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वेलेंटाइन डे पर विशेष : नेतरहाट में आज भी जिंदा है एक गड़ेरिया और मैग्‍नोलिया की प्रेम कहानी

आशीष टैगोर, लातेहार न उम्र की सीमा हो न जन्म का बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन… इन पंक्तियों से बेहतर प्रेम की अभिव्यक्ति और क्या हो सकती है. कहते हैं न कि प्रेम न तो उम्र देखता है और ना ही यह देखता है कि आप किस जाति या धर्म में […]

आशीष टैगोर, लातेहार

न उम्र की सीमा हो न जन्म का बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन… इन पंक्तियों से बेहतर प्रेम की अभिव्यक्ति और क्या हो सकती है. कहते हैं न कि प्रेम न तो उम्र देखता है और ना ही यह देखता है कि आप किस जाति या धर्म में जन्में हैं. प्रेम के लिए तो सिर्फ मन से मन मिलने की दरकार है. यही कारण है कि जब नेतरहाट के एक गड़ेरिया और अंग्रेज अफसर की बेटी मैग्‍नोलिया का दिल से दिल मिला तो फसाना बन गया.

खुबसूरत वादियां, ऊंच्चे-नीचे पर्वत और कल-कल बहती नदियों के बीच बसे नेतरहाट को अंग्रेजों ने ‘नेचरहट’ का नाम दिया था. जो बाद में नेतरहाट में तब्दील हो गया. कहते हैं कि जब अंग्रेज पहली बार यहां आये तो गरमी का मौसम था, बाजवूद इसके नेतरहाट में उन्हें ठंड का आभास हुआ. इसके बाद अंग्रेजों ने यहां अपना कैंप कार्यालय खोला. इसी कैंप कार्यालय में एक अंग्रेज अफसर रहता था. उसकी एक बेटी थी मैग्नोलिया.

मैग्नोलिया बेहद खुबसूरत थी और उसे घुड़सवारी का बहुत शौक था. वह नेतरहाट के उस चट्टान पर अक्सर पर जाया करती थी जहां से सूर्यास्त का नजारा बेहद ही खुबसूरत दिखता था. इसी चट्टान पर बैठकर एक स्थानीय गड़ेरिया प्रति दिन अपनी बांसुरी बजाता था. जब उस गड़ेरिये की बांसुरी की तान इन वादियों में गुंजती थी तो मैग्नोलिया उसके पास खींची चली आती थी. यह सिलसिला लगातार जारी रहा.

अब तक दोनों में गहरी दोस्ती हो गयी थी. लेकिन उनकी यह दोस्ती कब प्यार में बदल गयी, दोनों को पता ही नहीं चला. गड़ेरिया यहां रोज यहां अपनी मगन में बांसुरी बजाता और मैग्नोलिया उसके कंधे पर सिर रखकर बांसुरी की तान सुनती रहती. लेकिन उनके इस प्यार को मानो जमाने की नजर लग गयी. धीरे-धीरे यह बात मैग्नोलिया के अंग्रेज पिता तक पहुंची. फिर क्या था, अंग्रेज अफसर आग बबूला हो गया और अपनी बेटी व उस गड़ेरिये को एक-दूसरे से दूर रहने का फरमान सुना उाला. लेकिन कहते हैं न कि प्यार को किसी सीमा या बंधन में नहीं रखा जा सकता है.

पिता के आदेश के बावजूद मैग्नोलिया रोज गड़ेरिये के पास जाती रही. अंत में अंग्रेज अफसर ने गड़ेरिये को जान से मारने का आदेश दे दिया. फरमान सुनते ही अंग्रेज सैनिकों ने उसे पकड़कर जान से मार दिया. जब यह बात मैग्नोलिया को पता चली तो वह सुधबुध खो बैठी. अपने घोड़े के साथ उसी चट्टान पर पहुंची जहां वह घंटों उस गड़ेरिये के कंधे पर सिर रखकर बांसुरी सुना करती थी. आज वह चट्टान वीरान थी और ना ही गड़ेरिये की बांसुरी की तान फिंजाओं में गुंज रही थी.

अपने प्यार को खोने के गम में मैग्नोलिया ने अपने घोड़े के साथ उस चट्टान से सैकड़ों फीट नीचे खाई में छलांग लगा कर अपने अधूरे प्यार की कहानी को अमर कर दिया. आज भी वह चट्टान नेतरहाट में है. इस जगह को मैग्नोलिया प्वाइंट का नाम दिया गया है. यहां उस गड़ेरिये और मैग्नोलिया की एक प्रतिमा लगायी गयी है. यहां पर्यटन सुविधाएं बहाल करने का प्रयास जारी है. प्रति वर्ष हजारों लोग मैग्नोलिया प्वाइंट पर आते हैं और न सिर्फ डूबते सूरज का नजारा करते हैं वरन उस गड़ेरिये और मैग्नोलिया के अधूरे प्रेम को भी याद करते हैं.

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