माता शबरी और प्रभु श्रीराम मिलन प्रसंग का हुआ वर्णन
डुमरिया गांव में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन
बिंदापाथर.डुमरिया गांव स्थित बजरंगबली मंदिर परिसर में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन श्री श्री 1008 वृंदावन धाम के कथावाचक धर्मप्राण आचार्य हुकुम भारद्वाज जी महाराज ने माता शबरी और प्रभु श्रीराम मिलन प्रसंग का मधुर वर्णन किया. कहा माता शबरी गांव की एक महिला थी. वह ज्ञान की खोज और धर्म का अर्थ जानना चाहती थी. कई दिनों के यात्रा के बाद, वह ऋष्यमुख पर्वत की तलहटी में ऋषि मतंग से मिले. उन्होंने उन्हें गुरु के रूप में स्वीकार किया और कई वर्षों तक भक्तिपूर्वक उनकी सेवा की, जब ऋषि मतंग का निधन होने वाला था तब माता शबरी बुजुर्ग हो चुकी थीं. माता शबरी ने जीवन भर गुरु की सेवा करने के बाद, अब वह अपने लिए उसी “शांति के निवास ” तक पहुंचना चाहती थी, जहां गुरु मतंग पहुंचे थे. ऋषि ने उत्तर दिया कि तुम्हें भगवान राम दर्शन देंगे. राम के आगमन की प्रतीक्षा करने को कहा. फिर कमल मुद्रा में बैठे हुए ऋषि ने महासमाधि प्राप्त की. कथावाचक ने कहा कि अपने गुरु की आज्ञा मानकर माता शबरी ने प्रभु राम के आने की प्रतीक्षा करती रहीं. शबरी हर दिन छड़ी की मदद से अपने आश्रम से बाहर जाती थी और भगवान राम के लिए बेर तोड़ती थीं. वह एक को तोड़ती, उसका स्वाद लेती और यदि वह मीठा होता तो कड़वे को त्यागकर अपनी टोकरी में रख लेती थी. वह प्रभु राम को अच्छे बेर देना चाहती थी. वह नहीं जानती थी कि प्रसाद चखना नहीं चाहिए. इस प्रकार, कुछ बेर इकट्ठा करके, माता शबरी आश्रम लौट आती और श्रीराम के आगमन का बेसब्री से इंतजार करती रहती थी. महाराज ने कहा कि ऋष्यमुख पर्वत की तलहटी में सैकड़ों अन्य ऋषि-मुनी अपने आश्रमों में प्रभु राम की अगवानी की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन माता शबरी की सच्ची भक्ति के कारण प्रभु राम केवल शबरी के आश्रम में ही गये. श्रीराम को देखकर माता शबरी भाव विभोर हो गयीं और उनके आंखों से आंसू बहने लगे. शबरी ने बड़े ही प्यार से प्रभु राम को स्वयं चखकर सिर्फ मीठे बेर खिलायी, जिसे भगवान राम ने भी भक्ति के वश में होकर प्रेम से ग्रहण किये. माता शबरी की भक्ति देखकर श्रीराम ने उन्हें मोक्ष प्रदान किया. इस कार्यक्रम में धार्मिक कथा के साथ-साथ सुमधुर भजन संगीत भी प्रस्तुत किया गया, जिससे उपस्थित श्रोता-भक्त भावविभोर हो गये. डुमरिया गांव स्थित बजरंगबली मंदिर परिसर में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन श्री श्री 1008 वृंदावन धाम के कथावाचक धर्मप्राण आचार्य हुकुम भारद्वाज जी महाराज ने माता शबरी और प्रभु श्रीराम मिलन प्रसंग का मधुर वर्णन किया. कहा माता शबरी गांव की एक महिला थी. वह ज्ञान की खोज और धर्म का अर्थ जानना चाहती थी. कई दिनों के यात्रा के बाद, वह ऋष्यमुख पर्वत की तलहटी में ऋषि मतंग से मिले. उन्होंने उन्हें गुरु के रूप में स्वीकार किया और कई वर्षों तक भक्तिपूर्वक उनकी सेवा की, जब ऋषि मतंग का निधन होने वाला था तब माता शबरी बुजुर्ग हो चुकी थीं. माता शबरी ने जीवन भर गुरु की सेवा करने के बाद, अब वह अपने लिए उसी “शांति के निवास ” तक पहुंचना चाहती थी, जहां गुरु मतंग पहुंचे थे. ऋषि ने उत्तर दिया कि तुम्हें भगवान राम दर्शन देंगे. राम के आगमन की प्रतीक्षा करने को कहा. फिर कमल मुद्रा में बैठे हुए ऋषि ने महासमाधि प्राप्त की. कथावाचक ने कहा कि अपने गुरु की आज्ञा मानकर माता शबरी ने प्रभु राम के आने की प्रतीक्षा करती रहीं. शबरी हर दिन छड़ी की मदद से अपने आश्रम से बाहर जाती थी और भगवान राम के लिए बेर तोड़ती थीं. वह एक को तोड़ती, उसका स्वाद लेती और यदि वह मीठा होता तो कड़वे को त्यागकर अपनी टोकरी में रख लेती थी. वह प्रभु राम को अच्छे बेर देना चाहती थी. वह नहीं जानती थी कि प्रसाद चखना नहीं चाहिए. इस प्रकार, कुछ बेर इकट्ठा करके, माता शबरी आश्रम लौट आती और श्रीराम के आगमन का बेसब्री से इंतजार करती रहती थी. महाराज ने कहा कि ऋष्यमुख पर्वत की तलहटी में सैकड़ों अन्य ऋषि-मुनी अपने आश्रमों में प्रभु राम की अगवानी की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन माता शबरी की सच्ची भक्ति के कारण प्रभु राम केवल शबरी के आश्रम में ही गये. श्रीराम को देखकर माता शबरी भाव विभोर हो गयीं और उनके आंखों से आंसू बहने लगे. शबरी ने बड़े ही प्यार से प्रभु राम को स्वयं चखकर सिर्फ मीठे बेर खिलायी, जिसे भगवान राम ने भी भक्ति के वश में होकर प्रेम से ग्रहण किये. माता शबरी की भक्ति देखकर श्रीराम ने उन्हें मोक्ष प्रदान किया. इस कार्यक्रम में धार्मिक कथा के साथ-साथ सुमधुर भजन संगीत भी प्रस्तुत किया गया, जिससे उपस्थित श्रोता-भक्त भावविभोर हो गये.