लोहरदगा : गौ पालन के क्षेत्र में महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी सुषमा, दिहाड़ी मजदुर से मुखिया तक ऐसा रहा सफर
सुषमा देवी ने साल 2006 में मिले दो गाय पर मेहनत करते हुए एक साल के भीतर बैंक का कर्ज चुका दिया. सुषमा की मेहनत रंग लायी. दो साल के बाद दो गाय खरीदी.
कुड़ू: कुड़ू पंचायत के नावाटोली निवासी अर्जुन उरांव की पत्नी सुषमा देवी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं . सुषमा देवी की शादी साल 1990 में नावाटोली निवासी अर्जुन उरांव के साथ हुई. घर की माली हालत इतनी खराब थी कि सुषमा बाजार में हड़िया तथा दारू बेच कर किसी प्रकार जीविकोपार्जन चलाती थी . इसके अलावा ईंट भट्टा में दिहाड़ी मजदूरी भी की. बावजूद इसके परिवार की माली हालत में सुधार नहीं हो पाया . साल 2005 में नावाटोली के दस महिलाओं को मिलाकर मुक्ति महिला समूह बनायी. सप्ताह में एक दिन गुरुवार को महिलाओं की बैठक शुरू की तथा दस – दस रुपया जमा करने लगी, साल 2006 में जिला गव्य विकास विभाग के द्वारा 90 प्रतिशत में एक गाय मिली .छह माह बाद दूसरी गाय मिली.
यही से सुषमा देवी की जिंदगी मे बदलाव शुरू हुआ. साल 2006 में मिले दो गाय पर मेहनत करते हुए एक साल के भीतर बैंक का कर्ज चुका दिया. सुषमा की मेहनत रंग लायी. दो साल के बाद दो गाय खरीदी. इसी प्रकार गौ पालन में दोनो पति – पत्नी मेहनत करने लगे . दो साल में नतीजा सामने आया. साल 2005 तक, जो सुषमा हड़िया दारू तथा ईंट – भट्टा मे मजदूरी करती थी , गाय की सेवा में इतनी लीन हो गयी कि समय ही नहीं मिल पाया एक समय था जब कुड़ू में पूजा करने के लिए दूध नहीं मिलता था, लेकिन सुषमा के गौ पालन के कारण कुड़ू से पचास लीटर दूध प्रतिदिन लोहरदगा डेयरी जाने लगा . वर्तमान में सुषमा के पास चार दुधारू गाय तथा तीन बछिया है तथा प्रतिदिन पचास लीटर दूध लोहरदगा डेयरी को आपिर्ति करती है. सुषमा के गौ पालन से प्रेरणा लेकर प्रखंड के दो दर्जन से अधिक महिलाओं ने गौ पालन शुरू किया है .
गो पालन से बदली तकदीर, मिले आधा दर्जन सम्मान
सुषमा ने गो पालन से अपने तथा परिवार की जिंदगी बदल दी है. सुषमा के तीन बच्चे शशि श्वेता बाड़ा जमशेदपुर मे इंजीनियरिंग की शिक्षा लेने के बाद प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है जबकि एक पुत्र सुमित बाड़ा बीआईटी मेसरा मे आईटीआई की शिक्षा लेने के बाद तैयारी में लगा हुआ है साथ ही सबसे छोटा पुत्र सचिन उरांव नेतरहाट आवासीय विद्यालय मे इंटर की पढ़ाई करने के बाद देश की सेवा करने के लिए आईटीबीपी में चयन हो गया है.सुषमा की लगन तथा मेहनत का ही नतीजा था कि साल 2015 के पंचायत चुनाव मे कुड़ू पंचायत से मुखिया पद पर नामांकन किया तथा चुनाव जीतकर मुखिया बनी . मुखिया बनने के बावजूद सुषमा सुबह पांच बजे से गौशाला की सफाई से लेकर गाय को सफाई , गायों को खाना खिलाने तथा दूध दुहने से लेकर डेयरी तक भेजने का काम खुद करती है.
इसके बाद पंचायत का काम करती है. साल 2021 के पंचायत चुनाव में मुखिया पद पर दोबारा नामांकन किया तथा जीत हासिल करते हुए मुखिया चयनित हुई है. इसी बीच कोई ग्रामीण समस्या लेकर पहुंच गया तो उसका समाधान करती है . सुषमा को गो पालन के क्षेत्र में साल 2012 मे तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, साल 2013 मे राष्ट्रपति शाषन के दौरान तत्कालीन महामहिम राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी, साल 2014 मे हेमंत सोरेन, साल 2012 मे अर्जुन मुंडा, जिला प्रशासन के द्वारा सिनगी दई सम्मान, महाराष्ट्र के पुणे मे आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार मे राज्य का प्रथम पुरस्कार मिल चुका है . सुषमा बताती है कि मेहनत करने से कोई काम मुश्किल नही है . मेहनत की बूते आज मुकाम हासिल किया है तथा तीनों बच्चों की बेहतर परवरिश कर रही हूं.