कोयला का भंडार फिर भी चूल्हा ठंडा
लातेहार : लातेहार की धरती में कोयला का अकूत भंडार है. लेकिन लोगों को चूल्हा जलाने तक के लिए कोयला नहीं मिल पा रहा है. अगर उपलब्ध हो भी रहा है, तो मंहगे दाम पर. लोगों को 300-400 रुपये प्रति बोरा कोयला खरीद कर काम चलाना पड़ रहा है. आज भी जिला मुख्यालय वासी साइकिल […]
लातेहार : लातेहार की धरती में कोयला का अकूत भंडार है. लेकिन लोगों को चूल्हा जलाने तक के लिए कोयला नहीं मिल पा रहा है. अगर उपलब्ध हो भी रहा है, तो मंहगे दाम पर. लोगों को 300-400 रुपये प्रति बोरा कोयला खरीद कर काम चलाना पड़ रहा है. आज भी जिला मुख्यालय वासी साइकिल से चोरी का कोयला बेचनेवालों पर आश्रित हैं.
सिकनी व तुबेद जैसे क्षेत्रों से अवैध रूप से उत्खनन किये गये कोयले या फिर डेमू एवं आसपास के क्षेत्रों में रेलवे से चोरी किये गये कोयले से ही शहरवासियों के घरों में चूल्हे जलते हैं. इससे न सिर्फ सरकार को प्रति महीना लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है बल्कि अवैध उत्खनन को भी हवा मिल रहा है. कभी जंगलों से आच्छादित लातेहार जिले में अब ढूंढ़ने से भी जलावन की लकड़ी नहीं मिल रही है. इसका फायदा चोरी का कोयला बेचने वाले उठा रहे हैं.
गैस के लिए होती है मारामारी
अब तो मध्यम वर्गीय परिवार से कोयला दूर ही हो गया है. लोगों का कहना है कि कोयला से सस्ती तो रसोई गैस पड़ेगी. शहर में मात्र एक गैस एजेंसी होने के कारण रसोई गैस की भी मारामारी है. यही कारण है कि लोग अब सरकारी कोयला डिपो की मांग कर रहे हैं. हालांकि लातेहार में पावर सब ग्रिड चालू हो जाने से बिजली नियमित रह रही है और लोग वैकल्पिक रूप में इंडक्शन चूल्हा का इस्तेमाल कर रहे हैं.