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हिरोडीह में वर्ष 1973 में हुई थी चैती दुर्गा पूजा की शुरुआत

51 वर्षों से इस पूजा की परंपरा जारी है़

राजेश सिंह : जयनगर. हिरोडीह बाजार में चैती दुर्गा पूजा की शुरुआत 1973 में मुंशी मोदी, महावीर राम, बासुदेव यादव, मंगर महतो, निरपत यादव, छट्टू महतो, विजय नंदन यादव, आनंदी सिंह, सरयु यादव, मुखलाल मोदी, बहादुर सिंह आदि ने की थी़ कहा जाता है कि पहले यहां के लोग चार किमी दूर बेकोबार के मेला में शामिल होते थे़ वर्ष 1960-61 में दोनों गांवों के बीच विवाद हो गया़ उसके बाद उपरोक्त लोगों ने मिल बैठ कर तय किया कि हिरोडीह में चैती दुर्गा पूजा की जाये और 51 वर्षों से इस पूजा की परंपरा जारी है़ हालांकि संस्थापकों में से कई लोग अब हमारे बीच नहीं हैं, फिर भी सार्वजनिक दुर्गा पूजा का गठन कर पूजा की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है़ यहां दशमी को विशेष मेला लगता है, जिसमें कोडरमा प्रखंड के चिगलाबर, सौंदेडीह, जयनगर प्रखंड के हिरोडीह, रेभनाडीह, तेतरियाडीह, कंद्रपडीह, गम्हरबाद, कटहाडीह, खेशकरी, पपरामो, सुगाशाख, घंघरी, डहुआटोल, बीरेंद्र नगर, बाराडीह, करियावां सहित दर्जनों गांव के लोगों की भीड़ उमड़ती है़ फिलहाल यहां पुजारी भुवनेश्वर यादव है़ं जबकि पूजा-अर्चना अवध पांडेय डंडाडीह करा रहे है़ं इससे पहले घंघरी अमेरिका पांडेय द्वारा पूजा अर्चना करायी जाती थी़ उनके अस्वस्थ होने के बाद समिति ने अवध बाबा को यह जिम्मेवारी सौंपी है़ बुजुर्गों ने बताया कि यहां भी पूजा की शुरुआत झोपड़ी से हुई थी़ फिर 50 वर्षों के दौरान इस मंदिर व पूजा स्थल का विकास हुआ़ इसमें सरयु यादव सहित स्थानीय लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. यहां पूजोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते है़ं अभी से ही चाट पकौड़े, मिठाई की दुकाने सज गयी है़ं चारों तरफ मंत्रोच्चार व भजन सुनायी दे रहे है़ं फिलहाल पूजा समिति के अध्यक्ष हिरोडीह मुखिया संगीता देवी के प्रतिनिधि मनोहर यादव है़ं पूजा अर्चना को सफल बनाने में समस्त ग्रामीण लगे है़ं गुरुवार को नवरात्र पाठ के दौरान यहां मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप की पूजा अर्चना की गयी़ मेला स्थल पर मंडरा रहा है खतरा इधर, रेलवे द्वारा डेडीकेटेड फ्रेट कोरिडोर निर्माण के लिए लगातार की जा रही घेराबंदी से मेला स्थल का अस्तित्व खतरे में है. संभवत: अगले वर्ष मेला लगने वाली जगह पर रेलवे की घेराबंदी हो चुकी होगी़ रेलवे ने जो निशान दिया है, वह मेला स्थल को भी अपने दायरे में ले रहा है़ यदि ऐसा हुआ, तो मेला लगना दूभर हो जायेगा और दर्जनों गांव के लोगों का मेला स्थल तक पहुंचना आसान नहीं होगा़

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