कोडरमा के तिलैया बस्ती में 178 वर्ष पहले ऐसे हुई थी दुर्गा पूजा की शुरुआत
काली प्रसाद ने बताया कि राजतंत्र के दौरान उनके राज परिवार के अधीन तिलैया, मडुआटांड़ और मोरियावां मौजा का क्षेत्र था. राजा किला के समीप बने दुर्गा मंडप के पुराने भवन के जर्जर होने पर जन सहयोग से भव्य दुर्गा मंडप का निर्माण किया गया है
झुमरीतिलैया : शहर में विभिन्न जगहों पर दुर्गा पूजा का अपना इतिहास है़ सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति तिलैया बस्ती का इतिहास भी लंबे समय का रहा है. यहां आज भी राजशाही परंपरा का निर्वाह कर पूजा की जा रही है. तिलैया बस्ती में 178 साल पहले राज परिवार ने पूजा की शुरुआत की थी़ तिलैया बस्ती में छोटे राजा के पद पर रहे द्वारिका नारायण शाही के पुत्र काली प्रसाद शाही ने बताया कि वर्ष 1845 में उनके परदादा नेहाल शाही द्वारा तिलैया बस्ती में दुर्गा पूजा की शुरुआत की गयी थी. इसके बाद उनके दादा अमृत नारायण शाही और उनके पिता ने राजतंत्र काल के दौरान दुर्गा पूजा का आयोजन किया. इसके बाद लगातार स्थानीय लोगों के सहयोग से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है. काली प्रसाद ने बताया कि राजतंत्र के दौरान उनके राज परिवार के अधीन तिलैया, मडुआटांड़ और मोरियावां मौजा का क्षेत्र था. राजा किला के समीप बने दुर्गा मंडप के पुराने भवन के जर्जर होने पर जन सहयोग से भव्य दुर्गा मंडप का निर्माण किया गया है. दुर्गा मंडप प्रांगण में शारदीय नवरात्र व चैत्र नवरात्र के दौरान प्रतिमा स्थापित करने के लिए दो अलग-अलग प्रतिमा स्थल भी बनाये गये हैं.
ऐसे करें तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा
मां भवानी के तृतीय स्वरूपा मां चंद्रघंटा की उपासना वंदे वांछित लाभाय चंद्रार्धकृत शेखरम्, सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम मंत्र उच्चारण कर मां चंद्रघंटा का ध्यान किया जाता है. पंडित सत्यनारायण पांडेय के अनुसार, नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है. मां भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही कर देती हैं. इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है. इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों की प्रेतबाधा से रक्षा करती है. उन्होंने बताया कि मां की पूजा के लिए सर्वप्रथम माता की चौकी पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें. चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भर कर उस पर नारियल रख कर कलश स्थापना करें. इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां चंद्रघंटा सहित समस्त स्थापित देवताओं की पूजा करें. इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें. तत्पश्चात प्रसाद वितरण करें.
Also Read: 150 वर्ष पुराना है कोडरमा में बांसती दुर्गा पूजा का इतिहास, ऐसे हुई थी शुरूआत