नौ जून बिरसा मुंडा के शहादत दिवस पर विशेष
खूंटी : उलगुलान का अंत नहीं होता है. बिरसा मुंडा की यह उक्ति वर्तमान समय का यथार्थ है. शहादत दिवस हमें सामाजिक एकता के सूत्र में बांधने का काम करता है. झारखंडी चेतना का मतलब विरासत के आधार पर स्वशासन व स्वायतता के जनतांत्रिक मूल्यों को आगे ले जाना है. संसाधनों की पूरी हिफाजत हो तो झारखंड की पहचान बनी रहेगी. संसाधनों पर समाज का हक मिले. जिला बनने के बाद आदिवासी इलाकों में विकास के नाम पर लूट मची है.
जंगल, पठार, जमीन आदि का दोहन हो रहा है. ऐसे में सबों को अपने हक व अस्मिता के लिए जागरूक होने की जरूरत है. बहरहाल भगवान बिरसा का स्वशासन का मूलमंत्र साकार होकर ही झारखंड अलग राज्य बना है. उनका आदर्श एवं कर्मठता सफल जीवन का संदेश जन-जन को हमेशा देता रहेगा. नौ जून के विशेष दिन पर नगाड़े की थाप सिर्फ नाच के लिए आह्वान नहीं करती, बल्कि संघर्ष की धमक का एहसास भी कराती है. भगवान बिरसा पर लिखित एक पंक्ति जो ग्रामीण क्षेत्र में उनके अनुयायिओं में विशेष कर देखने व सुनने को मिलती है कि :
हे बिरसा हमें समझदारी दो,
हम तुम्हारा उपदेश सुनेंगे.
तुम्हारा धर्म हमारे साथ रहेगा,
हम तुम्हारे पदचिह्नों पर चलेंगे,
क्योंकि तुम धरती के पिता हो.