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भाजपा की करारी हार ने खोली संगठन की कलई

भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार समीर उरांव की करारी हार ने भाजपा के संगठनात्मक स्थिति की कलई खोलकर रख दी है.

बिशुनपुर विधानसभा इस क्षेत्र में भंडरा एवं सेन्हा प्रखंड का इलाका आता है वरीय संवादाता, लोहरदगा बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार समीर उरांव की करारी हार ने भाजपा के संगठनात्मक स्थिति की कलई खोलकर रख दी है. यहां से ऐसी हार की उम्मीद लोगों को नहीं थी. यहां जमकर भीतरघात हुआ और अपने कहे जाने वाले लोगों ने ही सारा खेला कर दिया. पार्टी के लोग ही बताते हैं कि यहां वरिष्ठ कहे जाने वाले नेता अतिथि कलाकार की भूमिका अदा कर रहे थे. सिर्फ बड़ी बड़ी बातें और आत्मप्रशंसा ही करते रहे. धरातल पर मेहनत करने के बजाय र्निदेश देते रहे. समीर उरांव पहले राज्य सभा सांसद थे लेकिन इस दौरान उनकी कोइ खास उपलब्धि नहीं रही. वे लोहरदगा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव भी लड़े थे और उन्हें लगभग डेढ़ लाख मतों से कांग्रेस के सुखदेव भगत ने पराजित किया था. उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने इस बार बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया था. उनका मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा के चमरा लिंडा से था. समीर उरांव को चमरा लिंडा ने 32756 मतों से पराजित किया. इस करारी हार के बाद सोशल मीडिया में तरह तरह की बातें कही जा रही है.एक दूसरे पर दोषारोपण जारी है और एक दूसरे की पोल भी खोली जा रही है. कुछ भाजपाइयों का ही कहना है कि पार्टी के आंतरिक कलह एवं कमजोर स्थिति तथा कुछ लोगों के बडबोलेपन ने आज भाजपा को इस स्थिति में ला दिया कि समीर उरांव इतने वोटों के अंतर से चुनाव हार गये. चुनाव के पहले बड़ी-बड़ी बातें कही जा रही थी. क्लीन स्वीप करने के दावे किए जा रहे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुमला में चुनावी सभा की थी तब लोगों ने कहा था कि पूरा माहौल ही बदल गया है, अब कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन मतदाताओं ने जब वोट दिया तो पूरी स्थिति बदली नजर आयी. झारखंड मुक्ति मोर्चा के चमरा लिंडा को 100336 वोट मिले, वहीं समीर उरांव को मात्र 67580 वोट मिले. बिशनपुर विधानसभा क्षेत्र में 14 उम्मीदवार चुनाव मैदान में खड़े थे जिनमें 11 उम्मीदवार तो नोटा से ही हार गए. यहां नोटा को 6187 वोट मिले. बिशनपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी के बागी उम्मीदवार शिवकुमार भगत भी चुनाव लड़ रहे थे भाजपाइयों को भरोसा था कि वे झारखंड मुक्ति मोर्चा का वोट काटेंगे और इसका लाभ उन्हें मिलेगा. लेकिन शिवकुमार भगत को मात्र 5473 वोट मिले. वहीं थानेदार रह चुके जगन्नाथ उरांव भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे उन्हें मात्र 10 हजार 899 वोट मिले. इस तरह देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी को जनता ने नकार दिया. जन समस्याओं से पार्टी के नेता दूर हो गए हैं .स्वार्थ हावी हो चुकी है और चेहरा चमकाने वाले लोग अब संगठन में हावी हो चुके हैं. संगठन लगातार कमजोर होती जा रही है और इसी का नतीजा है कि लोहरदगा और बिशनपुर दोनों विधानसभा क्षेत्र में भाजपा का प्रदर्शन बिल्कुल ही खराब रहा.

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