वर्ष 2011 में थे 93, वर्ष 2016 में हैं सिर्फ 28

कोडरमा बाजार : राज्य में सुरक्षित प्रसव को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2011 में हर पंचायत में कम से कम एक ममता वाहन की व्यवस्था करने की बात कही गयी. उस समय कोडरमा जिले की 109 पंचायतों में 93 वाहन ममता वाहन के रूप में निबंधित किये गये. जोर-शोर से इसका प्रचार-प्रसार भी किया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 19, 2016 9:18 AM
कोडरमा बाजार : राज्य में सुरक्षित प्रसव को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2011 में हर पंचायत में कम से कम एक ममता वाहन की व्यवस्था करने की बात कही गयी. उस समय कोडरमा जिले की 109 पंचायतों में 93 वाहन ममता वाहन के रूप में निबंधित किये गये. जोर-शोर से इसका प्रचार-प्रसार भी किया गया, लेकिन धीरे-धीरे यह अपनी महत्ता खोता चला गया. आज लोगों को बार-बार फोन करने के बावजूद ममता वाहन की सुविधा नहीं मिलती.
पांच साल बाद ही ममता वाहनों की संख्या 93 से घट कर 28 (सतगावां प्रखंड में तीन, मरकच्चो में आठ, जयनगर में चार और कोडरमा में 14) रह गयी है. मरकच्चो और जयनगर में तो एक-एक ममता वाहन ही काम कर रहा है.
क्यों घट रहे ममता वाहन
विभागीय उदासीनता : नियमित रूप से वाहनों का निबंधन नहीं हो रहा है. रिन्युअल पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
किराये के भुगतान में शिथिलता : किराये के भुगतान में देरी की वजह से वाहन मालिकों की रुचि कम हुई है.
काॅल सेंटर में काम करनेवाले नंदू किशोर कहते हैं कि वाहन मालिक छह किलोमीटर से कम दूरी पर तो आराम से चले जाते हैं, लेकिन ज्यादा दूर जाना हो, तो वे कतराते हैं.
नियमों में फेरबदल : शुरू में वाहन मालिक के घर से गर्भवती के घर तक की दूरी तथा प्रसव के बाद प्रसूता को उसके घर तक छोड़ने और वाहन मालिक के घर तक वाहन पहुंचने की दूरी का पूरा किराया भुगतान किया जाता था. अब वाहन मालिकों को केवल गर्भवती के घर से अस्पताल और वापस उसके घर तक का किराया ही दिया जाता है. वाहन मालिकों का कहना है कि इससे उन्हें बचत नहीं होती.
छह किलोमीटर के मिलते हैं 300 रुपये
सहिया या गर्भवती महिला के परिजन सदर अस्पताल के ममता वाहन काल सेंटर में फोन करते हैं, तो महिला को प्रसव के लिए अस्पताल लाने के लिए वाहन भेजा जाता है. चालक की जिम्मेवारी महिला को उसके घर से अस्पताल लाने और प्रसव के बाद उसके घर पहुंचाने की है. इसके एवज में उसे छह किलोमीटर की दूरी के लिए 300 रुपये और इससे अधिक दूरी होने पर 300 रुपये के अतिरिक्त नौ रुपये प्रति किलोमीटर की दर से अतिरिक्त भुगतान स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जाता है. विभाग का दावा है कि ममता वाहन कॉल सेंटर 24 घंटे काम करता है. फोन आते ही ममता वाहन को रवाना कर दिया जाता है. हालांकि, ऐसा होता नहीं.
476 ने किया फोन, 452 को मिली सुविधा
फरवरी, 2016 में 476 लोगों ने ममता वाहन के लिए कॉल किया, जिसमें 452 लोगों को इसकी सुविधा उपलब्ध करायी गयी. वहीं, मार्च में 374 कॉल आये, जिसमें 349 को ममता वाहन की सुविधा उपलब्ध करायी गयी. विभागीय आंकड़े उत्साहवर्द्धक हैं, लेकिन सच्चाई इसके उलट है. लोगों की मानें, तो कॉल सेंटर में कोई फोन नहीं उठाता. महज 60-70 फीसदी लोगों को ही सुविधा मिल पाती है.
किसी को सुविधा नहीं मिली, तो किसी को किराया
केस 1 : 21 मार्च को सहिया संजू ने कॉल सेंटर को फोन किया, पर ममता वाहन नहीं पंहुचा. किराये की गाड़ी से मरकच्चो पीएचसी में महिला को ले जाना पड़ा.
केस 2 : मरकच्चो के हामिद अंसारी, खरखार के भोला मेहता, फुलवारिया के पिंटू यादव अपने वाहन को ममता वाहन के रूप में चलाने के लिए आवेदन दिया है, अब तक निबंधन नहीं हुआ.
केस 3 : जयनगर के सिंगारडीह के मुन्ना यादव ने दो महीने पहले कागजात जमा किये, लेकिन उनके वाहन का निबंधन नहीं हुआ. इसी प्रखंड के घाघडीह के सुभाष यादव का वाहन बतौर ममता वाहन दो महीने चला, लेकिन बकाया किराये का भुगतान नहीं हुआ.
केस 4 : दुरोडीह के कार्तिक दास के और चचाई के सुभाष यादव के वाहन का निबंधन होने के बावजूद इन्हें कभी काम नहीं मिला. दोनों ने अपने वाहन वापस ले लिये.

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