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आदिवासी संस्कृति की पहचान है पड़हा जतरा

पड़हा जतरा सह सम्मेलन का आयोजन

प्रतिनिधि, खूंटी पड़हा व्यवस्था व मुंडा मानकी व्यवस्था आदियुग से चला आ रहा है. उस युग में संविधान नहीं था. सरकारें भी नहीं होती थीं. पड़हा के राजा, गांव के मुंडा व पाहनों के द्वारा ही समाज का संचालन होता था. वे समाज को चलाने के लिए नियम, कानून का पालन कराते थे. वे बेहतर तरीके से समाज का संचालन करते थे. पड़हा में राजा, महाराजा की व्यवस्था को आज भी निभाया जा रहा है. उक्त बातें खूंटी के डुंगरा गांव में रविवार को आयोजित पड़हा जतरा सह सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि सांसद कालीचरण मुंडा ने कही. उन्होंने लोगों से अपनी संस्कृति, पड़हा व्यवस्था व नियम कानून को नहीं छोड़ने की अपील की. उन्होंने कहा कि पड़हा जतरा में अपने परंपरागत दैविक स्थल, पूजा पाठ, वेशभूषा के साथ नृत्य व सांस्कृतिक को बचाने का मौका मिलता है. धार्मिक परंपरा, संस्कृति व रीति-रिवाज ही हमारी पहचान हैं. संस्कृति और रीति-रिवाज को बचाये रखना हम सभी का कर्तव्य है. सांसद ने कहा कि आदिवासियों की पड़हा व्यवस्था त्रिस्तरीय सामाजिक व्यवस्था और धरोहर है. इसे अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए आदिवासी समाज को एकजुट होना होगा. आदिवासियों की रक्षा करके ही विश्व को बचाया जा सकता है. सदियों से चली आ रही इस पड़हा जतरा में लोगों की उपस्थिति इस बात को दर्शाता है कि आज भी समाज के लोग अपने धरोहर की रक्षा के लिए गंभीर हैं. मौके पर दयामनी बारला, महादेव मुंडा, पीटर मुंडू, विजय कुमार स्वांसी व ग्रामीण उपस्थित थे.

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