कोडरमा : घूंघट में रहने की थी मजबूरी, आज मिसाल बनी संगीता

समिति के साथ जुड़ते हुए संगीता शर्मा ने नि:स्वार्थ भाव से मानवता की सेवा के लिए मृत्योपरांत नेत्र, लीवर, किडनी व हृदय दान करने का संकल्प अन्य से करवाने का भी बीड़ा उठाया है.

By Prabhat Khabar News Desk | January 7, 2024 6:30 AM

विकास, कोडरमा : कोडरमा जिले के झुमरीतिलैयाशहर के माइका गली निवासी संगीता शर्मा आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है़ं शिक्षा जगत के साथ समाज सेवा के क्षेत्र में आज वह एक मिसाल बन चुकी हैं संगीता के घर परिवार में एक समय था, जब इन्हें घूंघट में रहने की मजबूरी थी, पर परिवार-समाज व स्वयं के बीच सामंजस्य बैठा इन्होंने खुद को ऐसा साबित किया कि आज वह जाना पहचाना नाम बन चुकी हैं. 65 वर्षीया संगीता शर्मा वर्तमान में रोटरी क्लब के जोन-8 की असिस्टेंट गवर्नर है़ं इसके साथ ही सीबीएसई से मान्यता प्राप्त मॉडर्न पब्लिक स्कूल झुमरीतिलैया की निदेशिका हैं. जीवन के इस उम्र में भी वह अपने शिक्षण संस्थान का कामकाज पूरी तरह देखने के साथ समाजसेवा के क्षेत्र में आगे रहती हैं.

सबसे बड़ी बात है कि जीते जी वह समाज की सेवा तो कर ही रही हैं, मृत्योपरांत भी उनका शरीर का अंग किसी के काम आये, इस सोच के साथ उन्होंने अपना देह दान की स्वीकृति पूर्व में दे दी है. संगीता ने मरणोपरांत देहदान का निर्णय लेते हुए दधीचि देहदान समिति बिहार को आर्गेन डोनेशन का स्वीकृति फार्म चार अगस्त 2018 को दे दिया है. यही नहीं, उन्होंने स्वयं के साथ ही पति राजेंद्र शर्मा, 30 वर्षीय मुंबई में आर्टिस्ट पुत्री प्रशंसा शर्मा को भी देह दान के लिए राजी कर उनका भी फॉर्म भरवा दिया है.

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समिति के साथ जुड़ते हुए संगीता शर्मा ने नि:स्वार्थ भाव से मानवता की सेवा के लिए मृत्योपरांत नेत्र, लीवर, किडनी व हृदय दान करने का संकल्प अन्य से करवाने का भी बीड़ा उठाया है़ जीते जी रक्तदान, मृत्यु के बाद अंगदान व नेत्रदान के लिए उन्होंने अब तक अपने परिवार के सदस्यों के साथ कुल 23 लोगों को ऑर्गेन डोनेशन के लिए दधीचि देहदान समिति बिहार से संपर्क करा इसके लिए फॉर्म भरवाया है़ ऐसे समय में जब पूरी दुनिया में अधिकतर लोगों को अपने अलावा किसी अन्य की चिंता नहीं होती एक महिला के द्वारा इस तरह की पहल करना समाज को अलग संदेश देता है.

शहर में करायी पहले डायलिसिस सेंटर की शुरुआत

संगीता शर्मा स्कूल का संचालन करते हुए समाजसेवा के उद्देश्य से वर्ष 2014 में रोटरी क्लब ऑफ कोडरमा से जुड़ी़ इसके बाद दो वर्ष 2017-19 रोटरी क्लब ऑफ कोडरमा की अध्यक्ष रही़ अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने शहर में पहले डायलिसिस सेंटर बसंत शर्मा रुक्मिणी देवी डायलिसिस सेंटर की शुरुआत की़ इसके लिए स्वयं आगे बढ़ कर दान किया़ अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में किए गए कार्यों के साथ ही वह पीड़ित लोगों की सेवा, महिलाओं के उत्थान, शिक्षा, स्वरोजगार, गरीब व वंचित बच्चों की मदद के लिए तैयार रहती हैं. उन्होंने अब तक क्लब की योजना गिफ्ट ऑफ लाइफ के तहत दिल में छेद वाले कई बच्चों का नि:शुृल्क ऑपरेशन करवाया है.

शिक्षा तभी सार्थक जब बचा पायें अपनी भाषा, संस्कृति व सभ्यता

संगीता ने प्रभात खबर से बातचीत में बताया कि जिस परिवार की मैं बहू बन कर आई थी, वहां शुरुआत के दिनों में घूंघट में रहना पड़ता था़ बाद में परिवार से तालमेल बना कर घर से बाहर निकली और संघर्ष करते हुए अपने दायित्वों को पूरा करती रही़ आज महिलाएं हर क्षेत्र में अच्छा कर रही हैं, पर इसका दूसरा पहलू यह भी है कि मर्यादाओं के साथ संस्कार भी पीछे छूटते जा रहे हैं. हर जगह स्वाभिमान का टकराव हो रहा है़ दांपत्य संबंधों में छोटी-छोटी बात को लेकर कटुता आ रही है़ तलाक हो रहे हैं, यह चिंता की बात है़ शिक्षा मनुष्य को मर्यादित बनाती है़ शिक्षित होने का मतलब अत्यधिक स्वतंत्र व उशृंखल होना कदापि नहीं है महिलाएं मर्यादाओं का निर्वहन करते हुए परिवार के साथ तालमेल बना कर चलें, तो जीवन खुशी पूर्वक बीतेगा़ संगीता कहती हैं कि गलत होता है, तो दबिए नहीं, पर रिश्तों में सामंजस्य जरूरी है़ शिक्षा तभी सार्थक है, जब आप अपनी भाषा, संस्कृति व सभ्यता को बचा कर रख पायें. आज लोग अपना पहनावा व बोलचाल छोड़ रहे हैं, अपनी मातृभाषा पर ही पकड़ नहीं है़ यह अच्छा नहीं है.

विदेशी धरती पर मिल चुका है सम्मान

अपनी कार्यकुशलता के बल पर संगीता शर्मा ने न सिर्फ जिले में बल्कि देश व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान हासिल किया है़ शिक्षा व समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य को लेकर 11 नवंबर 2016 को उन्हें बैंकॉक में आयोजित इंटरनेशनल सेमिनार में इंटरनेशनल एजुकेशन एक्सलेंस अवार्ड मिल चुका है़ इसके साथ ही वर्ष 2017 में एशिया एजुकेशन समिट एंड अवार्ड से भी वह सम्मानित हो चुकी हैं

स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से चुनौतियों को किया पार

संगीता की सफलता का सबसे बड़ा कारण उनका काम के प्रति समर्पण है़ वह कहती हैं मैं काम को बोझ समझने के बजाय दिलचस्पी लेकर करती हूं. हमेशा स्वस्थ प्रतिस्पर्धा कर चुनौतियों को पार करने का प्रयास किया है़ मैंने शहर में इंग्लिश मीडियम स्कूल की शुरुआत उस समय की, जब यहां इसकी संख्या न के बराबर थी़ 22 जुलाई 1991 को मॉडर्न पब्लिक स्कूल की स्थापना की़ शुरुआत में काफी कम बच्चे थे़ शहर में उस समय एंग्लो इंडियन इंग्लिश मीडियम स्कूल चला रहे थे़ मेरे विद्यालय में बच्चों की संख्या काफी कम थी़ मेहनत व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बल पर आज विद्यालय में बच्चों की संख्या 1500 से पार है़

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