महावीरी झंड बनाने में अहम भूमिका निभा रही आधी आबादी
रामनवमी आते ही पूरे क्षेत्र में महावीरी झंडों की मांग बढ़ गयी है. इस मांग को पूरा करने के लिए आधी आबादी अहम भूमिका निभा रही है.
झुमरीतिलैया. रामनवमी आते ही पूरे क्षेत्र में महावीरी झंडों की मांग बढ़ गयी है. इस मांग को पूरा करने के लिए आधी आबादी अहम भूमिका निभा रही है. शहर के ताराटांड़ की अंजू देवी अपनी टीम के साथ महावीरी झंडा बनाने में जुटी हुई हैं. उन्होंने अपने हुनर से न सिर्फ खुद को सशक्त बनाया है, बल्कि कई जरूरतमंद महिलाओं को भी रोजगार दिया है़ अंजू बताती हैं कि रामनवमी के छह महीने पहले से ही वह झंडों की सिलाई में जुट जाती हैं. उनके साथ पांच महिलाएं काम कर रही हैं. हर दिन 500-600 झंडे तैयार किये जा रहे हैं. इन झंडों की कीमत तीन रुपये से 1500 रुपये तक होती है़ ये झंडे कोडरमा के अलावा डोमचांच, गिरिडीह, बरही और चौपारण तक भेजे जाते हैं. जानकारी के अनुसार रामनवमी के दौरान महावीरी झंडों की मांग चरम पर होती है़ इस दौरान हर साल हजारों झंडे तैयार कर बाजार में भेजे जाते हैं. अंजू देवी बताती हैं कि इस दौरान उनकी कमाई भी काफी बढ़ जाती है. रामनवमी के छह महीने बाद अंजू देवी और उनकी टीम माता की चुनरी तैयार करने का काम करती हैं. इस सिलाई के जरिए वह सालभर रोजगार से जुड़ी रहती हैं. उनके इस कार्य ने कई महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है़
बेटी को अफसर बनाना चाहती हैं अंजू
अंजू देवी का सपना है कि उनकी बेटी अन्नू पढ़-लिखकर अफसर बने़ अन्नू भी अपनी मां के संघर्ष और मेहनत को देखकर प्रेरित होती है़ उसने बताया कि उसकी परवरिश सिलाई मशीन के सहारे हुई है और उसकी मां हर जरूरतमंद महिला को रोजगार देने के लिए हमेशा तैयार रहती है. वहीं अंजू देवी का कहना है कि माता रानी की कृपा से उनके जीवन में किसी चीज की कमी नहीं है. जो भी मेहनत करता है, उसे सफलता जरूर मिलती है़डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
