सोलर इलेक्ट्रिक चाक से चमक रही कुम्हारों की किस्मत

जिले के कुम्हार अब इलेक्ट्रिक सोलर चाक के उपयोग से अपने पारंपरिक व्यवसाय को नये आयाम दे रहे हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | January 4, 2025 7:14 PM

कम समय में ज्यादा उत्पादन, आसान हुआ पारंपरिक व्यवसाय

प्रतिनिधि, खूंटी

जिले के कुम्हार अब इलेक्ट्रिक सोलर चाक के उपयोग से अपने पारंपरिक व्यवसाय को नये आयाम दे रहे हैं. हाल ही में जिला प्रशासन की ओर से आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान सोलर चाक चलाने और इसके लाभ की जानकारी प्राप्त करने के बाद कुम्हार अब इस तकनीक का कुशलतापूर्वक उपयोग कर रहे हैं. प्रशिक्षित कुम्हार सोलर चाक की सहायता से मिट्टी के बर्तन, दीये, मूर्तियां और अन्य सामग्री का निर्माण कम समय में कर रहे हैं. इस आधुनिक तकनीक ने न केवल उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाया है, बल्कि उत्पादकता में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. उपायुक्त लोकेश मिश्रा ने कहा कि यह पहल कुम्हारों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास है. सोलर चाक पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ उनके व्यवसाय को भी सशक्त बना रहा है. जिला प्रशासन भविष्य में भी ऐसे नवाचारों को बढ़ावा देगा. सोलर चाक के इस्तेमाल से कुम्हार पारंपरिक हस्तशिल्प को संरक्षित कर रहे हैं, उनके उत्पादों में भी वृद्धि हो रही है.

दिन भर में बन जाता है 2000 दीया

राजेश प्रजापति ने बताया कि पहले सीमेंट वाले चाक से दिन भर में एक हजार से 12 सौ तक दीये बनते थे. लेकिन अब इलेक्ट्रिक चाक से लगभग दो हजार दीये बन जाते हैं. हालांकि दीवाली के समय दीयों की मांग ज्यादा होने से इलेक्ट्रिक चाक पर काम करना लाभ का सौदा होता है. अभी चाय पीने वाले कप की डिमांड हर मौसम में होने से कुल्हड़ बनाया जाता है.

पारंपरिक पेशे को छोड़ने का बना लिया था मन

परंपरागत रूप से कुम्हार जाति के लोग मिट्टी से बर्तन बनाने का काम करते हैं. कुम्हार जाति के लोग आज भी गांव में मिट्टी के बर्तन बनाकर अपनी आजीविका चलाते हैं. कुम्हारों के पास सदियों से हाथ से चलने वाले पत्थर के पहिये थे. पत्थर से बने इस चाक को चलाने में कुम्हार को काफी मेहनत करनी पड़ती थी. वही काम भी कम होता था, जिससे समय के साथ आमदनी पर असर पड़ता था. मिट्टी के बर्तनों की घटती मांग और मेहनत की वजह से कम आय के कारण इस जाति के लोगों ने बड़ी संख्या में अपने पारंपरिक पेशे को छोड़ दिया. यहां तक कि अधिकांश कुम्हार जाति के लोग भी शहरों में जाकर मजदूरी व अन्य कार्य करने लगे हैं.

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