हर कोई चाहता है कि उसकी जिंदगी बेहतर हो. उसके बाल-बच्चों को सुख-सुविधाएं मिले. इसके लिए वह रोजगार की तलाश करता है. मेहनत-मजदूरी करता है और उससे जो कमाई होती है, उससे अपने परिवार का भरण-पोषण करता है. मेहनत-मजदूरी के बदले में लोगों को पैसे मिलते हैं. लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें दिन भर की मेहनत के बाद रुपये नहीं मिलते. उन्हें मिलते हैं आलू.
जी हां, मेहनताना में लोगों को आलू मिलता है. दिन भर खेत में काम करने के बाद उन्हें मेहनताना के रूप में 10 किलो आलू दिया जाता है. झारखंड की महिलाएं कमाने के लिए अपने प्रदेश से अन्य प्रदेशों में जाती हैं. वहां उन्हें दिन भर खेत में काम करवाया जाता है. शाम को एक 10 किलो आलू उन्हें दे दिया जाता है.
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हम बात कर रहे हैं पलामू जिले की महिलाओं की. पलामू में रोजगार के अभाव में मजदूरों का पलायन आम बात है. चैनपुर थाना क्षेत्र के बरांव गांव की महिलाएं मात्र 60 किलो आलू के लिए बिहार के डेहरी में मजदूरी करने जाती हैं. इन महिला मजदूरों के साथ गये बरांव गांव के केवाल टोला के मुंशी चौधरी ने बताया कि प्रत्येक वर्ष आलू के मौसम में करीब डेढ़ दर्जन महिलाएं बिहार के डेहरी धरहरा गांव में जाती हैं.
वहां पूरे दिन आलू की कोड़ाई करने पर उन्हें मजदूरी के रूप में 10 किलो आलू प्रतिदिन दिया जाता है. महिलाओं को छह-सात दिन काम करने के बाद 60 से 70 किलो आलू ही मिल पाता है. जिसे लेकर वह अपने घर लौटती हैं. इन महिलाअों ने डालटनगंज स्टेशन पर बताया कि गांव में कोई रोजगार नहीं है.
इसलिए बाल बच्चों को घर पर छोड़कर मजदूरी करने बिहार जाते हैं. वहां मजदूरी कर साल भर की सब्जी के लिए आलू की व्यवस्था कर लेते हैं. परेशानी यह है कि स्टेशन से घर जाने के लिए पिकअप वाले 1000 से 1100 तक भाड़ा मांगते हैं.