झारखंड का प्रतिनिधित्व करेगी कोडरमा की श्रेया
झुमरीतिलैया की दिव्यांग तीरंदाज श्रेया कुमारी ने अपनी मेहनत और लगन से यह साबित कर दिया है कि चुनौतियां चाहे जितनी भी बड़ी हों, उन्हें दृढ़ इच्छाशक्ति से पार किया जा सकता है़
कोडरमा. झुमरीतिलैया की दिव्यांग तीरंदाज श्रेया कुमारी ने अपनी मेहनत और लगन से यह साबित कर दिया है कि चुनौतियां चाहे जितनी भी बड़ी हों, उन्हें दृढ़ इच्छाशक्ति से पार किया जा सकता है़ बचपन से पोलियो के पीड़ित होने के बावजूद श्रेया ने राष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी में अपनी जगह बनायी है़ श्रेया के पिता रूपेश कुमार का महाराणा प्रताप चौक के पास एक छोटा सी इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान है. वहीं उनकी मां कंचन बाला गृहिणी हैं. आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद श्रेया ने तीरंदाजी के क्षेत्र में अपने हौसले और प्रदर्शन से सभी को प्रभावित किया है़
कैसे शुरू हुआ सफर
श्रेया ने तीरंदाजी की प्रेरणा सेक्रेड हार्ट स्कूल कोडरमा से मिली. वहां श्रेया 10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही थीं. वहां उन्होंने अपने सीनियर विशाल सिंह को तीरंदाजी का अभ्यास करते देखा और उसी समय उनके मन में इसे सीखने की इच्छा जागी़ विशाल सिंह से श्रेया प्रशिक्षण लेने की शुरुआत की. इसी बीच 2020 में कोरोना की वजह से लॉकडाउन लग गया. इस वजह से श्रेया का अभ्यास पूरी तरह से बंद हो गया़ लॉकडाउन के कारण न केवल कोडरमा बल्कि पूरे देश में तीरंदाजी के कोचिंग सेंटर बंद हो गये. साथ ही धनबाद से आने वाले कोच ने भी आना बंद कर दिया़ यह समय श्रेया के लिए बेहद कठिन था, क्योंकि चार साल तक उनकी तीरंदाजी की ट्रेनिंग रुक गयी. 17 फरवरी 2023 को श्रेया ने अपने सपनों को फिर से जगाया़ उन्होंने बागीटांड़ स्थित फोकस एंड फेथ तीरंदाजी ट्रेनिंग सेंटर में कोच विशाल सिंह के मार्गदर्शन में दोबारा अभ्यास शुरू किया़महंगे उपकरण और आर्थिक चुनौती
तीरंदाजी में उपयोग होने वाले उपकरण काफी महंगे होते हैं. कंपाउंड बो का मूल्य 4-5 लाख रुपये तक होता है़ आर्थिक स्थिति के कारण श्रेया अब तक महंगे उपकरण नहीं खरीद पायी हैं और सामान्य उपकरणों के साथ अभ्यास कर रही हैं, इसके बावजूद उनका प्रदर्शन असाधारण है़ यदि उन्हें सरकार या समाज से सहयोग मिले, तो वह अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन कर सकती है.राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
श्रेया को 8 से 12 जनवरी 2025 तक राजस्थान के जयपुर में आयोजित होने वाली राष्ट्रीय पैरा तीरंदाजी चैंपियनशिप में झारखंड का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है़ उनका सपना है कि वह पैरा ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर देश और झारखंड का गौरव बढ़ाये. श्रेया की यह यात्रा न केवल उनके साहस और मेहनत की मिसाल है, बल्कि यह भी बताती है कि सही मार्गदर्शन और सहयोग मिलने पर छोटे शहरों के खिलाड़ी भी वैश्विक मंच पर चमक सकते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है