लोहरदगा के बाजार से गायब हुईं बासमती मधुमलार व रानी काजर धान की खुशबू
हाइब्रिड बीजों के अत्यधिक प्रयोग से खेती की लागत बढ़ी है. वहीं अन्य दुष्परिणाम भी सामने आए हैं. अधिक उत्पादन के चक्कर में दिनों दिन रासायनिक उर्वरकों का उपयोग भी बढ़ा है.
किसानोंं ने अधिक उत्पादन के लिए परंपरागत बीजों के स्थान पर हाइब्रिड बीजों का उपयोग पिछले दो-ढाई दशक से करना प्रारंभ कर दिया है. प्रारंभ में हाइब्रिड बीजों का प्रयोग उन्नतशील किसान करते थे. और इसका देखा-देखी अन्य किसानों तक भी हाइब्रिड बीजों का प्रसार हुआ. नतीजन परंपरागत बीज दरकिनार कर दिये गये. अब आलम यह है कि धान, गेंहू, जौ, मक्का तथा विभिन्न सब्जियों के परंपरागत बीज लगभग गायब हो चुके हैं.
इसका प्रभाव दिखने लगा है. हाइब्रिड बीजों के अत्यधिक प्रयोग से खेती की लागत बढ़ी है. वहीं अन्य दुष्परिणाम भी सामने आए हैं. अधिक उत्पादन के चक्कर में दिनों दिन रासायनिक उर्वरकों का उपयोग भी बढ़ा है. इससे भूमि की उर्वरता क्षमता भी प्रभावित हो रही है. वहीं फसलों में कई नयी-नयी बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ा हैं. खेतों में लगे मधु मलार, बासमती तथा रानी काजर धान की खुशबू काफी दूर से ही लोग महसूस करते थे. परंतु अब हाइब्रिड बीजोंं के प्रयोग से खेतों की परंपरागत खुशबू भी गायब है.
हाइब्रिड बीजों के प्रयोग से परंपरागत बीजों को नुकसान
हाइब्रिड बीजों के प्रयोग से सबसे अधिक नुकसान धान के परंपरागत बीजों को हुआ है. एक-दो दशक पूर्व तक जिले में धान की कलमदानी, डहिया, भंजनी, गौड़ा, मधु मलार, रानी काजर, हेंग मसुरा, गोपाल भोग, गोविंद भोग, ललकी रानी, नेटा, करहैनी जैसे देशी किस्में बहुतायत प्रचलन में थे. इनमें से कई रोग रोधी थे. करहैनी तथा नेटा धान कम समय में उपज देने वाली किस्में हैं. और सुखाड़ के समय यह किसानों के लिए वरदान मानी जाती थी. परंतु यह बीज भी अब बिलुप्त प्राय: हो गयी है. इसके अलावा मक्का, जौ, गेंहू, उरंग, मूंग, बाजरा, करथी के भी परंपरागत बीज भी लगभग गायब हो गये हैं.
फसलों में दिखने लगे हैं कई नये रोग
आधुनिक बीजों के प्रयोग से फसलों में नये नये रोग भी पैदा हो रहे हैं. इनसे बचाव के लिए खतरनाक रसायनों का छिड़काव करना पड़ता है. खेतों में अत्यधिक रसायनों के प्रयोग से पर्यावरण पर भी इसका प्रतिकूल असर देखा जा रहा है.