महुआडांड़. लगातार बारिश से प्रखंड में इस वर्ष धान की फसल बेहतर होने की उम्मीद है. वहीं मकई की फसल बर्बाद होने लगी है. मकई खेत में खरपतवार बढ़ गयी है. पत्तियों में पीलापन आने लगा है. कोई दवा काम नहीं कर रही है. गौरतलब है कि प्रखंड क्षेत्र के किसानों को पिछले दो साल से मकई फसल की अच्छी कीमत मिल रही है, इसलिए मकई की खेती को लेकर किसान उत्साहित हैं. इस प्रखंड क्षेत्र में धान खेती साथ-साथ वृहद रूप से मकई की खेती हुई है. जून महीने में किसान मकई की बुआई करते थे, लेकिन देर से मॉनसून आने के कारण इस साल ज्यादातर किसानों ने मकई बुआई 15 जुलाई के बाद की है.
क्या कहते हैं किसान
किसान वकील अहमद ने कहा कि ओरसा पाठ में 20 एकड़ में मकई खेती की हैं, लेकिन भारी बारिश के कारण मकई फसल बर्बाद होने की कगार पर है. पिछले वर्ष मकई का उत्पादन प्रति एकड़ 16 से 20 क्विंटल हुआ था, लेकिन इस वर्ष उत्पादन 8 से 10 क्विंटल हो पायेगा, जबकि मक्के में लागत औसतन 15 से 16 हजार रुपये प्रति एकड़ आ रही है. किसान सफरुल अंसारी ने कहा कि 10 एकड़ में मकई की फसल लगायी है. खरपतवार की आशंका से उसे बचने के लिए किसान दवा डालते हैं. दवा लगभग डेढ़ हजार प्रति एकड़ पड़ती हैं, लेकिन लगातार बारिश के कारण दवा भी काम नहीं कर रही है.
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