Jharkhand News: एक समय वह था जब हजारीबाग से अलग होकर कोडरमा जिला अस्तित्व में आया़ और एक समय अब है जब जिला बने 28 वर्षों का लंबा समय बीत चुका है. इन 28 वर्षों में कोडरमा में हुए बदलाव की बात करें, तो कुछ सेक्टर में यह जरूर दिखता है, पर कुछ क्षेत्र में आज भी बड़े बदलाव की उम्मीदें लोगों के बीच बंधी हुई है. लोग अब भी इन मुद्दों पर बदलाव की चाह रखते हैं.
10 अप्रैल, 1994 को अस्तित्व में आया कोडरमा जिला
जानकारी के अनुसार, 10 अप्रैल 1994 को कोडरमा जिला अस्तित्व में आया था. इन 28 वर्षों में जिले में शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ बदलाव तो हुए, पर अपेक्षित बदलाव की जरूरत आज भी महसूस की जा रही है. सबसे खराब स्थिति तो रोजी रोजगार को लेकर है. यहां आज तक रोजगार का बड़ा साधन विकसित नहीं हो पाया है. हालांकि, दूसरी ओर बात खेलकूद व पर्यटन के क्षेत्र की करें, तो हाल के दिनों में बदलाव की तस्वीर दिखनी शुरू हुई.
शिक्षा
जिले में शिक्षा के क्षेत्र की बात करें, तो स्थापना काल के बाद से लगातार सुधार हुआ है, पर अब भी सुधार की जरूरत महसूस की जाती है. स्कूलों की संख्या से इतर जिले में अब भी एकमात्र अंगीभूत जेजे कॉलेज ही है. यहां भी छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की भारी कमी है. यह अलग बात है कि हाल के वर्षों में महिला महाविद्यालय, डोमचांच व सतगावां में डिग्री कॉलेज की स्थापना की गयी है, लेकिन विद्यार्थियों को पूरा लाभ नहीं मिल रहा है. दूसरी ओर कोडरमा में करीब सौ करोड़ की लागत से बना इंजीनियरिंग कॉलेज भी आज तक शुरू नहीं हो सका है.
कोडरमा में स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुए बदलाव की बात करें, तो हाल के वर्षाें तक यहां के सदर अस्पताल में भी मूलभूत चिकित्सा सुविधा बहाल नहीं दिखती थी, पर इन दिनों यहां बदलाव की तस्वीर दिख रही है. सदर अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड से लेकर अन्य सेक्टर में डीसी आदित्य रंजन के प्रयास से बदलाव हुए हैं, सुविधाएं बढ़ी हैं, तो मरीजों की संख्या में भी इजाफा हुआ है. आज यहां पैथोलॉजी से लेकर अन्य सेंटर तक संचालित हो रहे हैं. दूसरी ओर अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैंं. स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ा बदलाव करमा मेडिकल कॉलेज के निर्माण के बाद दिखता, पर 319 करोड़ की लागत से बनने वाले इस कॉलेज के निर्माण की गति काफी धीमी है.
जीवन को चलाने के लिए सबसे जरूरी आज के समय में रोजगार है, पर जिले में रोजगार के बड़े साधन नहीं दिखते एक समय था, जब यहां की अभ्रक खदानों व माइका फैक्ट्रियों में हजारों मजदूर काम करते थे, पर अदूरदर्शी नीति व फारेस्ट एक्ट की वजह से माइका खदानें बंद हो गयी. अब यह काम कुछ जगहों पर अवैध रूप से चलता है, पर प्रत्यक्ष रूप से रोजगार न के बराबर है़ यही हाल अब पत्थर उद्योग का होता दिख रहा है. नियमों के पेंच में फंस कर लगातार खदानों का लीज नवीनीकरण नहीं हो रहा है, तो क्रशर इकाइयों पर ताले लग रहे हैं. इन सबके बीच बड़े उद्योग धंधे की स्थापना को लेकर प्रयास नहीं दिखता. कुछ स्टील सेक्टर की इकाइयों को छोड़ कर रोजगार के नाम पर कोडरमा में फिलहाल कुछ नहीं है.
जिले में खेलकूद के साधन व पर्यटन के क्षेत्र में काम की बात करें, तो काफी कुछ करने की जरूरत है. हालांकि, हाल के दिनों में कुछ काम जरूर हुए हैं, खास कर तिलैया डैम, वृंदाहा वाटर फॉल, सतगावां के पेटो जल प्रपात, घोड़सीमर धाम, मरकच्चो के चंचालिनी धाम, करमा धाम, ध्वजाधारी धाम आदि जगहों पर तस्वीर बदलने की कोशिश हुई है.
पर्यटन विकास मद से इन जगहों पर काम चल भी रहा है. आनेवाले दिनों में तस्वीर और बदलने की उम्मीद है. दूसरी ओर खेलकूद के क्षेत्र में बागीटांड़ स्टेडियम को छोड़ कर तिलैया के गुमो स्थित झूमर में स्टेडियम निर्माण का प्रस्ताव है. यही नहीं, जिले की विभिन्न 12 जगहों पर पार्क सह स्टेडियम आदि के निर्माण का प्रस्ताव जिला प्रशासन ने तैयार किया है. करीब 10 करोड़ की लागत से इनका निर्माण होगा.
शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में बदलाव की कोशिश
इस संबंध में डीसी आदित्य रंजन ने कहा कि कोडरमा में वैध-अवैध खनन की वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ा है. ऐसे में शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में बदलाव की कोशिश है. हमारा प्रयास है कि कोडरमा राज्य स्तर पर हब बने. यहां ऐसी सुविधाएं हो कि बिहार-झारखंड के लोग इलाज कराने आएं शिक्षा की राजधानी कोटा, राज्य के रांची, बोकारो जैसा कोडरमा में भी माहौल हो इसको लेकर काम किया जाएगा. भौगोलिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए जिले में पर्यटन के क्षेत्र में भी काम हो रहा है, ताकि लोगों का आकर्षण बढ़े. जिला प्रशासन यहां के विकास के लिए प्रयासरत है.
रिपोर्ट : विकास, कोडरमा.