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बकोरिया कांड : मृतकों में पांच नाबालिग, पर सीआइडी ने छुपाया, सभी को बताया था स्थापित नक्सली

सीआइडी ने शपथपत्र में कई तथ्य छुपाये, घटना में मारे गये चालक को छोड़ रांची : बकोरिया में आठ जून 2015 को कथित मुठभेड़ में नक्सली बता कर मारे गये 12 लोगों में पांच लोग नाबालिग थे. इस बात का दावा पूर्व में मृतक के परिजनों ने भी किया था. लेकिन सीआइडी ने मामले में […]

सीआइडी ने शपथपत्र में कई तथ्य छुपाये, घटना में मारे गये चालक को छोड़
रांची : बकोरिया में आठ जून 2015 को कथित मुठभेड़ में नक्सली बता कर मारे गये 12 लोगों में पांच लोग नाबालिग थे. इस बात का दावा पूर्व में मृतक के परिजनों ने भी किया था. लेकिन सीआइडी ने मामले में न्यायालय में जो शपथपत्र दायर किया था, उसमें उन्होंने किसी को नाबालिग नहीं बताया था. शपथपत्र में किसी की उम्र का उल्लेख भी नहीं किया.
सीआइडी एसपी के शपथपत्र में इस बात का उल्लेख था कि मुठभेड़ में मारे गये 12 शवों की पहचान अनुसंधान के दौरान कर ली गयी है. इनमें उदय यादव, योगेश कुमार यादव, चालक एजाज अहमद, अमलेश यादव, देवराज यादव उर्फ अनुराग उर्फ डॉक्टर, संतोष यादव, नीरज यादव, बुधराम उरांव, हरातू गांव निवासी महेंद्र खरवार, बरवाडीह थाना क्षेत्र निवासी सत्येंद्र परिहा, चरकू उरांव और उमेश खैरवार के नाम शामिल हैं.
शपथपत्र में सीआइडी के एसपी ने इस बात का भी उल्लेख किया था कि मारे गये सभी लोगों में केवल चालक को छोड़ कर अन्य स्थापित नक्सली थे. शपथपत्र में सभी के नक्सली इतिहास होने का भी उल्लेख है. इसके अलावा सभी को नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के विंग पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला अार्मी का सदस्य बताया गया है.
लेकिन शपथपत्र में देवराज उर्फ अनुराग और अमलेश यादव को छोड़ कर किसी के नक्सली रिकॉर्ड का उल्लेख नहीं है. अनुराग के खिलाफ 33 केस दर्ज होने का उल्लेख था. वहीं दूसरी ओर अमलेश यादव के खिलाफ पांकी थाना में एक नक्सल केस दर्ज होने का उल्लेख था.
अमलेश यादव के खिलाफ पांकी थाना में पांच मई, 2013 को केस दर्ज हुआ था. इधर, परिजनों ने जिनके नाबालिग होने का दावा किया था, उनमें चरकू तिर्की (12 वर्ष), सत्येंद्र पहरहिया (16 वर्ष), बुद्धराम उरांव (17 वर्ष), उमेश सिंह (10 वर्ष), महेेंद्र खरवार (12 वर्ष) शामिल हैं. इससे अब सवाल उठने लगे हैं कि शपथपत्र में गलत जानकारी तो नहीं दी गयी है.
इन बिंदुओं पर उठे थे सवाल
मृतकों की पहचान नक्सली के रूप में करने के लिए सीआइडी ने शपथपत्र में एक नक्सली द्वारा प्रेस विज्ञप्ति को भी आधार बनाया है. लेकिन इससे पहले शपथ पत्र में लिखा गया था कि अनुसंधान के दौरान सभी की पहचान कर ली गयी है. प्रेस रिलीज की सत्यता की जांच किये बिना कैसे किसी को नक्सली बताया जा सकता है.
शपथपत्र में इस बात का भी उल्लेख था कि मारे गये चालक एजाज अहमद को छोड़ कर सभी का नक्सली इतिहास है. वे स्थापित नक्सली भी हैं. लेकिन शपथ में सिर्फ अनुराग उर्फ देवराज और अमलेश यादव के नक्सली होने से संबंधित केस का उल्लेख है. इसके अलावा अन्य के खिलाफ कोई नक्सल इतिहास का उल्लेख नहीं था. कहीं सभी को नक्सली बताने के पीछे कोई साजिश तो नहीं की गयी थी.
कहीं जान-बूझ कर शपथ में मारे गये लोगों की उम्र का उल्लेख तो नहीं किया, ताकि बाद में उन्हें बालिग बता कर मामले को दूसरे रूप दिया जा सके. बाद में हुआ भी यही. सीआइडी ने अंतिम जांच के दौरान सभी को बालिग बता दिया था.
सीआइडी ने हलफनामे में छिपाये थे तथ्य
रांची : आठ जून, 2015 को पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में हुई घटना के मामले में सीआइडी ने हाइकोर्ट में जो हलफनामा दाखिल किया था, उसमें उसने कई तथ्य छिपाये थे. हलफनामे में सीआइडी ने कहा था कि घटना के वक्त इंस्पेक्टर हरीश पाठक पलामू सदर थाना के प्रभारी थे. घटना बकोरिया थाना क्षेत्र में हुई थी.
इस कारण इससे हरीश पाठक का कोई लेना-देना नहीं था. उन्हें इस अभियान से अलग रखा गया था. उनका बयान विश्वसनीय नहीं है, जबकि प्रभात खबर के पास जो तसवीरें उपलब्ध हैं, उसके मुताबिक इंस्पेक्टर हरीश पाठक घटना के बाद घटनास्थल पर दिख रहे हैं. इतना ही नहीं, पलामू के तत्कालीन एसपी कन्हैया मयूर पटेल के निर्देश पर इंस्पेक्टर हरीश ही दंडाधिकारी को लेकर घटनास्थल पर पहुंचे थे. शवों के पोस्टमार्टम के वक्त भी हरीश मौजूद थे.
एनएचआरसी के बयान हैं सीआइडी के पास
हलफनामे में इंस्पेक्टर हरीश द्वारा मानवाधिकार आयोग को बयान दिये जाने की जानकारी होने से भी इनकार किया गया है, पर जो दस्तावेज उपलब्ध हैं, उससे यह पता चलता है कि चार दिसंबर, 2017 के दिन से सीआइडी को इस बात की जानकारी है कि हरीश पाठक ने एनएचआरसी में बयान दिया था.
सीआइडी के पास एनएचआरसी को दिये बयान की प्रति भी उपलब्ध है. हालांकि कोर्ट को दिये हलफनामे में इससे इनकार किया गया है.
एसपी ने रिसीव किया था पाठक का बयान
दरअसल, हाइकोर्ट के निर्देश पर सीआइडी ने इंस्पेक्टर हरीश पाठक का बयान दर्ज किया था. हरीश पाठक ने चार दिसंबर 2017 को अपना लिखित बयान सीआइडी के एसपी को दिया था. लिखित बयान के अंतिम पन्ने पर हरीश पाठक ने यह लिखा था कि उनसे एनएचआरसी के अधिकारियों ने भी पूछताछ की थी. उन्होंने (हरीश पाठक) एनएचआरसी की टीम के समक्ष जो लिखित बयान दिया था, उसकी प्रति संलग्न कर रहा हूं. हरीश पाठक के बयान को एसपी द्वारा रिसीव किया गया था.
72 घंटे की जगह छह माह बाद सीआइडी ने टेकओवर किया था केस
बकोरिया की घटना जून 2015 को हुई थी. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेश के मुताबिक किसी भी नक्सली घटना के 72 घंटों के भीतर उस मामले को सीआइडी को टेकओवर कर जांच करनी है, लेकिन इस मामले में सीआइडी सोयी रही. छह माह बाद उसने मामले को टेकओवर कर जांच शुरू की, लेकिन शपथ पत्र में इस महत्वपूर्ण चूक की वजह क्या रही, इस बात को जांच एजेंसी ने छिपा लिया.
आयोग के निर्देश पर भी अफसरों पर नहीं हुई कार्रवाई
बकोरिया कांड की धीमी जांच पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सीआइडी जांच पर सवाल उठाये थे. कहा भी था कि मामले के अनुसंधानकर्ता और सुपरवाइजरी ऑफिसर पर कार्रवाई की जाये, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. फिर आयोग के निर्देश पर मामले का अनुसंधानकर्ता सीआइडी के एक एसपी को बनाया गया.
आरके धान को क्यों दी गयी सुपरविजन की जवाबदेही?
बकोरिया कांड के सुपरविजन की जवाबदेही एसटीएफ के आइजी रहे रविकांत धान को दी गयी. नियमत: यह सही नहीं है. उस वक्त सीआइडी में आइजी के रूप में टी कंदासामी मौजूद थे. उन्हें जवाबदेही नहीं दी गयी. पूर्व में भी धनबाद के चर्चित ट्रक चालक गोलीकांड में भी केस की जांच सीआइडी कर रही थी और सुपरविजन की जवाबदेही रांची डीआइजी रहे रविकांत धान को दी गयी थी. यानी हर अहम मामले की सुपरविजन धान को ही क्यों दी गयी, यह भी जांच का विषय है.
घटनास्थल के 200-300 गज में चारों तरफ एक भी बूंद खून का निशान नहीं मिला
सभी मृतक का शव एक लाइन से एक साथ ऐसे पड़ा था, जैसे सभी अलग-बगल में सो रहे हों. 12 शवों के बीच में कुछ ऐसे भी स्थान थे, जहां खून गिरा था लेकिन शव नहीं था, इससे लग रहा था कि किसी वाहन से लाकर शवों को लिटाया गया है.सभी मृतकों के शरीर पर खून सूखा हुआ था.
अधिकांश मृतकों के शरीर में सीना एवं कमर के ऊपर में कई-कई गोलियों के छेद के निशान थे, जबकि खून का रिसाव न के बराबर था.
कई मृतक के शर्ट व शरीर में गोलियों से हुए छेद में कोई तालमेल नहीं था.
कई मृतकों के शर्ट का बटन भी सिलसिलेवार नहीं लगा था, जैसे जबरदस्ती शर्ट पहनाया गया हो. एक मृतक के शरीर में गोली का निशान था. लेकिन जो वर्दी उसने पहन रखा था, उसमें कोई छेद नहीं था़
कुछ मृतकों के पास रखा हथियार प्लास्टिक के तार से बना था, जिसका वोल्ट खोलने से ट्रिगर, गार्ड और मैगजीन गिर जाता था.एक मृतक के पास रखे 30.06 रायफल में बोल्ट और मैगजीन नहीं था. एक अन्य .303 रायफल में भी मैगजीन नहीं था.किसी मृतक के कमर में बिंदोलिया भी नहीं था.
कई अफसरों का बयान दर्ज किया जायेगा
पलामू के चर्चित बकोरिया कांड का सुपरविजन करने के बाद आइजी ने अनुसंधानकर्ता को निर्देश दिया है कि मामले के बाद जो भी अधिकारी मौके वारदात पर गये थे या जो किसी भी रूप में इस मामले से जुड़े थे, उन सभी का बयान लें. इस मामले में सीआइडी कोबरा बटालियन के अफसरों का भी बयान लेगी.
डीआइजी ने भी उठाये थे सवाल
डीआइजी हेमंत टोप्पो ने बयान में कहा है कि उन्हें घटना की रात एक बजे तत्कालीन डीजीपी ने फोन पर सूचना दी कि कोबरा बटालियन के साथ नक्सलियों की मुठभेड़ हुई है. इसके बाद तत्कालीन पलामू एसपी कन्हैया मयूर पटेल व लातेहार एसपी अजय लिंडा से पूछा, तो दोनों ने कहा कि उन्हें मुठभेड़ की कोई सूचना नहीं है. वहीं पलामू सदर के तत्कालीन थानेदार हरीश पाठक ने कहा कि पूरब दिशा में फायरिंग की बात उन्होंने सुनी थी. इससे मामला उलझ गया. मामले की जांच पूरी होने के बाद ही सही तथ्य सामने आयेंगे. ऐसे में सीआइडी का किसी निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल दिख रहा है.

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