एक्ट का अनुपालन नहीं

गोपी कुंवर लोहरदगा : जिले में शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पालन कहीं नहीं हो रहा है. नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा को अधिकार अधिनियम 2009 जो कि छह से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बालकों हेतु नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध करने के लिए एक अप्रैल 2010 से जम्मू कश्मीर को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 15, 2014 5:55 AM

गोपी कुंवर

लोहरदगा : जिले में शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पालन कहीं नहीं हो रहा है. नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा को अधिकार अधिनियम 2009 जो कि छह से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बालकों हेतु नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध करने के लिए एक अप्रैल 2010 से जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया था.

वो आज चार वर्ष पूरे होने के बाद भी अपनी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाया. ‘सौ दिन में चले ढाई कोस’ की तर्ज पर यह कानून बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में अभी तक सक्षम नहीं हो पाया है. आज भी शिक्षा विभाग अपने इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए संघर्षरत है. कहा गया था कि शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के तीन वर्ष के अंदर सरकारी विद्यालयों में आधारभूत संरचनाओं को पूर्णता विकसित कर लिया जायेगा, परंतु आज भी अनेक विद्यालयों में शौचालय एवं पेयजल की समुचित व्यवस्था विभाग नहीं कर पाया है. छात्र शिक्षक की संख्या का अनुपात आज भी असंतुलित है.

अधिनियम में स्पष्ट है कि छात्र संख्या के आधार पर शिक्षकों की इकाई सृजित कर विद्यालयों में पठन-पाठन सुनिश्चित कर बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करायी जाये, परंतु शायद अभी तक ऐसा संभव नहीं हो पाया है. प्रावधान के मुताबिक मध्य विद्यालय में प्रत्येक कक्षा के लिए एक शिक्षक का होना अनिवार्य है. तीन विषयों में विशेषज्ञ शिक्षकों का ही प्रावधान किया गया है. एक पूर्ण कालिक प्रधानाध्यापक का होना भी अनिवार्य है, परंतु ये सब होना लगता है दूर की कौड़ी हो गयी है.

प्राथमिक विद्यालयों में अगर 150 से अधिक छात्र हैं तो वहां भी एक पूर्णकालिक प्रधानाध्यापक की आवश्यकता बतायी गयी है. परंतु चार साल बीत जाने के बाद भी इस दिशा में सरकार अमल नहीं कर पायी है. शिक्षक नियुक्ति लंबित है. शिक्षकों की प्रोन्नति नहीं हो पाने के कारण विद्यालयों में पूर्णकालिक प्रधानाध्यापक का घोर अभाव है. विद्यालयों में सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन किया जाना अनिवार्य है, परंतु शिक्षकों की घोर कमी के कारण मूल्यांकन कार्य अपेक्षित स्तर को प्राप्त नहीं कर पाया है. सामुदायिक सहभागिता से शिक्षा के स्तर को उपर उठाने की बात करने वाले लोग भी अपनी जिम्मेवारी नहीं समझ रहे हैं. विद्यालय प्रबंधन समिति की क्रियाशीलता भी अपूर्ण है.

समय-समय पर विभागीय स्तर पर कराये जाने वाले जागरूकता कार्यक्रम भी समय के साथ अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं. चूंकि ऐसे कार्यक्रमों में निरंतरता का अभाव है. ऐसी परिस्थिति में आवश्यक है कि समाज के सभी लोग सामूहिक सहभागिता के साथ इस विषय की गंभीरता को समझ कर ससमय अपेक्षित कुछ ठोस कदम उठायें, जिससे की उन उद्देश्यों की संपूर्ण प्राप्ति की जा सके. लोहरदगा जिला में शिक्षा की स्थिति दिनो-दिन बद से बदतर होती जा रही है.

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