दहशत में हैं बंदुआ के लोग
परदेशी लोहरा की मौत के बाद गांव में सन्नाटा हेरहंज (लातेहार) : प्रखंड के अति संवेदनशील बंदुआ गांव में नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का खौफ लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है. लोग अब भी भय के वातावरण में जी रहे हैं. शनिवार को भी गांव में सन्नाटा पसरा था. विस्फोट में मारे गये […]
परदेशी लोहरा की मौत के बाद गांव में सन्नाटा
हेरहंज (लातेहार) : प्रखंड के अति संवेदनशील बंदुआ गांव में नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का खौफ लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है. लोग अब भी भय के वातावरण में जी रहे हैं. शनिवार को भी गांव में सन्नाटा पसरा था.
विस्फोट में मारे गये बच्चे परदेशी लोहरा के घर से रोने की आ रही आवाज गांव–समाज को झकझोर रही थी. पिता बिलोखन लोहरा कुछ भी बता पाने में असमर्थ था. लोग किसी भी अपरिचित से बात करने में झिझक रहे थे. कुछ ग्रामीणों ने बताया कि खेती के लिए वन भूमि को आबाद किया था. जिस पर मकई लगा है.
माओवादियों ने प्रति पेड़ व पौधे काटने के एवज में पांच–पांच हजार रुपये बतौर जुर्माना लगाया था. जुर्माना नहीं देने पर हर घर से एक –एक बच्च देने का फैसला सुनाया गया था. 13 सितंबर को गांव के 10 बच्चों को नक्सली अपने साथ ले गये. विरोध करने पर अदीप लोहरा (पिता धनेश्वर लोहरा) की पिटाई भी की थी. उसके पीठ पर जख्म के निशान अब भी हैं.
तार जोड़ने से हुआ था विस्फोट : नक्सलियों के चंगुल से भागे बच्चों ने बताया कि परदेशी ने बैटरी में तार जोड़ दिया था, जिससे विस्फोट हुआ. उसकी मौत घटनास्थल पर ही हो गयी थी. वे उस वक्त खाना खा रहे थे.
विस्फोट के बाद अफरा–तफरी मच गयी. उस दिन विस्फोट की ट्रेनिंग दी जा रही थी. घटना 17 सितंबर को पांकी थाना क्षेत्र के आबून गांव के समीप जंगल में हुई थी. बच्चों ने बताया कि शौच के बहाने वे वहां से भाग निकले.
प्रखंड मुख्यालय से सात किमी दूर है गांव : बंदुआ गांव प्रखंड मुख्यालय से सात किमी दूर है. गांव जंगलों से घिरा है. मूलत: यहां यादव, गंझू, लोहरा, खरवार, परहिया व उरांव जाति के लोग रहते हैं. 150 घर का यह गांव अति पिछड़ा है. गांव का पहुंच पथ बदहाल है. लोग खेती व मजदूरी पर निर्भर है. आबादी का 40 फीसदी लोग जीविकोपाजर्न के लिए अन्यत्र चले गये हैं.