चार बाघों की मौजूदगी से लौटी पीटीआर की खोयी प्रतिष्ठा
भारत के 55 टाइगर रिजर्व की सूची में झारखंड के इकलौते पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में चार बाघ मौजूद हैं. सभी नर और व्यस्क हैं
संतोष कुमार, बेतला : भारत के 55 टाइगर रिजर्व की सूची में झारखंड के इकलौते पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में चार बाघ मौजूद हैं. सभी नर और व्यस्क हैं. इनकी गतिविधियां पिछले एक वर्ष से 1129 वर्ग किलोमीटर में फैले पीटीआर के अलग-अलग हिस्सों में बनी हुई है. बाघों की तस्वीर कई बार कैमरा ट्रैप में कैद हो चुकी है. वहीं कई बार अधिकारियों व पर्यटकों ने प्रत्यक्ष रूप से बाघों की तस्वीर खींची है. बाघों की मौजूदगी की पुष्टि वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ देहरादून व नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी द्वारा की जा चुकी है. पीटीआर अपने स्थापना काल के 50 वर्ष पूरा करने पर इन चार बाघों की उपस्थिति के कारण अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को हासिल करने में कामयाब हुआ है. गौरतलब है कि वर्ष 2018 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की बाघों का आंकड़ा जारी किया था, तब उस समय पीटीआर में बाघों की संख्या शून्य बतायी गयी थी. उस समय पीटीआर प्रबंधन पर काफी सवाल उठे थे. हालांकि उस समय यह बताया गया था कि पीटीआर के इलाके में काफी घना जंगल है. यदि सही तरीके से मॉनिटरिंग और सर्वेक्षण किया जाये, तो निश्चित रूप से पीटीआर में मौजूद बाघों को सामने लाया जा सकता है. इसके बाद युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दिया गया. पीटीआर में मौजूद 300 से अधिक टाइगर ट्रैकर को बाघ के स्केट (मल) खोजने के लिए लगाया गया, जिससे उन्हें कामयाबी भी मिली. जिस जगह पर स्केट मिला वहां हाइटेक कैमरा ट्रैप को लगाया गया. पूरे पीटीआर को अलग-अलग बीट में बांटकर करीब 1000 कैमरा लगाया गया, जिसका सुखद परिणाम आने लगा. बाघों की गतिविधियां कमरे में कैद होने लगी. महज पांच वर्ष के बाद पीटीआर में मौजूद चार बाघों की उपस्थिति कमरे में कैद हो गयी. प्रबंधन को उम्मीद है कि बाघों की संख्या और भी बढ़ सकती है. एक सप्ताह पहले ही एक बाघ को प्रत्यक्ष रूप से देखा गया था. जिन चार बाघों को पीटीआर के अलग-अलग हिस्सों में देखा गया है, वहां सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की गयी है. हालांकि सुरक्षा की दृष्टि से स्थल को सार्वजनिक नहीं किया गया है.
बूढ़ा पहाड़ के तराई वाला इलाका है कॉरिडोर
पीटीआर के 1129 वर्ग किलोमीटर के खुले एरिया के अलावे यह इलाका छत्तीसगढ़ से सटा हुआ है, इसलिए बाघों के आने-जाने का सिलसिला छत्तीसगढ़ और झारखंड में बना रहता है. बताया जाता है कि बूढ़ा पहाड़ का तराई वाला इलाका बाघों का कॉरिडोर है, जहां से वे अक्सर आते-जाते रहते हैं. इतना ही नहीं पीटीआर के अलावे चतरा, हजारीबाग व गुमला के तरफ भी रुख कर जाते हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि चार बाघों में से कोई कुछ दिनों के लिए अन्यत्र चला जाता है और पुनः वापस आ जाता है.
बाघों के शिकार के लिए बनाये गये हैं चीतल सॉफ्ट रिलीज सेंटर
पीटीआर के बाघों के लिए चीतल सॉफ्ट रिलीज सेंटर का निर्माण कराया गया है. इनमें दो छिपादोहर पूर्वी रेंज क्षेत्र में और दो गारू रेंज क्षेत्र और दो बारेसाढ़ रेंज क्षेत्र में है. इन सॉफ्ट सेंटर में बेतला नेशनल पार्क में मौजूद 6000 से अधिक चीतल (हिरण) में से करीब 160 हिरण को यहां शिफ्ट कराया जा रहा है, ताकि बाघों को पर्याप्त और आसानी भोजन मिल सके. वहीं हिरण को भोजन पर्याप्त मिल सके इसके लिए ग्रास प्लॉट का निर्माण कराया गया है. बिरसा बायोलॉजिकल पार्क ओरमांझी से शिफ्ट होंगे 360 जानवर पलामू टाइगर रिजर्व में भगवान बिरसा बायोलॉजिकल पार्क ओरमांझी (रांची) में मौजूद 269 चीतल हिरण, 18 सांभर, 44 ब्लैक बक (काला हिरण), 13 नीलगाय, 14 बार्किंग डियर, दो गौर सहित 360 जानवरों को स्थानांतरित कराया जायेगा. इसकी मंजूरी भारत सरकार के नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के साथ-साथ सेंट्रल जू अथॉरिटी (सीजेडए ) ने दे दी है. कब और कहां दिखा बाघ पिछले वर्ष सबसे पहले और मार्च महीने में पीटीआर के कुटकू वन प्रक्षेत्र में बाघ को देखा गया था. सात महीने के बाद नवंबर में गारू वन प्रक्षेत्र में और उसी महीने में बेतला नेशनल पार्क में बाघ दिखा. चौथा बाघ पुनः बेतला नेशनल पार्क में ही देखा गया जिसे कोलकाता के पर्यटकों ने भी देखा और उनकी तस्वीरों को कमरे में कैद किया था. इसके बाद गारू इलाके में बेतला नेशनल पार्क इलाके में भी लगातार बाघों को देखा जा रहा है.
आसानी से क्यों नहीं दिखते बाघ
पीटीआर खुला एरिया है. इसकी कोई बाउंड्री नहीं है. इस कारण जंगली जानवरों का इधर-उधर आना-जाना लगा रहता है. कई बार तो इनका आवागमन अंतर्राजीय होता है. घने जंगल होने के कारण और कोई एक निश्चित इलाका फिक्स नहीं रहने के कारण किस समय बाघ कहां है, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. इस कारण बाघ आसानी से नहीं देख पाते हैं. जिस जगह पर बाघ का मल प्राप्त होता है, वहां कैमरा ट्रैप लगाया जाता है. देर रात तक उन इलाके में बाघ का आगमन होता है, जो कैमरे में कैद कर लिया जाता है.
क्या कहते हैं फील्ड डायरेक्टर
पीटीआर के फील्ड डायरेक्टर कुमार आशुतोष ने बताया कि पीटीआर का बेहतर वातावरण बाघों को रास आ रहा है, इसलिए पिछले एक वर्ष से बाघों की गतिविधियां पीटीआर में लगातार बनी हुई है. उन्होंने कहा कि बाघों का स्थायी प्रवास हो सके, इसके लिए पीटीआर प्रबंधन लगातार प्रयासरत है.
पीटीआर में कब कितने बाघ थे1974—501990—452005–382006–172007–062010–062014–032018-002024-04डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है