आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं लोहरदगा के मूर्तिकार, पहली लहर के बाद से ही है स्थिति खराब
लोहरदगा कोरोना की पहली लहर के बाद से ही मूर्तिकारों के जीवन में उथल-पुथल मचा है. कई मूर्तिकारों की कमाई पर अंकुश लग गया है.
किस्को. लोहरदगा कोरोना की पहली लहर के बाद से ही मूर्तिकारों के जीवन में उथल-पुथल मचा है. कई मूर्तिकारों की कमाई पर अंकुश लग गया है. लाॅकडाउन के बाद जितने भी पर्व त्योहार आये भीड़-भाड़ पर रोक रहने, सादगी के साथ मनाये जाने व अल्प मांग होने के कारण बेहद कम मूर्तियां बनायी जाती रही थी. वह भी अधिकांश मूर्तियां चार से पांच फीट की ही बनायी जा रही थी.
मूर्तिकार बताते है कि पिछले तीन सालों में कोरोना के कारण उन्हें बेहद कम कमाई हुई है. सभी स्कूल कॉलेज बंद पड़े हैं, जिससे मूर्तियां नहीं बिक नहीं रही है सरस्वती पूजा को देखते यूं तो वे मूर्तियां बना रहे हैं, लेकिन कोरोना की तीसरी लहर के बीच उनकी बिक्री कहां तक होगी कुछ नहीं कहा जा सकता है.
यह चिंता मूर्तिकारों को सत्ता रही है कोरोना से पूर्व एक मूर्तिकार मूर्ति बेच कर लाखों की आमदनी करते थे, परंतु आज पांच से 10 हजार भी नहीं हो पाती. कई मूर्तिकार हैं, जो साल भर सिर्फ मूर्ति बनाने का काम करते हैं, लेकिन कोरोना की तीसरी लहर में उनके चेहरे पर मायूसी छायी है. किस्को प्रखंड की खरकी पंचायत के मूर्तिकार गोवर्धन प्रजापति ने बताया कि वे 10 सालों से मूर्ति बना रहे हैं.
सरस्वती पूजा के लिए मूर्ति बुकिंग के अनुसार तीन माह पूर्व से ही बनानी शुरू हो जाती थी. प्रतिवर्ष प्रखंड क्षेत्र में लगभग 100 से अधिक मूर्तियों की मांग रहती थी. एक मूर्ति एक हजार से पांच हजार तक बेचे जाते थे. मूर्ति बेच कर प्रतिवर्ष लगभग एक लाख रुपये की आमदनी हो जाती थी.
लॉकडाउन के बाद से सभी सामान की दर में वृद्धि हुई है. अभी जितनी मूर्ति बनायी जा रही है, उस हिसाब से बिक्री भी नहीं हो रही है. बताया जाता है कि बड़ी मूर्तियों के खरीदार कम हैं, अधिकतर लोग छोटी मूर्तियां खरीद रहे हैं और सादगी तरीके से पूजा का आयोजन कर रहे हैं मूर्तिकारों की मानें, तो अगर बनी मूर्ति बिक जाये, तो पूंजी लौटने के साथ कुछ मुनाफा हो सकेगा.