नंदनी जलाशय का लाभ नहीं

कैरो–लोहरदगा : कैरो प्रखंड में नंदनी जलाशय होने के बावजूद किसान धान रोपनी नहीं कर पा रहे हैं. इस जलाशय से तीन नहर निकाली गयी है, लेकिन सभी बेकार पड़े हैं. मेढ़ टूटा होने व मिट्टी भरने के कारण नहर बेकार पड़ा हुआ है. नहरों में डैम का पानी प्रवाहित नहीं होता है. आलम यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 25, 2013 3:25 AM

कैरोलोहरदगा : कैरो प्रखंड में नंदनी जलाशय होने के बावजूद किसान धान रोपनी नहीं कर पा रहे हैं. इस जलाशय से तीन नहर निकाली गयी है, लेकिन सभी बेकार पड़े हैं. मेढ़ टूटा होने मिट्टी भरने के कारण नहर बेकार पड़ा हुआ है. नहरों में डैम का पानी प्रवाहित नहीं होता है.

आलम यह है कि प्रखंड में पांच फीसदी भी रोपनी नहीं हो सकी है. नहरों में पानी प्रवाहित होने से क्षेत्र के 10-12 गांवों के किसानों के हजारों एकड़ भूमि की सिंचाई होती. किंतु नहर के बेकार हो जाने के बाद क्षेत्र में कृषि कार्य प्रभावित हुआ है. कम वर्षा के बाद भी क्षेत्र के किसान नहर नीचे पड़ने वाली खेतों में रोपनी कर लेते थे, किंतु विगत दो दिन वर्षो से नहर में पानी आने से किसान चिंतित एवं आक्रोशित हैं.

क्षेत्र के किसान ने नहर की समस्या पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है. किसान जगदीश यादव का कहना है कि यदि तीनों नहरों में पानी प्रवाहित होता तो क्षेत्र के लोग खुशहाल होते. खाद्यन्न के मामले में क्षेत्र आत्मनिर्भर होता.

खेतों में खरीफ और रबी फसलें लहलहाती. क्षेत्र से पलायन अपनेआप रुकता. किसान प्रवीण साहू का कहना है कि जनप्रतिनिधि की उदासीन रवैये के कारण नहर का मरम्मत नहीं हो सका. इससे हजारों एकड़ भूमि में फसल नहीं लग पा रही है. किसान राजू प्रजापति का कहना है कि जब नहर में पानी प्रवाहित होता था तो खरीफ के साथसाथ रबी फसल भी अच्छी होती थी.

किसान उमेश महतो का कहना है कि नहरों के निर्माण के बाद लोग यह समझते थे कि अब क्षेत्र में खाद्यान्न की कमी नहीं होगी. लेकिन आज वे खेत वीरान पड़े हुए हैं. किसान मनोवर अंसारी का कहना है कि मुख्य नहर से तो किसानों को कुछ फायदा मिला भी है, लेकिन अन्य दो नहरों से किसानों को आज तक कोई फायदा नहीं हुआ है. उल्टे किसानों के खेत बरबाद हुए हैं.

किसान राजदेव उरांव का कहना है कि नहर में पानी प्रवाहित होन से क्षेत्र के लोग खुशहाल रहते, लेकिन यहां तो सिंचाई की सुविधा है और जीविका का अन्य कोई साधन. यही कारण है कि लोग मजबूरन पलायन करते हैं.

राजेंद्र उरांव का कहना है कि यहां के किसान इतने मेहनती हैं कि इन्हें थोड़ी सा साधन मिल जाये तो अपने खेतों में सब्जी उगा कर अपने परिवार की जीविका चला सकते हैं, लेकिन किसी तरह की व्यवस्था नहीं मिलने से किसान मायूस हैं.

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