कृष्ण-सुदामा की मित्रता प्रेरणा का है अथाह सागर : संजय शास्त्री
श्रीमद्भागवत कथा के सातवें व अंतिम दिन कथावाचक संजय शास्त्री जी महाराज ने विभिन्न प्रसंगों पर प्रवचन दिए.
फोटो – 07 कथा वाचते संजय शास्त्री जी महराज प्रतिनिधि, नारायणपुर प्रखंड के सिकदारडीह गांव में श्रीमद्भागवत कथा के सातवें व अंतिम दिन कथावाचक संजय शास्त्री जी महाराज ने विभिन्न प्रसंगों पर प्रवचन दिए. उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की अलग-अलग लीलाओं का वर्णन किया. मां देवकी के कहने पर छह पुत्रों को वापस लाकर मां देवकी को देना, सुभद्रा हरण का आख्यान कहना एवं सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्रीकृष्ण-सुदामा से समझ सकते हैं. कहा कि श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता प्रेरणा का अथाह सागर है. सुदामा पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र से सखा श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे. सुदामा द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे. द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया, तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं. इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है. अपना नाम सुदामा बता रहा है, जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा को देखकर उन्होंने उन्हें अपने सीने से लगा लिये. सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाये. दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गये. कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाये और उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया. जब जब भी भक्तों पर विपदा आ पड़ी है प्रभु उनका तारण करने अवश्य आते हैं. कथावाचक ने कहा कि जो भी भागवत कथा का श्रवण करता है उसका जीवन तर जाता है. मौके पर प्रदीप मंडल, दुबराज मंडल, सोनू सिंह, किशोर मंडल आदि श्रद्धालु मौजूद थे.
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