बागी तेवर अपना सकते हैं.
कई नेता क्षेत्रीय पार्टी के जरिये जीतना चाहते हैं चुनाव
बहुसंख्यक जाति वाले के कई उम्मीदवार क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे चुनावी वैतरणी पार होना चाहती है. नाला विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है. इस बार नाला विधानसभा क्षेत्र से झामुमो के उम्मीदवार रविंद्रनाथ महतो हैट्रिक के साथ ऐतिहासिक जीत हासिल करने के लिए जोर-शोर से तैयारी में जुटे हैं. वहीं विपक्षी दल भी उनके विजय रथ को रोकने और अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरा दम-खम लगा रही है. चर्चा है कि एक ओर जहां वर्तमान विधायक के खिलाफ एंटी इंकंबैंसी है तो विपक्ष के प्रत्याशी को अपनों से ही खतरा है. अब जीत-हार तो जनता के हाथ है.