पाकुड़िया. तीन दिवसीय त्योहार जिउतिया मंगलवार को नहाय-खाय के साथ पाकुड़िया सहित प्रखंड क्षेत्र में शुरू हो गया. मंगलवार को सुबह व्रती महिलाओं ने पवित्र स्नान कर व्रत का संकल्प लिया और फिर कद्दू-भात, झींगा, लाल साग, नोनी साग आदि का सात्विक भोजन बनाकर इसे प्रसाद स्वरूप भोग लगाने के बाद परिजनों के साथ ग्रहण किया. इस पर्व में महिलाएं अपने पुत्र की सलामती के लिए पूजा-अर्चना करती हैं, जो बुधवार को होगा. संतान के सुखी और स्वस्थ जीवन के लिए यह व्रत नहाय खाय के साथ शुरू होकर अगले दिन निर्जला व्रत के बाद तीसरे दिन पारण के साथ समाप्त होगा. जितिया व्रत के पहले रात में घर की छत पर चारों दिशाओं में कुछ खाना रखने की परंपरा निभायी गयी. जबकि व्रत के दूसरे दिन बुधवार को व्रती महिलाएं निर्जला व्रत रखेंगी और जीमूतवाहन भगवान की पूजा कर औलाद की दीर्घायु की कामना करेंगी. फिर पारण के दिन कई प्रकार के व्यंजन का भोग भगवान को लगाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण करेंगी. व्रत का पारण गुरुवार को प्रात: काल में किया जाएगा. जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है. पंडित अरुण झा ने बताया कि महाभारत के युद्ध के बाद अश्वथामा अपने पिता की मृत्यु की वजह से क्रोध में था. वह अपने पिता की मृत्यु का पांडवों से बदला लेना चाहता था. एक दिन उसने पांडवों के शिविर में घुस कर सोते हुए पांडवों के बच्चों को मार डाला. उसे लगा था कि ये पांडव हैं. लेकिन वो सब द्रौपदी के पांच बेटे थे. इस अपराध की वजह से अर्जुन ने उसे कैद कर लिया और उसकी मणि छीन ली. इससे आहत अश्वथामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया. लेकिन उत्तरा की संतान का जन्म लेना जरूरी था, जिस वजह से श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरी संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया. गर्भ में मरकर जीवित होने की वजह से उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और यही आगे चलकर राजा परीक्षित बने. तब से ही इस व्रत को रखा जाता है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है