Jharkhand news, Latehar news : लातेहार (आशीष टैगोर) : अगर यह कहा जाये कि चाइनीज सामग्रियों ने मिट्टी शिल्पकारों (कुम्हार) की रोजी-रोजगार और आमदनी पर असर किया है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. पिछले कई वर्षों से दीपावली के मौके पर लोगों के घरों में मिट्टी के दीये कम और चाइनीज लाइट अधिक जलते हैं. सस्ता और हर दुकान पर उपलब्ध होने के कारण लोग बरबस ही चाइनीज लाइटों की ओर अधिक आकर्षित होते हैं. हालांकि, कुछ एक वर्षों से चीन के साथ भारत की तल्खियां बढ़ने के साथ चीनी सामग्री और चाइनीज लाइटों की बहिष्कार करने की अपील सोशल मीडिया पर लगातार होती रहती है. बावजूद इसके आज भी दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हार बदहाल हैं.
शहर के गुरुद्वारा रोड में वर्षों से दीये बनाने वाले गिरजा प्रजापति कहते हैं कि उन्होंने पिता से मिट्टी के दीये बनाना सीखा था. पहले मिट्टी के दीये की काफी डिमांड थी, लेकिन अब पहले की तरह डिमांड नहीं रही. पहले दीपावली में 20 से 25 हजार दीये बनाते थे, लेकिन अब तो मात्र 5 से 7 हजार दीये में ही पूरे दिवाली का व्यवसाय सिमट जाता है. पूछे जाने पर कहते हैं कि आज बाजार में चाइनीज लाईट आ गयी है. हर कोई इस ओर अधिक आकर्षिक हैं. यह सस्ता भी होता है. इस कारण लोग उसे खरीदना श्रेष्ठकर समझते हैं.
वैष्णव दुर्गा मंदिर के पास दीये बनाने वाले अर्जुन प्रजापति ने भी कहा कि धीरे- धीरे मिट्टी के दीये का व्यवसाय सिमटता जा रहा है. लोग बस रस्म अदायगी के लिए मिट्टी के दीये खरीदते हैं. चायनीज लाईट को खरीदने के बाद लोग कई वर्षों तक इसका इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इस कारण लोग उस ओर अधिक आकर्षिक होते हैं. गुरूद्वारा रोड के ही सुरेश प्रजापति ने भी माना कि चाइनीज लाइटों ने उनका व्यवसाय छीन लिया है.
गिरजा प्रजापति ने बताया कि इस वर्ष कोरोना ने कुम्हारों का व्यवसाय पूरी तरह ठप कर दिया. वे लोग दाने- दाने को मोहताज हो गये. गरमी के समय में घड़ा और सुराही की डिमांड अधिक होती है, लेकिन इस वर्ष गरमी के मौसम में लॉकडाउन रहने के कारण बाजार व हाट नहीं लगे इस कारण घड़ों व सुराही की बिक्री नहीं हो सकी
Posted By : Samir Ranjan.