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गणगौर को लेकर पूजा-पाठ में जुटीं नवविवाहिताएं

होलिका दहन के साथ शुरू हुआ यह पर्व 11 अप्रैल को संपन्न होगा़

झुमरीतिलैया. हरिये गोबर गोली धावो मोत्या चोक पुरावो …मोतिया का दोय आखां ल्याबो निरणी गोर पुजाओ.. ऐसे ही भक्तिमय गीतों की गूंज इन दिनों शहर के राजस्थानी परिवारों के घरों में सुबह से ही सुनायी देने लगी है़ राजस्थानियों के महत्वपूर्ण गणगौर पर्व को लेकर नवविवाहिताएं और युवतियां इस तरह के गीत अहले सुबह से ही गुनगुनाती हुई पूजन कार्य में जुट रही हैं. होलिका दहन के साथ शुरू हुआ यह पर्व 11 अप्रैल को संपन्न होगा़ उल्लेखनीय है कि राजस्थानी नवविवाहिताओं के लिए यह पर्व अति महत्वपूर्ण होता है, इसमें नवविवाहिताएं अपने ससुराल से इस पर्व को मनाने के लिए होलिका दहन के पूर्व मायके पहुंच जाती हैं और भक्तिभाव के साथ लगातार 16 दिनों तक इस पर्व को मनाती है़ं होलिका दहन के दूसरे दिन अहले सुबह से इस पर्व की शुरूआत होती है़ पहले चरण में इसे पींडिया कहा जाता है, इसमें होलिका दहन से राख से आठ पिंड व गोबर से आठ पिंड बनाये जाते हैं. इन्हीं पींडियों की पूजा प्रतिदिन होती है, जिसमें समूह में नवविवाहिताएं शामिल होती हैं. तिलैया शहर में इन दिनों अग्रवाल समाज, माहेश्वरी समाज, मारवाड़ी ब्राह्मण समाज की नवविवाहिताएं अमर सुहाग के लिए तथा कुंआरी कन्याएं अच्छे वर के लिए यह व्रत कर रही हैं. गणगौर पूजने वालों के घरों में ईशर-गौरा (शिव-पार्वती) एवं अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की पूजा की जाती है़ पूजा के अंतिम दिन महिलाएं और बालाएं अच्छे वस्त्र और आभूषण धारण कर गणगौर की पूजा करती है़ं इस दिन ईशर-गौरा की मूर्तियों को सजा कर शोभायात्रा निकाली जाती है, इसके पूर्व ईशर-गौरा एवं अन्य देवी-देवताओं को अलग-अलग 16 कुओं का पानी लाकर उन्हें पिलाती है़ं इसी के साथ व्रत का पारण होता है़ इधर नव विवाहितों के घरों में गौरबिंदोरा निकालने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है़ जहां की परिवार के लोग इकट्ठा होकर पूजा अर्चना करते हैं और उपहार के रूप में नकद चढ़ाते हैं.

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