23 साल बाद भी लोहरदगा के कुड़ू में मूलभूत सुविधाओं का है अभाव, जनप्रतिनिधियों ने कभी नहीं दिया ध्यान
कुड़ू प्रखंड में चार उच्च विद्यालय तथा एक आवासीय विद्यालय है. प्रतिवर्ष लगभग पांच हजार छात्र-छात्रा मैट्रिक परीक्षा में शामिल होते हैं. कुड़ू में कॉलेज निर्माण की मांग पिछले 20 साल से हो रही है.
अमित, कुड़ू लोहरदगा :
गुजरते साल के साथ कुड़ू वासियों के सपने दफन होते जा रहे हैं. कुड़ू प्रखंड गठन के 67 साल व राज्य गठन के 23 साल बाद भी कुड़ू वासियों को मूलभूत सुविधाएं मिलना तो दूर जनहित से जुड़ी मांगें भी पूरी नहीं हो पायी है. लोगों ने चिर परिचित मांगों से स्थानीय विधायक, सांसद, संबंधित विभागों के मंत्री यहां तक कि तीन मुख्यमंत्री से लेकर संबंधित विभाग के सचिव तक को लिखित तथा मौखिक रूप से अवगत कराया. मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचा, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है. किसी भी जनप्रतिनिधि ने कुड़ू वासियों के हित से जुड़ी मांगों को पूरा करने का प्रयास नहीं किया.
15 साल से सीएचसी का भवन अधूरा
कुड़ू प्रखंड का गठन वर्ष 1956 में किया गया था. साल 2011 की जनगणना के अनुसार कुड़ू प्रखंड की आबादी 85 हजार थी. जो वर्तमान में एक लाख 20 हजार के आसपास होगी. कुड़ू को अनुमंडल बनाने की मांग हर चुनावी मौसम में होती है, लेकिन चुनाव गुजरते ही मामला ठंडा पड़ जाता है. कुड़ू प्रखंड में चार उच्च विद्यालय तथा एक आवासीय विद्यालय है. प्रतिवर्ष लगभग पांच हजार छात्र-छात्रा मैट्रिक परीक्षा में शामिल होते हैं. कुड़ू में कॉलेज निर्माण की मांग पिछले 20 साल से हो रही है. साल दर साल चुनावी मौसम में सभी प्रत्याशियों ने कॉलेज स्थापित करने का वादा किया, लेकिन कॉलेज की मांग फाइलों में दफन होकर रह गयी. कुड़ू में तीन करोड़ की लागत से 100 बेड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भवन का निर्माण साल 2008 में शुरू हुआ था, जो आज भी अधूरा है.
भवन को पूरा कराने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय तक पत्राचार किया गया. सूबे के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी से लेकर आधा दर्जन मंत्रियों ने जायजा लिया, लेकिन मामला जहां से शुरू हुआ था, वहीं आकर समाप्त हो गया. आठ करोड़ की लागत से कुड़ू ग्रामीण जलापूर्ति योजना का निर्माण कराया गया. इससे एक साल ग्रामीणों को पेयजल मिला, इसके बाद मामला अधर में लटक गया. कोई देखने वाला नहीं है. सलगी में दो करोड़ की लागत से स्वास्थ्य केंद्र भवन बनाया गया. लेकिन तीन साल बाद भी चिकित्सक की बहाली होना तो दूर स्वास्थ्य कर्मियों की बहाली तक नहीं हो पायी. ना ही भवन का उदघाटन किया गया. नतीजा भवन खंडहर में तब्दील हो रहा है.
कुड़ू में 50 लाख की लागत से ट्रामा सेंटर का निर्माण कराया गया. ताकि सड़क हादसे के शिकार घायलों को रांची तथा लोहरदगा सदर अस्पताल रेफर करने से निजात मिले. लेकिन मानव संसाधन की कमी के कारण मामला कागजों तक सिमट कर रह गया. ऐसा नहीं है कि विधायक सह मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव, सांसद सुदर्शन भगत, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तथा जिला प्रशासन को मामले की जानकारी नहीं है. सब कुछ जानते हुए भी जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों ने चुप्पी साधते हुए कुड़ू वासियों को उनके हाल पर छोड़ दिया है.