सन 1948 में स्वर्णकार मनोरी लाल बर्म्मन स्वयं नक्काशी करके एक सेर का चांदी का हनुमानजी की प्रतिमा बनायी गयी, जो जुलूस के आगे रहती है तथा 10 वर्ष पूर्व उसी परिवार के संजय बर्म्मन ने दो सेर का चांदी का सिंहासन बनवाया और यह प्रतिमा और सिंहासन पूरे शान से जुलूस के आगे रहती है. गोपी कृष्ण कुंवर फोट़ो. रामनवमी के अवसर पर निकाली जाने वाली शोभायात्रा में शामिल होने वाली हनुमानजी की चांदी की प्रतिमा लोहरदगा. लोहरदगा में रामनवमी त्योहार अपने घर मोहल्ले टोले में सैकड़ों वर्षों से मनाया जा रहा है. परंतु शोभा यात्रा आजादी से पूर्व प्रारंभ हुई थी.लोहरदगा के बुजुर्गों में थाना रोड बालिका स्कूल निकट तेतरतर निवासी पं चंद्रशेखर मिश्रा(81) तथा बुधन सिंह लेने निवासी सामाजिक कार्यकर्ता श्री कृष्णा सिंह (82) माथे पर बल व याद कर बताते हैं कि उनके पिताजी उन लोगों को बताया था कि 1937- 40 के दौरान शोभायात्रा निकाली गयी थी. जिसकी शुरुआत वर्तमान में आईसीआईसीआई बैंक के सामने से उस समय के युवाओं में राय साहब बलदेव साहू,अभिमन्यु प्रसाद,रामविलास बाबू,रामकुमार बाबू,नरसिंह प्रसाद साहू आदि ढोलक,ताशा तथा लाठी,डंटा, बलम से खेल खेला करते थे. वहीं शास्त्री चौक में बुधन सिंह, रमाकांत गुप्ता, जनार्दन दुबे, भुवनेश्वर मुंशी अपने सहयोगियों के साथ लगे रहते थे तथा थाना रोड बालिका स्कूल के निकट तेतरतर चौक में पं माधव मिश्र,मनौरी लाल बर्म्मन,कृष्ण मोहनलाल खत्री,विष्णु दयाल(टैक्स दारोगा),सूरज बाबू आदि युवा लोग विचार करके लोहरदगा में ऐतिहासिक शोभा यात्रा प्रारंभ करवायी. जो थाना टोली होते हुए सुभाष चौक,टंगरा टोली, चंद्रशेखर आजाद चौक, तिवारी दुरा, राणा चौक, महावीर चौक,गुदरी बाजार,शास्त्री चौक,थाना चौक, अमला टोली, पावर गंज चौक होते हुए उस समय भी मैना बगीचा पहुंच जाया करती थी.संख्या कम ही रहता था परंतु उत्साह और डंके की गूंज दूर-दूर तक जाया करती थी.छोटा शहर था.क्या महिला,क्या पुरुष,क्या बच्चे उस समय भी सब कोई अपने घरों से निकलकर इस शोभायात्रा को देखा करते थे तथा सम्मिलित भी होते थे.बाद के कालखंड में काफी परिवर्तन होते चला गया. सन 1948 में थाना रोड बालिका स्कूल के निकट स्थित स्वर्णकार मनोरी लाल बर्म्मन द्वारा स्वयं से नक्काशी करके एक सेर का चांदी का हनुमानजी की प्रतिमा बनायी गयी, जो जुलूस के आगे रहती है तथा 10 वर्ष पूर्व उसी परिवार के संजय बर्म्मन द्वारा दो सेर का चांदी का सिंहासन बनवाया गया और यह प्रतिमा और सिंहासन पूरे शान से जुलूस के आगे रहती है. और कंधे देना लोग पुण्य समझते हैं.परंतु यह शोभा यात्रा धीरे-धीरे इतना विशाल भव्य और आकर्षक होते चला गया कि झारखंड के चार प्रमुख रामनवमी के जुलूस जिनमें जमशेदपुर, रांची, हजारीबाग तथा उसमें लोहरदगा भी एक है. इस शोभा यात्रा में निंगनी, चंद कोपा, गंगुपारा,महादेव टोली,जयनाथपुर,बदला,मिशन चौक, बक्शीडिपा,जुरिया, सेरेंगहातु जैसे निकटवर्ती ग्रामीण इलाके के लोग पूरे अनुशासन तथा डंका बजाते हुए शामिल होते हैं. इस शोभा यात्रा को देखने तथा सम्मिलित होने पूरे जिले तथा निकटवर्ती जिले के भी लोग आकर देखते हैं. यह शोभा यात्रा आज के दिन में 20 से 25 हजार की संख्या में पगड़ी, पटा, गणवेश के साथ चलते हैं तथा झांकियां भी रहती है. लोग बताते हैं कि पहले के अखाड़ा में हिंदू मुसलमान मिलकर लाठी लाठी डंटा खेलते थे तथा ढोलक ताश भी खूब बजाया जाता था. आज भी इस जुलूस को मुस्लिम समाज के लोग पूरी गर्म जोशी के साथ स्वागत करते हैं तथा अंग वस्त्र,शीतल पेय आदि देखकर लोहरदगा की गंगा जमुना तहजीब को मजबूती प्रदान करते हैं.इस त्योहार के माध्यम से युवा लोग आत्मरक्षा हेतु लाठी,डंटा, तलवार,क्रिच,फरसा,डाइगर,बलम, मशाल चलना सीखते है .तथा रांची से इनके लिए प्रशिक्षु भी आया करते थे .जिसे सम्मान से उस्ताद कहा जाता था. प्रख्यात समाजसेवी शिवप्रसाद साहू, इंद्रनाथ भगत, बुद्धू जायसवाल, राधा महतो, नंदलाल प्र साहू, प्राण प्रसाद जायसवाल, मलिक सिराजुल हक, कपिल प्रसाद गुप्ता, यदुवीर राम वर्मा (जदू डॉक्टर),सुधीर चंद्र कुंवर,विश्वनाथ शर्मा,महरंग राम नायक,अंबिका सिंह,( नागर सागर) जुड़वा भाई,देवकी अग्रवाल,परमेश्वर वर्मा आदि के सहयोग से थाना ग्राउंड में नवमी की रात में अस्त्र-शस्त्र चलन प्रतियोगिता तथा पूरे जिले में त्योहार उल्लास के साथ मनाने हेतु उसमें जुड़े रहते थे.बात के समय में सप्तमी,अष्टमी,नवमी,दशमी और अब एकादशी तक अलग-अलग समितियां द्वारा जिनमें केंद्रीय महावीर मंडल,कला संगम,नवयुवक संघ पावर गंज,मोटीया संघ द्वारा अस्त्र-शस्त्र प्रतियोगिता के साथ-साथ बाजा प्रतियोगिता का भी भव्य व आकर्षण आयोजन किया जाता है. जहां तरुण और युवा वर्ग तो होते ही है अब नारी शक्ति के तौर पर लड़कियां भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने लगी हैं. इस शोभा यात्रा में तकरीबन 75 से ज्यादा अखाड़ा के शामिल होते हैं वहीं खेल प्रतियोगिता में लगभग 45 से 50 अखाड़ा अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. और यह प्रदर्शन काफी जोखिम तथा रोमांस से भरा रहता है. पावर गंज चौक में दशमी के दिन भरत मिलाप का कार्यक्रम भी होता है. पूरे जिले में उत्साह तथा भाईचारगी के साथ रामनवमी त्योहार मनाने के लिए समाज के अगुवाओं के द्वारा केंद्रीय महावीर मंडल की स्थापना की गई है. इस जुलूस के बारे मशहूर शायर मजरू ह सुल्तानपुरी के नजम से जोड़ा जा सकता है की मैं अकेला ही चला जानिब- ए- मंजिल, मगर लोग मिलते गये और कारवां बनता गया.
1937 से शुरू हुई थी रामनवमी की शोभायात्रा
लोहरदगा में रामनवमी त्योहार अपने घर मोहल्ले टोले में सैकड़ों वर्षों से मनाया जा रहा है.
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