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झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 : राजनीतिक स्थिति के साथ पलामू के नेताओं की बदलती रही है दलीय निष्ठा

रांची : नदी की धारा और नेता की विचारधारा कब बदल जाये, कहना मुश्किल है. एक बार तेज बारिश हो जाये, तो झारखंड की सूखी नदियां गरजने लगती हैं. इसी तरह, चुनाव आ जाये, तो नेताओं की विचारधारा और निष्ठा दोनों बदलने लगती हैं. इसलिए पाला बदलने में इनका कोई जवाब नहीं. कुछ को दल […]

रांची : नदी की धारा और नेता की विचारधारा कब बदल जाये, कहना मुश्किल है. एक बार तेज बारिश हो जाये, तो झारखंड की सूखी नदियां गरजने लगती हैं. इसी तरह, चुनाव आ जाये, तो नेताओं की विचारधारा और निष्ठा दोनों बदलने लगती हैं. इसलिए पाला बदलने में इनका कोई जवाब नहीं. कुछ को दल बदलने में कुछ साल लग जाते हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं, जो महज चंद दिनों में दो-तीन पार्टियां घूम लेते हैं. यानी गुलाटी मार लेते हैं.

आज हम पलामू के ऐसे ही दलबदलू नेताओं के बारे में आपको बतायेंगे. इन्होंने या तो टिकट पाने के लिए चुनाव से ठीक पहले पाला बदला या चुनाव के बाद मंत्री बनने के लिए गुलाटी मारी. इंदर सिंह नामधारी से लेकर स्व. विदेश सिंह तक पाला बदलते रहे हैं.

शुरू करते हैं डाल्टनगंज के प्रतिष्ठित नेता और झारखंड विधानसभा के स्पीकर रहे इंदर सिंह नामधारी से. वह डाल्टनगंज से छह बार विधायक चुने गये. झारखंड विधानसभा में स्पीकर बने. जनसंघ के जमाने से चुनाव लड़ने वाले नामधारी दो बार मात खाने के बाद 1980 में पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते. 1985 में वगह पराजित हो गये. 1990 में फिर भाजपा के टिकट पर जीते.

बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ दी और 1995 में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते. 2000 व 2005 में जनता दल यूनाइटेड ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया. दोनों बार नामधारी जीते. 2007 के उपचुनाव में जदयू छोड़कर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और किला फतह कर लिया.

पांकी विधानसभा के बाहुबली विधायक विदेश सिंह ने तीन बार दल बदला. 2005, 2009 और 2014 में लगातार तीन बार विधायक चुने गये. विदेश सिंह ने 2005 का चुनाव आरजेडी के टिकट पर जीता. 2009 में निर्दलीय और 2014 में कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे. 2016 में उनका निधन हो गया.

छतरपुर के विधायक राधाकृष्ण किशोर भी तीन पार्टियों के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. वर्तमान में भाजपा विधायक चुन्नू राम उर्फ राधाकृष्ण किशोर कांग्रेस और जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर भी चुनाव जीत चुके हैं.

राज्य के वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी 1995 और 2005 में राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर विश्रामपुर से विधायक चुने गये थे. 2014 में वह भाजपा के कमल पर सवार होकर विधानसभा पहुंचे.

इसी तरह आरजेडी के टिकट पर छतरपुर से विधायक और बाद में पलामू के सांसद बने मनोज भुइयां इस बार लालू प्रसाद यादव की पार्टी छोड़कर बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा में शामिल हो गये. इसके तुरंत बाद उनका जेवीएम से मोहभंग हो गया और वह झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हो गये. यहां भी वह टिक नहीं सके. अब उनकी आस्था भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गयी है और इसी पार्टी से टिकट के आकांक्षी हैं.

अब आपको बताते हैं उस विधायक के बारे में, जिसने चतुर्थ विधानसभा के आखिरी सत्र के आखिरी दिन विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था. बात कुशवाहा शिवपूजन मेहता की. भारत की राजनीति में बहनजी के नाम से मशहूर मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर 2014 में हुसैनाबाद से रिकॉर्ड वोट से जीतने वाले कुशवाहा शिवपूजन मेहता ने इस बार पलटी मार दी है. उन्होंने सुदेश महतो की पार्टी आजसू का दामन थाम लिया है. 2014 में जेवीएम के टिकट पर डाल्टनगंज से चुनाव जीतने वाले आलोक चौरसिया भी अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं.

पाला बदलने के इस खेल के पीछे कई कारण होते हैं. गठबंधन के इस जमाने में जब अपनी पार्टी का टिकट नहीं मिलता, तो लोग पाला बदल लेते हैं. पार्टी के खिलाफ क्षेत्र में हवा देखकर भी कई बार नेता पार्टी बदलकर अपना उद्देश्य हासिल करते हैं.

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