20 वर्ष पूर्व सब डिवीजन का दर्जा दिया गया था छतरपुर को
फोटो-नेट से हेडलाइन…दर्जा अनुमंडल का, सुविधा कस्बे की सड़क के किनारे झुग्गी-झोपड़ी में चलती हैं दुकानें. उजड़ती-बसती रहती हैं. रोजगार की समस्या गहरी है. किसानों के खेत को पानी नहीं मिलता. मजदूरों को काम नहीं मिलता.प्रतिनिधि, छतरपुर : पलामू.छतरपुर को अनुमंडल का दर्जा मिले 20 वर्ष बीत गये. 16 सितंबर 1994 को इसे अनुमंडल का […]
फोटो-नेट से हेडलाइन…दर्जा अनुमंडल का, सुविधा कस्बे की सड़क के किनारे झुग्गी-झोपड़ी में चलती हैं दुकानें. उजड़ती-बसती रहती हैं. रोजगार की समस्या गहरी है. किसानों के खेत को पानी नहीं मिलता. मजदूरों को काम नहीं मिलता.प्रतिनिधि, छतरपुर : पलामू.छतरपुर को अनुमंडल का दर्जा मिले 20 वर्ष बीत गये. 16 सितंबर 1994 को इसे अनुमंडल का दर्जा मिला. इतने दिन बीत जाने के बाद भी छतरपुर की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. सड़क के किनारे झुग्गी-झोपड़ी लगा कर दुकान लगाना, मशक्कत के बाद दो जून की रोटी का जुगाड़ करना जैसे लोगों की नियति बन गयी है. साल में दो या तीन बार झुग्गी-झोपड़ी वालों को अतिक्रमण हटाओ अभियान का सामना करना पड़ता है. जो पूंजी साल भर में बचती है, वह अतिक्रमण की भेंट चढ़ जाती है. कुछ दिन के बाद पुन: दुकान लगाने के लिए झुग्गी-झोपड़ी बनायी जाती है. पूरे अनुमंडल की बात करें तो यह बिजली, पानी,सड़क की समस्या से जूझ रहा है. रोजगार के अभाव में यहां के लोगों का पलायन जारी है. किसानों के खेत में पानी नहीं है. मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है. इस तरह पूरे अनुमंडल की स्थिति बदहाली बयां कर रही है. छतरपुर की प्रमुख सड़कों के किनारे प्रखंड कार्यालय, अनुमंडल अस्पताल, मध्य विद्यालय, वन विभाग के कार्यालय, पंचायत सचिवालय के भवन में है, जिसके कारण व्यवसायियों को जगह नहीं मिल पाती है. स्थानीय लोगों में रामचंद्र साव, उपेंद्र गुप्ता, अनिल पासवान आदि ने बताया कि यदि प्रशासन द्वारा खाली पड़ी सरकारी जगहों पर दुकान का निर्माण करा दिया जाता, तो झुग्गी-झोपड़ी में दुकान लगाने वालों को राहत मिलती. उनका रोजगार फलता. साथ ही उन्हेंं अतिक्रमण का भय भी नहीं सताता.