पहाड़ी गांव में आज भी जिंदा है सामुदायिक खेती, बरबट्टी की खेती है मिसाल

सामुदायिक खेती का चलन इन दिनों विकसित देशों में काफी लोकप्रिय होता जा रहा है. शहरी के साथ-साथ ग्रामीण लोगों को कृषि से जोड़ने के लिए सामुदायिक खेती का चलन हाल के वर्षों में काफी देखने को मिल रहा है.

By Prabhat Khabar News Desk | December 25, 2024 6:26 PM
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पाकुड़. सामुदायिक खेती का चलन इन दिनों विकसित देशों में काफी लोकप्रिय होता जा रहा है. शहरी के साथ-साथ ग्रामीण लोगों को कृषि से जोड़ने के लिए सामुदायिक खेती का चलन हाल के वर्षों में काफी देखने को मिल रहा है. सामुदायिक खेती अक्सर सुविधाविहिन इलाकों में एक मजबूरी भी रहा है. हालांकि सामुदायिक खेती से जहां किसानों को अनाज उत्पादन में काफी सहुलियत होती है वहीं इससे समुदाय की एकजुटता का भी पता चलता है. पाकुड़ जिले के पहाड़ी इलाकों में बरबट्टी की फसल उपजाने वाले पहाड़िया समाज के लोगों में भी सामुदायिक खेती का चलन काफी प्राचीन रहा है. पहाड़िया आदिम जनजाति के लोग छोटे-छोटे पहाड़ी गांवों में रहते हैं. गांवों में आने-जाने के लिए पगडंडी का सहारा लेना पड़ता है. ऐसे में वे खेती के लिए आधुनिक सुविधाओं के साथ-साथ मजदूरों की भी सुविधा नहीं ले सकते हैं. ऐसे में गांव के लोग ही आपस में मिलकर बरबट्टी की खेती करते हैं. गांव की महिलाएं और पुरुष एकजुट होकर बरबट्टी का बीज पहाड़ में फेंकने से पहले पहाड़ की सफाई से लेकर बरबट्टी की फसल तोड़ने तक साथ काम करते हैं. फसल की छंटाई के बाद जमीन मालिक खेतों में काम करने वाले गांव के लोगों को पारिश्रमिक भी देते हैं. हालांकि इसमें मालिक और मजदूर के भेद नहीं होता है, क्योंकि सभी के खेतों में सभी काम करते हैं. ऐसे में जहां सुविधा के नहीं रहने के बाद भी खेती को आसान बनाया जाता है वहीं लोगों को सामुहिकता की भावना भी जिंदा रहती है. इससे जहां रोजमर्रा के कामों के साथ-साथ विपत्ति में भी लोग एक जुट रहते हैं. बड़ा कुड़िया गांव के ग्राम प्रधान छोटा बामना पहाड़िया बताते हैं कि गांव के लोग एक जुट होकर खेती करते हैं. गांव में आने जाने का सिर्फ पगडंडी ही सहारा है. ऐसे में लोगों को एक दुसरे का मदद करना ही पड़ता है. तभी खेती के साथ-साथ जीवन भी आसान सा लगता है. नहीं तो पहाड़ जीवन काफी मुश्किल हो जाता है. वहीं अमरभीटा गांव के रामा पहाड़िया बताते हैं कि गांव के लोग बरबट्टी के खेती में साथ काम करते हैं. बरबट्टी की खेती के लिए ज्यादा लोगों की जरूरत पड़ती है. इसके लिए तैयारियां भी काफी करना पड़ता है. ऐसे में पहाड़ी गांव के लोग एक साथ काम करते हैं. लेकिन उन्हें काम के बदले में पारिश्रमिक जरुर मिलता है. जिससे यह परंपरा आज भी जारी है.

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