मंडल डैम चुनावी स्टंट तो नहीं, नामधारी ने सरकार की मंशा पर उठाये सवाल, Facebook पर लिखी यह बात
05 जनवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डालटनगंज की धरती पर मंडल डैम का शिलान्यास करने आ रहे हैं. मंडल डैम का नाम सुनते ही मुझे बिहार के एक प्रसिद्ध कवि कि पंक्तियां याद आ जाती हैं. कवि ने वैशाली की राम कहानी का वर्णन करते हुए लिखा था, ‘मत कह क्या-क्या हुआ यहां, इस […]
05 जनवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डालटनगंज की धरती पर मंडल डैम का शिलान्यास करने आ रहे हैं. मंडल डैम का नाम सुनते ही मुझे बिहार के एक प्रसिद्ध कवि कि पंक्तियां याद आ जाती हैं. कवि ने वैशाली की राम कहानी का वर्णन करते हुए लिखा था, ‘मत कह क्या-क्या हुआ यहां, इस वैशाली के आंगन में?’
मेरी दृष्टि में वैशाली एवं मंडल डैम की राम कहानी लगभग एक जैसी है. कई सदियों के इतिहास में वैशाली में क्या-क्या हुआ, उसका वर्णन करना कवि को जब असंभव लगा, तो उनको लिखना पड़ा कि वे नहीं कह सकते कि वैशाली के आंगन में कौन-कौन सी घटनाएं घट चुकी हैं?
कुछ इसी तर्ज पर मैं भी मंडल डैम की पूरी राम कहानी का वर्णन नहीं कर सकता. इस डैम का निर्माण पिछली शताब्दी के सत्तर के दशक में शुरू हुआ. 40 वर्ष बाद भी यह डैम अभी तक अधर में लटका हुआ है. इस लंबे अंतराल में निर्माणाधीन मंडल डैम ने बहुत उतार-चढ़ाव देखे.
इस डैम का निर्माण बहुत हसरत से उस समय शुरू हुआ था, जब मैंने राजनीति में नया-नया पैर रखा था. पलामू की जनता को इस डैम से काफी उम्मीदें थीं, क्योंकि इस योजना से न केवल सिंचाई के लिए पानी मिलता, अपितु 25 केवीए का एक जल विद्युत प्रकल्प भी शुरू होता.
उन दिनों एकीकृत पलामू में लगभग इतनी ही विद्युत की जरूरत थी. वर्ष 1980 में मैं डालटनगंज विधानसभा का विधायक बन गया था. इसलिए मुझे भी उपरोक्त योजना में काफी कसरत करनी पड़ी, क्योंकि मंडल डैम में डूबने वाले अधिकतर गांव आज के गढ़वा जिले के भंडरिया प्रखंड के अंतर्गत आते थे.
जिन रैयतों की जमीन डूबनी थी, उनके मुआवजे एवं नौकरी के लिए विधायक होने के नाते मुझे भी बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी. मुआवजे के कई मामले तो अभी भी अधर में लटके हुए हैं, जबकि अधिकतर भू-स्वामी काल के गाल में जा चुके हैं.
आखिरकार वह दिन आ ही गया, जब डैम का निर्माण शुरू हुआ. पलामू में श्री तिवारी के तत्कालीन अधीक्षण अभियंता बनने के बाद डैम के निर्माण में तेजी आयी. उनके ट्रांसफर के बाद काम में शिथिलता तो आयी ही, निर्माण की गुणवत्ता पर भी उंगलियां उठने लगीं.
निर्माण के दौरान मैंने भी इस डैम का कई बार भ्रमण किया. डैम की कमजोर नींव को मजबूत करने के लिए अधीक्षण अभियंता श्री रायचौधरी को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. डैम का निर्माण शुरू होने के कुछ ही समय के बाद एकीकृत पलामू जिले में उग्रवादियों का प्रकोप इतना बढ़ गया कि मंडल डैम के इलाके में लोग जाने से कतराने लगे.
मुझे याद है कि एक बहुत ही कर्मठ एवं शालीन अधीक्षण अभियंता स्व मिश्रा की उग्रवादियों ने डैम साइट पर ही निर्मम हत्या कर दी. इससे इस डैम में एक नयी बाधा उपस्थित हो गयी. उनकी हत्या की छानबीन का जिम्मा सीबीआइ को दिया गया, लेकिन सीबीआइ अफसरों ने कई बार घटनास्थल का निरीक्षण किया, लेकिन वह हत्यारों को नहीं पकड़ सके.
स्व मिश्रा के बेटा एवं पुत्रवधू दोनों ही यूपी में आइपीएस अफसर थे. फिर भी कानून हत्यारों को सलाखों के पीछे पहुंचाने में नाकाम रहा. इस दु:खद घटना के वर्षों बाद तक डैम का काम लगभग बंद रहा. उग्रवाद प्रभावित इस इलाके में स्थित मंडल डैम के पिलर से असामाजिक तत्वों ने लोहे के छड़ तक निकाल डाले.
फिर से काम शुरू करने की बात हुई, तो वन विभाग ने अड़चन लगा दी. कहा कि जब तक डूब क्षेत्र में पड़ने वाले वन विभाग की जमीन के बदले दो गुनी जमीन वन रोपन के लिए विभाग को उपलब्ध नहीं करा दी जाती, तब तक काम शुरू नहीं होगा. इसी उधेड़बुन में मंडल का काम त्रिशंकु की तरह अधर में लटकता रहा, लेकिन उसका कोई व्यावहारिक हल नहीं निकल सका.
संयोग से वर्ष 2009 में मैं चतरा का सांसद बन गया. मुझ पर डैम के निर्माण में आयी कठिनाइयों को दूर करने की नैतिक जिम्मेवारी आ गयी, क्योंकि मंडल डैम लातेहार जिला के बरवाडीह प्रखंड में पड़ता है, जो चतरा संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. ज्ञात हो कि मंडल डैम के बन जाने से अधिकतर सिंचित होने वाली जमीन बिहार में पड़ेगी और औरंगाबाद जिला को सबसे ज्यादा फायदा होगा.
चतरा का सांसद होने के नाते मैं और औरंगाबाद के सांसद सुशील कुमार सिंह ने मिलकर तत्कालीन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन से कई बार मुलाकात की. इस महत्वपूर्ण डैम के निर्माण में आयी अड़चन को दूर करने का आग्रह किया, लेकिन उसका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला, क्योंकि जयंती नटराजन के लिए एक कहावत मशहूर थी कि उनके विभाग में कोई भी काम ‘जयंती टैक्स’ के बिना नहीं होता था.
इस दु:खद पृष्ठभूमि में मुझे उस समय बड़ी प्रसन्नता हुई, जब पता चला की चतरा एवं औरंगाबाद के सांसदों क्रमशः सुनील कुमार सिंह एवं सुशील कुमार सिंह ने तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मिलकर वन विभाग की अड़चनों को दूर करने का सार्थक प्रयास किया है, लेकिन समस्या के निदान का कोई ठोस हल सामने नहीं आया.
मुझे खुशी है कि माननीय प्रधानमंत्री 5 जनवरी, 2019 को इस चिरप्रतीक्षित प्रकल्प को पूरा करने के लिए पुनः शिलान्यास करने आ रहे हैं. वास्तव में यदि प्रधानमंत्री ने थोड़ा और ध्यान दिया होता, तो 05 जनवरी के दिन को शिलान्यास के बदले उद्घाटन का दिन भी बनाया जा सकता था.
मैं इस तथ्य को इसलिए उजागर कर रहा हूं, क्योंकि वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव अब दस्तक दे रहे हैं. दो-तीन महीने में आदर्श आचार संहिता लागू हो जायेगी. मैं नहीं समझता की तब तक उपरोक्त योजना की निविदा भी आमंत्रित हो पायेगी.
इस आलोक में यदि कहा जाये की 5 जनवरी, 2019 को डालटनगंज में प्रधानमंत्री जी का तामझाम से होने वाला कार्यक्रम मात्र चुनावी स्टंट है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. जिस ढंग से चियांकी के मैदान में जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं तथा पलामू जिले के सभी स्कूलों की सभी बसें जिला प्रशासन द्वारा अधिग्रहीत कर ली गयी है, उससे तो यही झलकता है कि 05 जनवरी, 2019 को डालटनगंज में मात्र चुनावी शंखनाद होकर रह जायेगा. मंडल डैम के भविष्य पर अभी भी प्रश्नचिह्न यथावत रहेगा, क्योंकि वर्ष 2019 के संसदीय चुनावों के परिणाम अभी तक भविष्य के गर्भ में हैं.