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मेदिनीनगर : पलामू में लगातार कम बारिश हो रही है. 15 जून से लेकर अक्तूबर तक का महीना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. यदि पिछले 18 वर्षों के आंकड़े पर गौर करें, तो पलामू के लिए निराशाजनक तस्वीर उभर कर सामने आती है. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि हालात ऐसे रहे, तो […]

मेदिनीनगर : पलामू में लगातार कम बारिश हो रही है. 15 जून से लेकर अक्तूबर तक का महीना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. यदि पिछले 18 वर्षों के आंकड़े पर गौर करें, तो पलामू के लिए निराशाजनक तस्वीर उभर कर सामने आती है. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि हालात ऐसे रहे, तो कैसे होगी खेती?

वर्ष 2001 से लेकर अब तक का जो आंकड़ा है, उसे यदि देखा जाये तो पिछले 18 वर्षों में पलामू में छह साल ही ऐसा होगा जब जून में औसत वर्षा हुई है. इसी तरह जुलाई में पांच साल ही सामान्य वर्षा हुई है. अगस्त की स्थिति तो और भी चिंताजनक है. 18 साल में मात्र दो साल ही ऐसा है जब औसत वर्षापात हुई है. सितंबर में छह साल औसत वर्षापात हुई है, जबकि अक्तूबर में चार दफा औसत बारिश हुई है.
18 वर्षों के आंकड़े यह बताने के लिए काफी है कि पलामू में निरंतर वर्षापात घट रही है. पलामू की मुख्य खेती धान, मक्का है. इस साल 51 हजार हेक्टेयर में धान की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है. इसी तरह 27 हजार हेक्टेयर में मक्का व 26 हजार हेक्टेयर में मक्का की खेती का लक्ष्य है. लेकिन अभी तक जो स्थिति है वह किसानों के लिए काफी निराशा
जनक है.
जून समाप्त हो गया है. जून में पलामू का सामान्य वर्षापात 152.4 मिलीमीटर है, जबकि जून में इस बार 74.75 मिलीमीटर बारिश हुई है. खेतों में पर्याप्त पानी नहीं है. फिर भी इस उम्मीद में किसान खेती कर रहे हैं कि शायद हालात बदले. हर साल किसान मॉनसून के आस में ही रहते हैं. मॉनसून ने धोखा दिया तो किसान टूट जाते हैं. पलामू का सुखाड़ व अकाल से नाता टूटे इसके लिए कई योजनाएं बनी. खर्च भी हुए, लेकिन इसका अपेक्षित लाभ पलामू के किसानों को नहीं मिला.

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