औषधि निदेशालय को नहीं रहती कोई सूचना

अौषधि निदेशालय को नहीं रहती कोई सूचनासिर्फ मीडिया की खबर पर ही कार्रवाईमहकमे की कमाई सात करोड़ रुपये सालाना वरीय संवाददाता, रांचीराज्य के अौषधि निदेशालय के पास कोई सूचना नहीं रहती या यह जान बूझ कर सूचनाअों से अनजान रहता है. राज्य गठन के बाद से अब तक निदेशालय ने एेसी कोई कार्रवाई नहीं की, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 15, 2015 6:11 PM

अौषधि निदेशालय को नहीं रहती कोई सूचनासिर्फ मीडिया की खबर पर ही कार्रवाईमहकमे की कमाई सात करोड़ रुपये सालाना वरीय संवाददाता, रांचीराज्य के अौषधि निदेशालय के पास कोई सूचना नहीं रहती या यह जान बूझ कर सूचनाअों से अनजान रहता है. राज्य गठन के बाद से अब तक निदेशालय ने एेसी कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे जनता को बड़ी राहत मिली हो. निदेशालय दवा या मेडिकल उपकरणों के बाजार में हो रही धांधली से बेखबर रहता है. जांच या कार्रवाई होती है, तो सिर्फ मीडिया की खबरों पर. दरअसल दवा निरीक्षक (ड्रग इंस्पेक्टर या डीआइ), रिजनल लाइसेंसिंग अथोरिटी (आरएलए) व ड्रग कंट्रोलर (निदेशक अौषधि) ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के नियम-कानूनों में दुकानदारों को छूट देते हैं. ड्रग एक्ट के तहत दवा दुकानों में फार्मासिस्ट की अनिवार्यता का अकेला नियम ही दवा निरीक्षकों सहित पूरे महकमे की कमाई का सबसे बड़ा हथियार है. फार्मासिस्ट रख कर हर वर्ष उसे कम से कम एक लाख रुपये वेतन देने के बदले दुकानदार दवा निरीक्षकों को ही सालाना भुगतान कर देते हैं. दुकानदारों से न्यूनतम पांच हजार व अधिकतम एक लाख रुपये तक की सालाना वसूली होती है. वहीं एक्ट के उल्लंघन के नाम पर दुकान की लाइसेंस रद्द कर फिर से बहाल करने की भी कीमत चुकनी पड़ती है. रांची व बोकारो में तो हाल ही में लाइसेंस रद्द होने के बाद भी कुछ दवा दुकानें खुलती रही. सालाना वसूली करीब सात करोड़ न्यूनतम पांच हजार रुपये प्रति दुकान के आधार पर ही राज्य भर की 13026 (थोक व खुदरा) दवा दुकानों से सालाना 6.5 करोड़ से अधिक की वसूली होती है. दवा दुकान के ड्रग लाइसेंस के लिए तय शुल्क तीन हजार के बदले आरएलए 20 से 25 हजार रुपये वसूलते हैं. दवा दुकानों के लाइसेंस का नवीकरण हर पांच वर्ष के बाद होता है. नवीकरण शुल्क भी तीन हजार रुपये है, लेकिन इसके अलावा दवा दुकानदारों को पांच हजार रुपये अतिरिक्त नजराना देना होता है. डीआइ प्रमोशन के बाद आरएलए बनते हैं. आरएलए का काम डीआइ की रिपोर्ट के आधार पर दवा का लाइसेंस निर्गत व रद्द करना तथा लाइसेंस का नवीकरण करना है.वर्जन : जो भी शिकायतें हैं वह एक-डेढ़ माह में सिस्टम अॉनलाइन होने के बाद दूर हो जायेगी. रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस के लिए बार-बार कार्यालय का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा. निदेशालय में स्टाफ की कमी है. इसका असर कामकाज पर पड़ता है. जहां तक फार्मासिस्ट की बात है, तो अब कम से कम बड़े दुकानों में ये मौजूद रहने लगे हैं. ऋतु सहाय, निदेशक अौषधि

Next Article

Exit mobile version