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राजनीति के संत ललित उरांव के बगैर लोहरदगा लोकसभा चुनाव की चर्चा अधूरी

ललित उरांव को राजनीति में लाने का श्रेय कार्तिक उरांव को जाता है. ललित उरांव अपनी ईमानदारी और कर्मठता के लिए पूरे इलाके में प्रसिद्ध थे. वह सादगी की प्रतिमूर्ति थे.

गोपी कुंवर, लोहरदगा : लोहरदगा लोकसभा चुनाव की जब चर्चा होती है, तो ललित उरांव की चर्चा जरूर होती है. सांसद ललित उरांव को लोग बाबा के नाम से पुकारते थे. वह राजनीति के संत कहे जाते थे. ललित उरांव का जन्म गुमला जिला के सिसई के पोटरो गांव में हुआ था. वह 1991 और 1996 में लोहरदगा से सांसद बने थे. इसके अलावा वे तीन बार विधायक रह चुके थे. 1969, 1977 और 1980 में उन्होंने विधानसभा चुनाव जीता था. वह 1969 में बिहार सरकार में आदिवासी कल्याण मंत्री बने थे और 1977 में वे वन मंत्री रहे थे.

ललित उरांव को राजनीति में लाने का श्रेय कार्तिक उरांव को जाता है. ललित उरांव अपनी ईमानदारी और कर्मठता के लिए पूरे इलाके में प्रसिद्ध थे. वह सादगी की प्रतिमूर्ति थे. वर्तमान राजनीतिक परिवेश में अब ललित उरांव जैसा व्यक्ति मिलना असंभव है. लोग उन्हें बहुत याद करते हैं ललित उरांव जब सांसद थे, तो इस क्षेत्र के लोग जब भी दिल्ली जाते थे उनका पड़ाव सांसद के आवास में ही होता था. जहां लोगों के रहने और भोजन की तमाम व्यवस्था उपलब्ध हुआ करती थी. झा जी उनके पीए हुआ करते थे.

भाजपा नेता ओमप्रकाश सिंह, प्रवीण सिंह की सिफारिश चिठ्ठी लेकर कोई दिल्ली जाता था, तो उन्हें झा जी कमरा उपलब्ध कराते थे. ललित बाबू हर किसी की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहा करते थे. ललित उरांव अपने अंतिम समय में काफी अकेलापन में रहे . वक्त के साथ उनके राजनीतिक साथियों ने भी उनकी सुध लेने की जरूरत नहीं समझी. नयी दिल्ली में 12 जनपथ ललित उरांव का आवास हुआ करता था. लोग ललित उरांव की चर्चा आज भी करते हैं.

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