समस्याओं के आगोश में समाया हुआ है जिला
लोहरदगा जिला की स्थापना 17 मई 1983 को हुई थी. लेकिन आज भी लोहरदगा जिला समस्याओं के आगोश में समाया हुआ है.
लोहरदगा जिला स्थापना दिवस पर विशेष
41 साल बाद भी नहीं सुधरी स्थितिफोटो अधूरा पड़ा बस पड़ाव
फोटो शहर के बीच बना बाक्साइट डंपिंग यार्ड
गोपी / बिनोद लोहरदगा: लोहरदगा जिला की स्थापना 17 मई 1983 को हुई थी. लेकिन आज भी लोहरदगा जिला समस्याओं के आगोश में समाया हुआ है. लोहरदगा वैसा जिला है जहां सिंचाई सुविधाओं का घोर अभाव है. एक भी कोल्ड स्टोरेज नहीं है. जबकि यहां बड़े पैमाने पर खेती होती है. लोहरदगा शहर में एक सुव्यवस्थित बस पड़ाव अभी तक नहीं है. नगर परिषद के द्वारा रेलवे की जमीन पर लगभग दो करोड़ रुपए की लागत से बस पड़ाव का निर्माण कराया जा रहा था, लेकिन रेलवे ने इस पर आपत्ति जताई और काम आधे में ही बंद हो गया. जबकि नगर परिषद के द्वारा इसमें बड़ी राशि खर्च कर दी गयी है. सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाहर से लोहरदगा आने वाले लोगों के मन में लोहरदगा के प्रति कैसी धारणा बनती होगी. महारानी विक्टोरिया ने लोहरदगा में बड़ा तालाब का निर्माण जेल में बंद कैदियों से करवाया था. इसकी सुंदरीकरण पर भी करोड़ों रुपये खर्च कर दिये गये, लेकिन यहां का काम भी अधूरा पड़ा है.ये तालाब लोहरदगा की शान हुआ करती थी लेकिन आज ये विशाल तालाब जिसे बड़ा तालाब भी कहा जाता था वह बिल्कुल सिमट गया है. लोहरदगा एक ऐसा जिला है जहां शहर के बीचोंबीच बाक्साइट का डंपिंग यार्ड बना दिया गया है और यहां रेल एवं ट्रकों से बाक्साइट गिरायी जाती है. इसके कारण पूरा लोहरदगा शहर भयानक प्रदूषण की चपेट में आ गया है और यहां के लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ कर असमय काल के गाल मे समा रहे हैं. शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण इलाकों तक में पेयजल का घोर संकट सालों भर रहता है. केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी नल जल योजना यहां भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयी. शहरी क्षेत्र के एक बडे हिस्से में जलापूर्ति योजना की पाईप लाइन नहीं पहुंची है. पठारी जिला होने के कारण यहां के अधिकांश चापाकल खराब पड़े हैं. बाइपास सडक का निर्माण नहीं हुआ लोहरदगा में अब तक बाइपास सडक का निर्माण नहीं हुआ है. जबकि लगभग डेढ़ साल पहले केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इसका आनलाइन शिलान्यास किया था लेकिन संवेदक ने अभी तक निर्माण कार्य शुरू नहीं किया है. ये योजना लगभग दो सौ करोड़ रुपए की है.जबकि यह जिला वित्त मंत्री का विधानसभा क्षेत्र है. बेरोजगारी भी चरम पर लोहरदगा जिला में बेरोजगारी भी चरम पर है. यहां से बड़े पैमाने पर लोग दूसरे राज्यों में काम की तलाश में जाते हैं. पलायन यहां बड़ी समस्या है. इसका सीधा प्रभाव मतदान के प्रतिशत में देखा गया. विकास के नाम पर सिर्फ दुकानें खुली हैं लोहरदगा में विकास के नाम पर सिर्फ दुकानें खुली हैं. शहर के अलावा सेन्हा जैसे ग्रामीण क्षेत्र में भी मॉल खुल गये हैं, लेकिन रांची लोहरदगा ट्रेन की सुविधा के कारण बड़ी संख्या में लोग मार्केटिंग करने रांची चले जाते हैं. कई जनप्रतिनिधि बदले, लेकिन नहीं बदली तो लोहरदगा की स्थिति.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है