नाला विधानसभा क्षेत्र में वामपंथियों की खिसक रही है जमीन
नाला विधानसभा कभी वामपंथियों का गढ़ हुआ करता था और इसे लेनिनग्राद के रूप में जाना जाता था.
नाला. नाला विधानसभा कभी वामपंथियों का गढ़ हुआ करता था और इसे लेनिनग्राद के रूप में जाना जाता था, लेकिन झारखंड अलग राज्य होने के बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में नौ बार सीपीआइ के बैनर तले प्रतिनिधित्व करने वाले डॉ विशेश्वर खां के अजेय पारी को झामुमो प्रत्याशी रवींद्रनाथ महतो ने विराम लगा दिया. जीत दर्ज करने में कामयाब रहे. डॉ विशेश्वर खां के देहावसान के बाद धीरे-धीरे सीपीआई की जनाधार घटती जा रही है. हालांकि नाला विधानसभा क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सीपीआइ लगातार प्रयास कर रही है, लेकिन इसके बावजूद भी वामपंथियों की जमीन खिसक रही है. 2009 के चुनाव की बात करें तो भाजपा के सत्यानंद झा बाटुल को 31.38 प्रतिशत मत मिले. जेएमएम के रवींद्रनाथ महतो को 28.13 प्रतिशत मत मिले. सीपीआइ के कन्हाई चंद्र माल पहाड़िया को 15.65 प्रतिशत मत मिले थे. वहीं 2014 से अब तक हुए विधानसभा चुनाव में सीपीआइ का जनाधार घटता जा रहा है. समय बदलने के साथ-साथ वोटर भी अपना रुख अपनाते हुए सीपीआइ को छोड़ अन्य पार्टियों में शिफ्ट होते गये हैं, जिससे इस बार भी जीत की संभावना बहुत क्षीण देखा जा रहा है. चूंकि नाला विधानसभा क्षेत्र यादव बहुल क्षेत्र है. इस कारण चार यादव प्रत्याशी चुनाव मैदान में अपना भाग्य आजमा रहे हैं. इस बार भाजपा से सत्यानंद झा बाटुल का टिकट काट कर माधव चंद्र महतो को मैदान में उतरने से बाटुल गुट के अधिकांश कार्यकर्ता झामुमो का दामन थाम लिया है जो चुनावी गणित को बिगाड़ सकते हैं. चार यादव प्रत्याशी के मैदान में उतरने से यादव वोट भी बंट सकते हैं. अपनी-अपनी जीत पक्की करने के लिए प्रचार-प्रसार जोर-शोर कर रहे हैं और वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी आजमाइश जारी है. जानकारी हो कि 12 नवंबर से प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने के लिए विधानसभा में दौरे का कार्यक्रम बनाया गया है. अब स्टार प्रचारक ही वोटरों को मोटिवेट कर पाएंगे यह समय की मांग है.
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