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इंटरनेशनल टाइगर डे पर विशेष : ढूंढ़ने से भी नहीं मिल रहा है बेतला में बाघ

संतोष बेतला : कभी बीहड़ व बाघों की गर्जन से आच्छादित रहने वाला पलामू आज बाघविहीन हो गया है. ढूंढ़ने पर भी बाघों के दर्शन नहीं हो रहे. बाघों के संरक्षण व संवर्धन के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. लेकिन, विडंबना है कि बाघ नहीं दिख रहे. बाघों का नहीं दिखना न […]

संतोष

बेतला : कभी बीहड़ व बाघों की गर्जन से आच्छादित रहने वाला पलामू आज बाघविहीन हो गया है. ढूंढ़ने पर भी बाघों के दर्शन नहीं हो रहे. बाघों के संरक्षण व संवर्धन के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. लेकिन, विडंबना है कि बाघ नहीं दिख रहे. बाघों का नहीं दिखना न केवल वन विभाग के पदाधिकारियों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच रहा है, बल्कि पलामू की आन-बान और शान पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहा है.

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विभागीय पदाधिकारी का दावा है कि पलामू टाइगर रिजर्व के विभिन्न क्षेत्रों में कैमरा ट्रैप के द्वारा बाघों की तस्वीर ली गयी है. बाघ होने के कई प्रमाण मिले हैं. पलामू प्रमंडल में ही पलामू टाइगर रिजर्व है, जहां बेतला नेशनल पार्क भी है, लेकिन आंकड़ों पर गौर करें, तो बेतला में चार साल से बाघ नहीं दिखा. वर्ष 2015 में कैमरा ट्रैप में बाघों की कई बार तस्वीर कैद हुई थी. कुछ लोगों ने बाघ को देखने का दावा किया था, लेकिन आज स्थिति ऐसी है कि बेतला से बाघ गायब हैं.

बाघों की ट्रैकिंग में लगाये गये टाइगर ट्रैकर दिन-रात जंगल की खाक छान रहे हैं. सिर्फ पार्क एरिया में 2 दर्जन से अधिक कैमरा ट्रैप हैं. सर्विलांस कैमरे लगाये गये हैं, ताकि जंगल के हर जानवर पर नजर रखी जा सके. कैमरा ट्रैप, सर्विलांस कैमरे में जानवरों की तस्वीरें ली जा रही हैं, लेकिन बाघ नहीं दिखता. वन विभाग के पदाधिकारियों का दावा है कि विषम परिस्थितियों के बावजूद पलामू टाइगर रिजर्व में बाघ है.

उनका कहना है कि बेतला सहित पूरे पलामू टाइगर रिजर्व में चूंकि बाघ के रहने लायक अनुकूल परिस्थितियां अब नहीं हैं, इसलिए बाघ घुमंतू हो गये हैं. छत्तीसगढ़, ओड़िशा व अन्य प्रदेशों के जंगल से बाघ आते हैं. कुछ दिन यहां रुकने के बाद अन्यत्र चले जाते हैं. वन विभाग के पदाधिकारियों की मानें, तो आज जंगल पर मानव का दबाव बढ़ा है.

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नक्सली गतिविधि, पुलिस-नक्सली मुठभेड़ होते रहते हैं. इसकी वजह से भी जंगल पूरी तरह से अस्थिर हो गये और बाघ भाग गये. पिछले 10 सालों की बात करें, तो 2013, 2014 और 2015 में बाघों के दिखने के प्रमाण मिले. बेतला में वर्ष 2015 में तो मार्च से अगस्त-सितंबर तक तक बाघ देखे जाते थे. अलग-अलग पोज में बाघ की तस्वीरें देखी गयीं, लेकिन कैमरा ट्रैप लगाये जाने के बाद अब तक एक भी बाघ की तस्वीर सामने नहीं आयी.

हां, कुछ दिन पहले बालूमाथ के कुछ सैलानियों ने बाघ देखने का दावा किया था. कहा था कि पार्क घूमने के दौरान उन्होंने बाघ को देखा, लेकिन बाद में ट्रैकिंग की गयी, तो बाघ का कोई नाम-ओ-निशां नहीं था. जानकार बताते हैं कि अब पलामू टाइगर रिजर्व में बाघों के ठहरने का उचित वातावरण नहीं है. किसी भी जानवर के ठहरने के लिए सुरक्षा, पानी, उसका मनपसंद भोजन जरूरी होता है. बढ़ती जनसंख्या वह मानव दबाव के कारण बाघ की सुरक्षा खतरे में पड़ गयी.

बाघों का प्रिय शिकार सांभर, तेंदुआ अब बेतला में नहीं है. पहले तेंदुआ व सांभर का शिकार करने की लालच में बाघ बेतला व आसपास के जंगलों में आ जाते थे. तब बेतला में सांभर, तेंदुआ की संख्या बहुत अधिक थी. शिकार की वजह से सांभर की संख्या घटती गयी. जंगल में मानव गतिविधियां बढ़ गयीं. इसकी वजह से बाघों को इस जंगल में अपना जीवन खतरे में लगने लगा.

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बेतला में बाघ नहीं होने की एक और वजह यह है कि अब धीरे-धीरे बेतला पार्क पलामू टाइगर रिजर्व से अलग होता जा रहा है. पलामू टाइगर रिजर्व और बेतला नेशनल पार्क को जोड़ने वाला गलियारा धीरे-धीरे पतला होता जा रहा है. जंगल के चारों ओर के गांवों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है. इसलिए भी बाघ अब बेतला आने से कतराने लगे हैं.

बाघों की सुरक्षा और उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए मैन पावर बढ़ा दिया गया है. पहले यह शिकायत रहती थी कि घने जंगलों की वजह से मॉनिटरिंग नहीं हो पाती, अब वह शिकायत भी दूर हो गयी है. बावजूद इसके, ढूंढ़ने के बाद भी बाघ नहीं दिख रहे. विभागीय अधिकारी बाघों के बारे में कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं. वे दावा कर रहे हैं कि बाघ हैं, लेकिन वे एक जगह स्थिर नहीं हैं. उनका आना-जाना लगा रहता है.

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