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पाकुड़ में मिला पांच करोड़ साल पुराना जीवाश्म

पाकुड़ में मिला पांच करोड़ साल पुराना जीवाश्म

संवाददाता, पाकुड़ (झारखंड). गुरुवार को पाकुड़ के सोनाजोड़ी के मटिया पहाड़ पर एक अद्भुत खोज हुई है. भू-वैज्ञानिकों की इस खोज में दावा किया जा रहा है कि यहां करोड़ों साल पुराना जीवाश्म मिला है. यह पृथ्वी के इतिहास को उजागर करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. इस महत्वपूर्ण खोज के बारे में बताते हुए डॉ. रंजीत कुमार सिंह, भूविज्ञान विभाग अध्यक्ष सह प्राचार्य मॉडल कॉलेज राजमहल, भूवैज्ञानिक सह पर्यावरणविद ने कहा कि यह एक अनमोल अंतरराष्ट्रीय धरोहर है, जिसे बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया जायेगा. उन्होंने बताया कि यह जीवाश्म लगभग 5 करोड़ वर्ष पहले कार्बोनिफेरस और पर्मियन काल के हैं, जब ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अंटार्कटिका और एशिया मिलकर एक सुपर महाद्वीप गोंडवाना लैंड का हिस्सा थे. उस समय यहां का वातावरण नम और गर्म था. डॉ सिंह के अनुसार, तराई अस्मिक काल में पर्यावरण में बदलाव के कारण ज्वालामुखी फटे और गोंडवाना लैंड के टुकड़े अलग हो गये. ज्वालामुखी के लावा ने पेड़-पौधों और जीवों को ढक दिया, जिससे वे लाखों वर्षों तक सुरक्षित रहे और आज जीवाश्म के रूप में देखे जा सकते हैं. राजमहल की पहाड़ियों में ऊपरी गोंडवाना काल के जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों के अवशेष मिलते रहे हैं. यह क्षेत्र 2600 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इसी युग के जीवाश्म जर्मनी में भी मिले हैं, जहाँ की सरकार ने 65 किलोमीटर के इलाके को संरक्षित कर रखा है और 2002 में यूनेस्को ने उसे विश्व धरोहर घोषित किया है. भारत सरकार ने भी राजमहल के जीवाश्मों पर डाक टिकट जारी किया था. डॉ सिंह ने जोर देकर कहा कि भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए अतीत की इस अनमोल धरोहर की सुरक्षा, संरक्षण और शोध कार्य आवश्यक है. इन जीवाश्मों से करोड़ों साल के जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक रूप और वातावरण का अध्ययन किया जा सकता है, जो भविष्य की नीतियों के निर्धारण में उपयोगी होगा. इससे पृथ्वी की उत्पत्ति, प्रकृति और मानव जीवन के रहस्य से भी पर्दा उठ सकता है. इस सफल सर्वेक्षण के लिए डॉ. सिंह ने पाकुड़ के वन प्रमंडल पदाधिकारी सौरव चंद्रा और वन क्षेत्र पदाधिकारी रामचंद्र पासवान के प्रति आभार व्यक्त किया, जिनके अथक प्रयास से यह महत्वपूर्ण खोज संभव हो पायी. इस खोज से न केवल पाकुड़ और झारखंड का नाम रोशन हुआ है, बल्कि पूरे विश्व के वैज्ञानिक समुदाय की नजरें इस पर टिक गयी हैं. उम्मीद है कि यह जीवाश्म खोज पृथ्वी के इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देगी और भविष्य में इसके संरक्षण के लिए उचित कदम उठाए जाएंगे.

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