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एक व्यक्ति जिसे बालू खाने से मिलता है सुकून

पाकुड़ : यदि खाने में एक कंकड़ आ जाये तो कोई भी व्यक्ति अपना कौर उगल देता है, उसे डर लगता है कि कहीं पथरी न हो जाये. किसी इंसान को मिट्टी या घास खाते तो सुना होगा पर यदि कोई पिछले 40 साल से बिना बालू खाये नहीं रह पाता हो तो यह एक […]

पाकुड़ : यदि खाने में एक कंकड़ आ जाये तो कोई भी व्यक्ति अपना कौर उगल देता है, उसे डर लगता है कि कहीं पथरी न हो जाये. किसी इंसान को मिट्टी या घास खाते तो सुना होगा पर यदि कोई पिछले 40 साल से बिना बालू खाये नहीं रह पाता हो तो यह एक अजूबा ही होगा. ऐसा ही एक 90 वर्षीय इंसान पाकुड़ जिले के पाकुड़िया प्रखंड अंतर्गत राजदाहा गांव का है.

राम इकबाल चौबे प्रतिदिन आधा किलो से अधिक बालू खाता है. राम इकबाल का दावा है कि यदि एक दिन वह बालू नहीं खाता है तो उसे दस्त की शिकायत हो जाती है और काफी कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है.

40 साल से खा रहा है बालू : यह विज्ञान के लिए चुनौती भी है कि वह पिछले 40 वर्षों से प्रतिदिन खाना खाने के अलावा दिन भर में आधा किलो से अधिक बालू खा लेता है. ऐसा करने से उन्हें सुकून मिलता है और उनका पेट भी ठीक रहता है. बालू खाने से उन्हें कोई स्वाद नहीं मिलता है,
एक व्यक्ति जिसे बालू…
परंतु बालू खाने के बाद वह अपने को तंदुरुस्त महसूस करते हैं. 90 वर्षीय राम इकबाल चौबे के पुत्र हरिशंकर चौबे व दया शंकर चौबे का कहना है कि शुरुआती दौर में पूरे परिवार के लोग बहुत आश्चर्य करते थे. पहले उनके पिताजी स्वयं बालू इकट्ठा कर खाते थे. वर्तमान में वृद्धावस्था के कारण उनके बिछावन पर एक दिन यदि बालू नहीं रहता है तो वे हंगामा करने लगते हैं.
राम इकबाल चौबे का परिचय
राजदाहा गांव निवासी राम इकबाल चौबे का जन्म 11 मार्च 1929 में हुआ है. 24 अक्तूबर 1961 में उन्हें पीडब्ल्यूडी विभाग में अमीन की नौकरी मिली थी. श्री चौबे लंबे समय तक साहिबगंज जिला के साहिबगंज, बरहरवा व पाकुड़ जिला के अमड़ापाड़ा सहित अन्य क्षेत्रों में अपनी सेवा दे चुके हैं. बीते 23 दिसंबर 1993 को श्री चौबे नौकरी से सेवानिवृत्त हुए हैं. वर्तमान में वे अपने परिवार के साथ पाकुड़ जिले के पाकुड़िया थाना क्षेत्र के राजदाहा गांव में रहते हैं.
राम इकबाल को बालू खाने की क्यों हुई जरूरत
राम इकबाल चौबे के मुताबिक नौकरी काल में ही उन्हें लगभग 40 वर्ष पूर्व दस्त की शिकायत की हुई थी. काफी प्रयास के बाद भी जब दस्त नहीं रुका और वे परेशान रहने लगे तो उन्हें परेशान हो कर नदी से बालू खा लिया. बालू खाने के बाद उन्हें राहत मिली और वे धीरे-धीरे ठीक हो गये. उस समय से वे लगातार बालू खाने लगे और अब वे प्रतिदिन लगभग आधा किलो से भी अधिक बालू खाते हैं.

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