झारखंड की 110 साल पुरानी अनोखी परंपरा : पांव पखारकर मेहमानों का स्वागत करते हैं टाना भगत

टाना भगत के यहां कोई आता है या किसी शामिल होता है, तो महिलाएं तथा बच्चियां कांसे की थाली, तांबा के लोटा में तुलसी पानी-हल्दी से उनके पांव धोतीं हैं.

By Mithilesh Jha | June 15, 2024 12:12 PM

कुड़ू (लोहरदगा), अमित राज : आजादी के 77 साल बाद भी टाना भगत अपने पूर्वजों के विधि-विधान का पालन कर रहे हैं. घर में आने वाले मेहमानों का स्वागत करने की पुरानी परंपरा आज भी कायम है. नई पीढ़ी के लोग भी इस परंपरा का पालन कर रहे हैं.

टाना भगत इस तरह करते हैं घर आने वाले लोगों का स्वागत

टाना भगत परिवार के यहां जब कोई आता है या बाहर कहीं किसी आयोजन में कोई टाना भगत जाता है, तो महिलाएं तथा बच्चियां कांसे की थाली और तांबा के लोटा में तुलसी पानी तथा हल्दी से उनके पांव धोकर उनका स्वागत करते हैं. घर के दरवाजे पर तथा आयोजन स्थल के मंच से पहले जब तक तुलसी पानी से पांव नहीं धोया जाता, तब तक न तो घर के अंदर प्रवेश कर सकते हैं, न ही मंच पर जा सकते हैं.

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जतरा टाना भगत ने किया था आंदोलन

बताया जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजादी दिलाने के लिए साल 1914 में झारखंड प्रांत में रहने वाले जतरा टाना भगत तथा आशीर्वाद टाना भगत आंदोलन की राह पर चल पड़े थे. इनके साथ पुरण टाना भगत, गुदरी टाना भगत तथा चंदा टाना भगत भी थे. आंदोलन के 15 दिनों बाद जब सभी लोग अपने घर कुड़ू प्रखंड के बंदुवा, दुबांग गांव पहुंचे, तब गांव की महिलाओं तथा बच्चियों ने कांसे की थाली तथा तांबा के लोटा में तुलसी पानी तथा पीतल की थाली में हल्दी लेकर उनका पांव धोने पहुंचीं.

महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन के लिए निकले थे 5 टाना भगत

तुलसी पानी से पांव धोने के बाद पांव में हल्दी लगाया था. इसके बाद तुलसी पानी से दोबारा सभी के पांव धोये थे. इसके बाद सभी ने जतरा टाना भगत के घर पर में प्रवेश किया था. बंदुवा-दुबांग गांव के बुजुर्ग इंद्रनाथ टाना भगत, रमेश टाना भगत, चंद्रदेव टाना भगत, सहजीत टाना भगत, सुखमनिया टाना भगत, बुलकी टाना भगत, सोमारी टाना भगत, तितो टाना भगत, मीना टाना भगत ने बताया कि 1914 में पहली बार जतरा टाना भगत तथा आशीर्वाद टाना भगत ने ग्रामीणों को बताया था कि हम 5 लोग महाजनी प्रथा तथा जबरन कर वसूली के खिलाफ आंदोलन करने जा रहे हैं.

पांव धोने के लिए सिलवट पर पीसी जाती है हल्दी

उन्होंने कहा था कि आंदोलन में हमारी जान चली जाए, तो परवाह मत करना. सभी टाना भगत परिवार आपस में मिल-जुलकर रहना. इसके बाद सभी 5 लोग ठंडा के मौसम में सफेद धोती, सफेद शर्ट और सफेद गमछा लेकर निकल पड़े थे. रास्ते में खाने के लिए चूड़ा तथा गुड़ लेकर निकले थे. 15 दिन बाद आंदोलन से वापस लौटे, तो सभी का स्वागत तुलसी पानी तथा हल्दी लेप करते हुए पांव धोकर किया गया था. बता दें कि पैर धोने के लिए जिस हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है, उसे सिलवट पर पीसा जाता है.

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