मन से श्रीकृष्ण का अनुकरण करें

बुंडू : भजन, कीर्तन और प्रसाद चढ़ाने से ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाया जाना सफल नहीं होता. हमें सफल होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का अनुकरण करना होगा. विकट परिस्थिति में भाग्य, माता-पिता, पत्नी आदि को दोष देते हैं, जबकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म काल कोठरी में हुआ. तुरंत मां-बाप से उन्हें बिछड़ना पड़ा. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 26, 2016 7:57 AM
बुंडू : भजन, कीर्तन और प्रसाद चढ़ाने से ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाया जाना सफल नहीं होता. हमें सफल होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का अनुकरण करना होगा. विकट परिस्थिति में भाग्य, माता-पिता, पत्नी आदि को दोष देते हैं, जबकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म काल कोठरी में हुआ. तुरंत मां-बाप से उन्हें बिछड़ना पड़ा. बाल्य काल में ही राक्षसों से सामना हुआ.
यह बात पांचपरगना बुंडू द्वारा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर गुरुवार को आयोजित श्रीश्री कृष्णा जन्माष्टमी साधना शिविर में गुरुदेव श्री अरबिंद श्रीमाली जी ने कही. आगे उन्होंने कहा कि आठ वर्ष की उम्र में श्रीकृष्ण ने मथुरा से उज्जैन जाकर संदीपनी मुनि से कायाकल्प युक्त कुंडलिनी जागरण दीक्षा प्राप्त की. अपने जीवन काल में अधर्म को नष्ट कर धर्म स्थापित किया. कठिन परिस्थितियों में जीवन जीकर सत्य के मार्ग पर चला और प्रेरणास्रोत बने.
श्रीमाली जी ने कहा कि वैज्ञानिक मनुष्य के शरीर में ह्रदय का पता तो लगा लिये, लेकिन आज तक शरीर में प्राण और मन का पता नहीं कर पाये. क्योंकि ये भगवान का दिया हुआ अनमोल उपहार है. इसलिए हमें अपने शब्दों पर नियंत्रण रखते हुए सत्कर्म के मार्ग पर चलना चाहिए.
शिविर में प्रात: 10 बजे से गुरुपूजन, दीक्षा, प्रवचन एवं साधना का कार्यक्रम चलता रहा. संध्या में गुरु भाई-बहनों ने गुरुदेव श्री अरबिंद श्रीमाली जी को 25 किलो का फूलमाला पहनाया. एक भक्त ने चांदी से बने मुकुट और बांसुरी भेंट की. रात्रि में गुरु आरती, भजन के साथ, प्रसाद वितरण के बाद शिविर का समापन हुआ.

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