15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंडी वाद्ययंत्रों के जादूगर हैं कमलदेव महली

बाजार के आगे दम तोड़ते झारखंडी पारंपरिक वाद्ययंत्र– ढांक, नगाड़ा, ढोलक, शहनाई, ठेसका, रटरटिया व लोकनृत्य (घोड़ा नाच, डमकच, जदुरा आदि) की विरासत को वर्तमान पीढ़ी को सौंपने की तैयारी में जुटे हैं कमलदेव महली.

डॉ रंजीत कुमार महली

आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बाजार को नियामक शक्ति के रूप में स्वीकार कर लेना ही उदारीकरण है. भारत ने नब्बे के दशक में उदारीकरण को अपनाया. देश का हर शहर, कस्बे–मुहल्ले इसके चपेट में आ गए. बाजार और उसके उत्पाद जब गांव-गली में टपने लगे तो खान-पान, तीज-त्योहार, परिधान और लोकाचारों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा उत्तरोत्तर बढ़ता गया. संस्कृति व परंपरा भी इससे अछूती नहीं रही. अपनी जमीन से देशी उत्पादों और शिल्पों के बाहर होने वालों की फेहरिस्त लंबी है, जिसमें लोककला और पारंपरिक वाद्ययंत्र भी शामिल हैं.

टेंट–डीजे और बैंड संस्कृति के आगे शादी-बियाह व उत्सवों में बजाए जाने वाले स्थानीय पारंपरिक वाद्ययंत्र तथा लोकनृत्य या तो बाजार के भेंट चढ़ चुके हैं या फिर भेंट चढ़ने के कगार पर हैं. बाजार के आगे दम तोड़ते ऐसे ही झारखंडी पारंपरिक वाद्ययंत्र– ढांक, नगाड़ा, ढोलक, शहनाई, ठेसका, रटरटिया व लोकनृत्य (घोड़ा नाच, डमकच, जदुरा आदि) की विरासत को वर्तमान पीढ़ी को सौंपने की तैयारी में जुटे हैं कमलदेव महली.

बहुआयामी प्रतिभा के धनी कमलदेव जी ने अपनी कला का कहीं से कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है. उन्होंने जो भी सीखा है, वह उनका कला प्रेम और स्वाभ्यास है. वे बताते हैं कि करीब-करीब दस-बारह वर्ष की उम्र में उनके गांव दवा बेचने आए एक मलार जाति के आदमी ने उन्हें एक खराब शहनाई दी थी।. खेलने के क्रम में उन्होंने जब शहनाई ठीक कर ली तो उसे बजाने का विचार आया. तब वे राग-रागिनी से परिचित नहीं थे. बस बच्चों के साथ शहनाई को फूंकने के लिए फूंकते रहते. कुछ समय बाद, गांव में जब किसी के यहां शादी में शहनाई बजती तो वे उसकी नकल उतारने की कोशिश करते. इस प्रकार वे स्वभ्यास से शहनाई सीखने में कामयाब हुए.

शहनाई की सुर की कामयाबी ने उन्हें ताल की ओर उन्मुख किया और फिर नृत्य की तरफ वे स्वत: खिंच गए. आज वे शहनाई वादन के साथ-साथ ढोल, ढांक, नगाड़ा, मांदर, मुरली, ठेसका, रटरटिया भी बजाते हैं. बजाते ही नहीं, बखूबी वे स्वयं इन वाद्ययंत्रों को बनाते भी हैं. इनकी कला का जादू ढांक की टिपनी, नगाड़े की खांड़ी और मांदर-ढोलक की थाप पर पड़ी उंगलियों के पोरों की मचकन में दिखाई पड़ता है. इन्हें शहनाई और पारंपरिक वाद्ययंत्रों के सुर-ताल की बारीक जानकारी है. ये नागपुरी के समस्त राग-रागिनी से परिचित हैं.

पिछले कुछ सालों से वे गांव के कुछ युवाओं को स्थानीय वाद्ययंत्रों को बजाने व बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं. इसमें उन्हें सफलता मिल रही है, परंतु इतने से वे संतुष्ट नहीं है. वे रांची जैसी जगहों में लोककला प्रशिक्षण केंद्र खोलने के इच्छुक हैं. पूरा मनोरंजन जगत बाजार के कब्जे में है. पारंपरिक वाद्ययंत्र और कला की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है.

भविष्य की इच्छाओं के बारे में पूछने पर वह कहते हैं : ‘‘मोबाइल फोन और युट्यूब के दौर में अब उन्हें कौन देखता-सुनता है! इन उपकरणों में मौजूदा पीढ़ी को सबकुछ बना-बनाया मिल रहा है तो वह पारंपरिक लोककलाओं पर क्यों ध्यान देगा भला! फूहड़पन के बयार में माटी की सादगी को कौन पूछता है!’’ थोड़ी देर रुकने के बाद, आसमान की ओर देखते हुए वे कहते हैं, ‘‘उम्र के साथ शरीर अब उनका साथ छोड़ रहा है.

देह में इतनी ताकत है नहीं कि गांव-गांव घूमकर अपनी कला का प्रदर्शन करें और लोगों को जागरूक करें. निपट निरक्षर आदमी सरकार से अपनी बात कहें भी तो कैसे? फिर भी, काम करने की इच्छा है. अगर कहीं कोई ऐसी व्यवस्था मिल जाए, जहां वे कलाप्रेमियों और विद्यार्थियों को पारंपरिक वाद्ययंत्र के निर्माण और वादन का प्रशिक्षण दे सकें, तो उन्हें खुशी होगी.’’

पारंपरिक वाद्ययंत्र व लोकनृत्य को बचाने की लड़ाई, उनकी अकेले की नहीं है. ये एक सामाजिक लड़ाई है, जिसे समस्त कलाप्रेमियों, बौद्धिकों, समाज और सरकार को मिलकर लड़ना है. झारखंड के विश्वविद्यालयों के क्षेत्रीय विभागों, समाज और सरकार का साथ मिले, तो वर्तमान पीढ़ी को वादन और नृत्य की विरासत को सौंपने की कमलदेव की इच्छा पूरी हो सकती है. ये न सिर्फ लोककला व संस्कृति के लिए, प्रत्युत झारखंड के गौरव और क्षेत्रीय अस्मिता के लिए और डॉ रामदयाल मुंडा की प्रसिद्ध उक्ति ‘जे नाची से बाची’ के लिए भी जरूरी है.

(असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीतिशास्त्र विभाग, जीएलए कॉलेज, नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय, मेदिनीनगर, पलामू)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें