पाकुड़ में हुआ करता था कांजी हाउस, खंडहर में तब्दील, अब लाइब्रेरी बनाने की मांग
शहर के दिलावर कॉलोनी में मवेशियों के लिए पूर्व से चला आ रहा कांजी हाउस खंडहर में तब्दील हो गया है.
पाकुड़. शहर के दिलावर कॉलोनी में मवेशियों के लिए पूर्व से चला आ रहा कांजी हाउस खंडहर में तब्दील हो गया है. यह नगर परिषद क्षेत्र के अंडा गली में स्थित है. लगभग चार कट्टे में निर्मित भवन अब खंडहर हो चुका है. वर्षों पूर्व बना यह भवन बेसहारा पशुओं के लिए इस्तेमाल होता था, लेकिन आज कांजी भवन अपना अस्तित्व खो रहा है. आज ना तो पशु है और ना ही कोई सुध लेने वाला. ऐसे में सरकार की ओर से भी इसे कांजी हाउस के रूप अब चिह्नित नहीं किया गया है. समय के साथ-साथ पशुपालकों की संख्या भी शहर में नगण्य हो गया है, कृषि कार्य की जगह दुकानों ने ले लिया है. ऐसे में समाज को इसकी जरूरत रही नहीं, जिसके कारण इसकी नीलामी में लोगों ने शामिल होना छोड़ दिया. अंतिम बार साल 2015 में इसकी नीलामी हुई थी, उसके बाद से किसी ने इसकी नीलामी नहीं ली और विभाग ने भी इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. नगर परिषद के अनुसार शहर में पशुओं के लिए बना कांजी हाउस वर्ष 2015 से अस्तित्व में नहीं है. नगर परिषद की ओर से वर्ष 2016-17 व 18 में कांजी हाउस के लिए टेंडर निकाला गया था, लेकिन टेंडर में किसी ने भाग नहीं लिया. टेंडर में किसी भी संवेदक की उपस्थिति नहीं होने के कारण कांजी हाउस धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होने लगा. कांजी हाउस का अस्तित्व नहीं रहने के कारण शहर की सड़कों पर गाय व सांड विचरण करते देखे जाते हैं. वर्तमान समय में जानवरों के मालिक सुबह होते ही अपने-अपने जानवरों को खुला छोड़ देते हैं. यह जानवर दिन भर अपने चारा की तलाश में निकल जाते हैं. इस चक्कर में ये जानवर कभी रोड किनारे कचरा फैलाते हें तो कहीं रोड में ही घूमते दिख जाते हैं. इसकी वजह से रोड पर चलना भी लोगों के लिए आफत बन जाता है. लोग जाम में फंस रहे हैं कई बार इनकी वजह से एक्सीडेंट भी हो रहे हैं. इन घूमते आवारा पशुओं को रोकने के लिए जिला प्रशासन के पास कोई प्लान नहीं है और ना ही इस पर एक्शन लेने के लिए किसी कोषांग का गठन किया गया है.
1966 के करीब कांजी हाउस का लिया गया था प्रस्ताव
शहरवासियों की माने तो जिला बनने से पूर्व 1966 के करीब कांजी हाउस की शुरुआत के लिए सरकार की ओर से प्रस्ताव आया था. बांस बल्ली के सहारे कांजी हाउस चलाया जाने लगा. पशुपालकों में काफी खौफ हुआ करता था. सन 1970 में कांजी हाउस के निर्माण के लिए मो हफीजुद्दीन ने चार कट्ठा जमीन दान स्वरूप दी. 1994 में पाकुड़ को जिला बनाया गया. फिर यह नगर परिषद के तहत आया. पहला टेंडर मो. हफीजुद्दीन ने ही लिया. शुरुआत में बहुत ही कम पैसों में कांजी हाउस का टेंडर हुआ करता था. धीरे-धीरे यह बढ़कर वर्ष 2006 के करीब 6 हजार रुपए तक पहुंचा. टेंडर में लगे पैसों की भरपाई पशुओं से होती थी. कभी ऐसा होता था कि एक दिन में 20 पशु आ जाते थे. पशुपालकों से अर्थ दंड के रूप में पैसा लिया जाता था और पशुओं की देखभाल की जाती थी.जब्त पशुओं को रखा जाता था कांजी हाउस में
एक रुपए से अर्थदंड शुरू होता था. शुल्क से होने वाले धन उपार्जन से कांजी हाउस का संचालन और संरक्षण होता था. 50 पैसा पशुओं के खाने पर खर्च किया जाता था तो वही 50 पैसा पशुओं के रखरखाव के लिए खर्च होता था. थाना के द्वारा जो पशुओं को जब्त किया जाता था, उसे कांजी हाउस में रखा जाता था. जिनकी मवेशी जब्त होती थी वह जुर्माना के साथ अपने पशुओं को छुड़ा कर ले जाते थे. जानवरों की देखभाल 7 दिनों तक कांजी हाउस में करने तक कोई मालिक क्लेम के लिए नहीं आता तो बोली लगाकर जानवरों की नीलामी करने का भी नियम था. इस प्रकार के कड़े कानून से पशुपालकों में खौफ था और वह पशुओं को लेने के लिए कांजी हाउस आया करते थे तथा अर्थ दंड भरकर अपना पशु को ले जाते थे. कांजी हाउस में कैद पशुओं की हाजिरी ली जाती थी. इससे पशुओं की संख्या की जानकारी होती थी. ताकि कोई जानवर अगर कैद से भाग जाए तो तुरंत पता लगाया जा सके.1983 में मो. हफीजुद्दीन की मृत्यु हो गयी. 1983 से वर्ष 2006 तक कांजी हाउस का संचालन इनके बंसजों ने किया. 2006 के बाद शफीउद्दीन व शंभू भगत के द्वारा कांजी हाउस का संचालन किया गया. लेकिन अब इसका अस्तित्व समाप्त हो गया है.कहते हैं मोहल्लेवासी
कांजी हाउस खंडहर में तब्दील हो गया है. भवन में घास-फूस की झाड़ियां उग आई है. सांप बिच्छू का डर बना रहता है. यदि यहां पर एक लाइब्रेरी बना दी जाए तो इसका लाभ छात्र-छात्राओं को मिलेगा.-शाहिद अनवर उर्फ मिस्टरकांजी हाउस काफी पुराना है. 1990 के दशक काजी हाउस का प्रभाव हुआ करता था. अब यह भवन जर्जर हो चुका है. उक्त जगह पर लाइब्रेरी बनाया जा सकता है. छात्र-छात्राओं को काफी सुविधा मिलेगी.
-दीपक आसिफतत्कालीन डीसी सुनील कुमार सिंह के समय में लाइब्रेरी का प्रस्ताव मोहल्लेवासियों के द्वारा रखा गया था, लेकिन अब तक यह संभव नहीं हो पाया है. लाइब्रेरी होने से मोहल्लेवासियों को इसका फायदा मिलेगा.-सलेहा नाज, अधिवक्ता कांजी हाउस से कुछ दूरी पर अटल चौक के पास एक लाइब्रेरी तो है लेकिन जगह कम होने के कारण काफी ज्यादा भीड़ होती है, जिस कारण छात्र छात्राओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. लाइब्रेरी बना दिया जाय.
-राशिद अनवरकहते हैं पदाधिकारीकांजी हाउस जैसा संस्थान अब रहा नहीं. भवन पुराना होने के कारण खंडहर में तब्दील हो गया है. जानकारी जिले के वरीय पदाधिकारी को दी जायेगी. सर्वसम्मति से जो निर्णय होगा उक्त जगह पर किया जायेगा.
– राजकमल मिश्रा, ईओ, नपडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है