Just Transition News : कोयले की आग पर भारी,पेट की आग,धनबाद के पुनर्वास केंद्रों में कोयला मजदूरों का हाल
बेलगढ़िया टाउनशिप में रहने वाले उपेंद्र सिंह का कहना है कि यहां कई तरह की परेशानी है. यहां रहने वाले लोग बीसीसीएल के कर्मचारी नहीं थे, इसलिए इन्हें इनक्रोचर कहा गया. ये लोग कोयले की ढुलाई आदि के काम में लगे थे और प्राइवेट लोग थे.
Just Transition : खदान क्षेत्रों में जस्ट ट्रांजिशन के रास्ते में किस तरह की बाधा आने वाली है, इसका ताजा उदाहरण है धनबाद जिले का बेलगढ़िया टाउनशिप जहां बीसीसीएल के कोलियरी क्षेत्रों के उन लोगों को बसाया गया है, जो झरिया के अग्नि प्रभावित और भू-धंसान वाले क्षेत्रों में रहते थे.
2006 से बसाया जा रहा है टाउनशिपबेलगढ़िया टाउनशिप में रहने वाले उपेंद्र सिंह का कहना है कि यहां कई तरह की परेशानी है. यहां रहने वाले लोग बीसीसीएल के कर्मचारी नहीं थे, इसलिए इन्हें इनक्रोचर कहा गया. ये लोग कोयले की ढुलाई आदि के काम में लगे थे और प्राइवेट लोग थे. बेलगढ़िया टाउनशिप में 2006 से लोगों को बसाया जा रहा है. मैं और मेरा परिवार इस टाउनशिप में 2016 में आया है.
उपेंद्र सिंह का कहना है कि इस टाउनशिप में पेयजल की गंभीर समस्या है जो गर्मी के दिनों में और भी बढ़ जाती है. यहां के लोगों की आबादी 60 हजार के करीब है और सभी लोग यहां इस परेशानी से जूझ रहे हैं. यहां 12 और 16 फ्लैट की बिल्डिंग बनायी गयी है, जिसमें दो-दो कमरे का घर लोगों को दिया गया है. लेकिन सच्चाई यह है कि यह आवास बहुत ही कमजोर हैं और कभी भी धंस सकते हैं.
रोजगार ना होना सबसे बड़ी परेशानीउपेंद्र सिंह का कहना है कि झरिया के जिन इलाकों में हम रहते हैं, वहां हमारे पास और अन्य लोगों के पास रोजगार के साधन थे. लेकिन यहां ना तो रोजगार की कोई व्यवस्था है और ना ही मजदूरी करने वाले वालों को कोई सुविधा. यह इलाका बाजार से काफी दूर है, जिसकी वजह से यहां आने-जाने में काफी खर्च होता है और मजदूरी करने वालों के यह बहुत खर्चीला भी है. बीसीसीएल ने हमें सुरक्षा का हवाला देकर अपने आशियाने से तो उजाड़ दिया, लेकिन यहां हमारे लिए कोई व्यवस्था नहीं है. स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर एक स्वास्थ्य केंद्र है, जहां कोई डाॅक्टर मौजूद नहीं रहता है, जिसकी वजह से यहां का दरवाजा-खिड़की भी चोर उखाड़ ले गये हैं.
रोजगार के लिए ट्रेंनिंग की बात कही गयी थीरोजगार की मांग करते हुए कुछ समय पहले हमने आंदोलन किया था, उस वक्त यह कहा गया था कि पुरुषों को आईटीआई की ट्रेनिंग दी जायेगी और महिलाओं के लिए सिलाई-कढ़ाई और अन्य तरीके के रोजगार के लिए ट्रेनिंग दी जायेगी , लेकिन यह सबकुछ संभव नहीं हुआ. आज स्थिति बहुत गंभीर है और कभी-कभी यह लगता है कि भले ही हम खदान क्षेत्रों में जोखिम में थे, लेकिन वहां हमारे पेट की आग बुझती थी, लेकिन यहां वह आग धधक रही है.
पानी-बिजली की गंभीर समस्यायहां की रहने वाली सीमा देवी भी उपेंद्र सिंह के बयान को पूरी सहमति देती प्रतीत होती हैं. इनका कहना है कि इलाके में कई समस्याएं हैं. पानी, बिजली और रोजगार की समस्या सबसे अहम है. रोजगार नहीं होने की वजह से यहां के लोग बहुत परेशान रहते हैं. बच्चों की शिक्षा की भी कोई उचित व्यवस्था नहीं की गयी है.
नये टाउनशिप में रोजगार की गंभीर समस्यागौरतलब है कि धनबाद जिले के झरिया में धरती के नीचे वर्षों से आग धधक रही है. यही है कि इस पूरे इलाके के कभी भी धरती में समा जाने की आशंका है. बीसीसीएल ने इन इलाकों में खुदाई बंद कर दी है और भू-धंसान की आशंका वाले क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर बसाने की कवायद शुरू कर दी है. यह एक कठिन काम है, क्योंकि आम लोग जान की परवाह ना करते हुए भी बीसीसीएल द्वारा छोड़ दिये गये क्वार्टर्स में रहना चाहते हैं क्योंकि उन्हें यहां रोजगार के अवसर दिखते हैं और उनके पास रोजगार है, लेकिन नये टाउनशिप में रोजगार की समस्या है.
2070 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्ययहां झरिया की चर्चा इसलिए क्योंकि कोल कंपनियां यहां भले ही भू-धंसान की वजह से लोगों को हटा रही लेकिन उनका जस्ट ट्रांजिशन कैसे हो यह बहुत जरूरी है. 2070 तक अगर भारत सरकार अपने शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करना चाहती है, तो उसे जस्ट ट्रांजिशन करना होगा और उस वक्त वहां किस तरह की समस्या उत्पन्न हो सकती है, उसका ताजा उदाहर है बेलगढ़िया टाउनशिप.
90 प्रतिशत कोयला मजदूर जस्ट ट्रांजिशन से प्रभावित होंगेबीसीसीएल ने अपने कर्मचारियों को तो कुसुम विहार, करमाटांड और मुरलीनगर में बसाया और उनके लिए रोजगार का संकट भी नहीं है, लेकिन झारखंड में जो 90 प्रतिशत कोयलव मजदूर पे- रोल पर नहीं हैं उनका क्या होगा? जस्ट ट्रांजिशन में यह सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने आयेगा, जिसपर सरकारों को विशेष ध्यान देने और नीति बनाने की जरूरत है.