चंदवा : 1935 से हो रही है मां अंबे की पूजा

– सुमित कुमार – चंदवा : चंदवा प्रखंड में दुर्गापूजा का इतिहास काफी पुराना है. नगर ग्राम स्थित मां भगवती का मंदिर 14वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया. इसके बाद से यहां लगातार पूजा जारी है. अष्टादशभुजी मां व नवरात्र मिला कर 16 दिन की शारदीय नवरात्र की परंपरा है. इस मंदिर का जिक्र पलामू […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 9, 2013 3:41 AM

– सुमित कुमार –

चंदवा : चंदवा प्रखंड में दुर्गापूजा का इतिहास काफी पुराना है. नगर ग्राम स्थित मां भगवती का मंदिर 14वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया. इसके बाद से यहां लगातार पूजा जारी है. अष्टादशभुजी मां नवरात्र मिला कर 16 दिन की शारदीय नवरात्र की परंपरा है. इस मंदिर का जिक्र पलामू गजट में किया गया है. प्रस्तुत है चंदवा की पूजा समितियों का इतिहास.

कइलाखांड़ (रूद) : यहां 1998 से पूजा हो रही है. दशहरा के दिन जतरा लगता है. चेतर पंसस सुरेश गंझू के नेतृत्व में पूजा की तैयारी है.

मां वन शक्ति मंदिर (रूद) : एनएच-75 स्थित रूद ग्राम में 2004 से पूजा हो रही है. चेतर मुखिया सरदार सिंह उर्फ प्रकाश के मार्गदर्शन में आयोजन की तैयारी की जाती है. प्रतिवर्ष ऑर्केस्ट्रा का आयोजन किया जाता है.

महावीर मंदिर ब्राह्मणी : यहां 1954 से पूजा हो रही है. पंडित जगदीश पांडेय ग्रामीणों द्वारा शुरुआत की गयी थी.

दुर्गा मंडल डड़ेया : यहां 2008 से पूजा हो रही है. इस बार अध्यक्ष रामचरितर यादव, उपाध्यक्ष देवमनी वैद्य रामचंद्र यादव के नेतृत्व में पूजा का आयोजन हो रहा है.

दुर्गा मंडल बारी : यहां शाहदेव परिवार द्वारा करीब 60 वर्षो से पूजा की जा रही है. 2011 से ग्रामीण भी सहयोग कर रहे हैं. लाल अरुण नाथ शाहदेव लाल नीलम नाथ शाहदेव मुख्य कर्ताधर्ता हैं.

शिव मंदिर रामपुर : यहां 1983 से पूजा शुरू हुई. अध्यक्ष विजेंद्र प्रसाद, उपाध्यक्ष नंद किशोर युवक तैयारी में लगे हैं.

महावीर मंदिर सेरक : 1960 में निर्मित मंदिर में 1988 से पूजा हो रही है. इस मंदिर के रागभोग के लिए दान में 52 एकड़ भूमि मिली है.

एरूद कीता : मुखिया बालेश्वर पाठक उर्फ बालो बाबा (अब स्वर्गीय) द्वारा 1970 में मां दुर्गे की प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू की गयी थी. उनके वंशज ग्रामीणों द्वारा परंपरा का निर्वहन बखूबी किया जा रहा है.

देवी मंडप बरवाटोली रूद : यहां 1982 से मां अंबे की पूजा हो रही है. अध्यक्ष मंगल उरांव सचिव शशि राम समेत युवक पूजा की तैयारी में लगे हैं.

देवी मंडप हुटाप : सुखूचरण साहू (अब स्वर्गीय) द्वारा 1987 में पूजा शुरू की गयी थी. 1995 तक इनके ज्येष्ठ पुत्र चंद्रमोहन प्रसाद ने परंपरा का निर्वहन किया. 1996 से 2010 तक पूजा नहीं हो पायी. अब स्व साहू के नाती अनुज साहू मुखिया सुख नारायण सिंह ने परंपरा को 2011 में पुनजीर्वित किया.

रेलवे स्टेशन महुआमिलान : 2008 से पूजा की शुरुआत हुई. दशमी को जतरा में हजारों लोग जुटते हैं. अध्यक्ष लाल प्रतुल नाथ शाहदेव कार्यकारी अध्यक्ष रमेश प्रसाद के नेतृत्व में युवकों द्वारा पूजा की तैयारी की जाती है.

रेलवे स्टेशन टोरी : 1967 से अनवरत पूजा जारी है. इसमें रेलवे कर्मचारी, अधिकारी स्थानीय लोग सहयोग करते हैं.

दुर्गा मंडल हरैया, कामता : 2000 से पूजा हो रही है. यहां भव्य पंडाल बनाया जाता है. संतोष कुमार सिंह, उज्जवल दत्ता, मृत्युंजय सिंह, रणधीर सिंह समेत समिति के लोग पूजा आयोजन में जुटे हैं. दशमी को जतरा लगता है. रावण दहन किया जाता है.

दुर्गा मंडल बुध बाजार : यहां 1972 से पूजा हो रही है. सुबहशाम की आरती में सैकड़ों लोग भाग लेते हैं.

दुबेजी का गोला : प्रखंड में सबसे पहले दुर्गापूजा की शुरुआत यहीं हुई थी. यहां 1935 से पूजा हो रही है. इस वर्ष शिवव्रत दुबे स्थानीय लोगों के सहयोग से पूजा की जा रही है.

शिव मंदिर थाना टोली : यहां 2009 से पूजा शुरू की गयी. अध्यक्ष सतेंद्र साहू, उपाध्यक्ष चंद्रशेखर उपाध्याय, हरिनंदन दुबे समिति के लोग पूजा की तैयारी में जुटे हैं.

इसके अलावे लुकुइयां बोदा ग्राम में 2012 से प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू की गयी है. चंदवा से सटे बालूमाथ के होलंग में 1956 से मां दुर्गे की पूजा की जा रही है. लालचंद साहू, वंशी वैद्य बनवारी साव (अब स्वर्गीय) द्वारा इसकी शुरुआत की गयी थी. बालू कुरियांग में भी प्रतिमा स्थापित कर मातेश्वरी की आराधना की जाती है.

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